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कर्ज में डूबे और सिंघु बॉर्डर पर डटे किसानों के 'मन की बात'

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन जारी है. प्रदर्शन को एक महीने से अधिक समय हो चुका है, लेकिन किसान दिल्ली की सीमाओं पर एक महीने से डटे हुए हैं और अपनी मांगों पर अड़े हैं. ईटीवी भारत ने दिल्ली हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर कर्ज में डूबे हुए किसानों से बातचीत की. आइए जानते हैं कि इस दौरान किसानों ने क्या कुछ कहा...

सिंघु बॉर्डर पर डटे किसानों के मन की बात
सिंघु बॉर्डर पर डटे किसानों के मन की बात

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Published : Dec 27, 2020, 6:05 PM IST

नई दिल्ली : कड़ाके की ठंड और कोरोना महामारी के संकट के बीच देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर बीते एक महीने से भारी तादाद में किसान जमे हुए हैं. केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान 26 नवंबर से यहां सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं. दिल्ली हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर डटे कुछ ऐसे किसानों से ईटीवी भारत ने से बातचीत की जिन पर लाखों रुपये का कर्ज है.

इस दौरान ईटीवी भारत ने आखिर यह कर्ज किस तरह से उन पर चढ़ा और आज क्यों किसानों को लगता है कि खेतीबाड़ी एक घाटे का सौदा है यह जानने की कोशिश की.

कुछ मीडिया द्वारा इस धरना प्रदर्शन को केवल पिज्जा और अन्य तरह के खाने पीने की वस्तुओं तक ही सीमित कर दिया गया है, जिसको लेकर भी इन बुजुर्ग किसानों में गुस्सा है.

सिंघु बॉर्डर पर डटे किसानों के मन की बात

इस दौरान उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के रहने वाले एक किसान का मानना है कि नए कानून से देश का किसान अधिक परेशान होगा.

गौरतलब है कि विगत 26 नवंबर से ही कई किसान संगठन दिल्ली-हरियाणा सीमा पर सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर व उत्तर प्रदेश से लगती सीमा पर धरना दे रहे हैं. इस संबंध में संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि सरकार जब तक तीनों कानूनों को रद्द नहीं करती, उनका विरोध जारी रहेगा.

दिलचस्प है कि कृषि मंत्री तोमर ने गत 17 दिसंबर को एक पत्र लिखकर किसानों से गतिरोध समाप्त करने की अपील की थी. तोमर ने अपने पत्र में 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध का भी जिक्र किया था. उनके पत्र को पीएम मोदी ने रीट्वीट कर कहा था कि कृषि मंत्री ने अपनी भावनाएं किसानों के सामने रखी हैं, तोमर के पत्र को अन्नदाता जरूर पढ़ें.

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बता दें कि केंद्र और किसानों के बीच तीन दिसंबर को हुई सात घंटे की मैराथन वार्ता बेनतीजा रहने के बाद पांच दिसंबर को अगली बैठक का फैसला लिया गया था. किसानों और केंद्र सरकार के बीच अंतिम वार्ता विगत पांच दिसंबर को होने के बाद आठ दिसंबर के भारत बंद के बाद गृह मंत्री शाह और कुछ किसान नेताओं के बीच भी बैठक हुई थी. शाह के साथ बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा था कि सरकार अड़ियल रुख दिखा रही है. अब वार्ता नहीं होगी.

इससे पहले शुक्रवार, 18 दिसंबर को पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के किसानों को संबोधित करते हुए कृषि कानून का विरोध कर रहे लोगों को आड़े हाथों लिया था. उन्होंने कहा था 'बीते कई दिनों से देश में किसानों के लिए जो नए कानून बने, उनकी बहुत चर्चा है. ये कृषि सुधार कानून रातों-रात नहीं आए. पिछले 20-22 साल से हर सरकार ने इस पर व्यापक चर्चा की है. कम-अधिक सभी संगठनों ने इन पर विमर्श किया है. देश के किसान, किसानों के संगठन, कृषि एक्सपर्ट, कृषि अर्थशास्त्री, कृषि वैज्ञानिक, हमारे यहां के प्रोग्रेसिव किसान भी लगातार कृषि क्षेत्र में सुधार की मांग करते आए हैं.'

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पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के रायसेन में आयोजित प्रदेश स्तरीय कृषि महासम्मेलन को संबोधन किया. मोदी ने कहा कि देश के किसानों को याद दिलाऊंगा यूरिया की. याद करिए, 7-8 साल पहले यूरिया का क्या हाल था? रात-रात भर किसानों को यूरिया के लिए कतारों में खड़े रहना पड़ता था या नहीं? कई स्थानों पर, यूरिया के लिए किसानों पर लाठीचार्ज की खबरें आती थीं या नहीं?

आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट का रुख

इससे पहले 17 दिसंबर को किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा वैकेशन बैंच इस मामले की सुनवाई करेगी. कोर्ट ने कहा किसान संगठनों की बात सुनने के बाद ही आदेश जारी किया जाएगा. उच्चतम न्यायालय ने संकेत दिया कि कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिये वह एक समिति गठित कर सकता है, क्योंकि यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है.

कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष

बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.

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कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.

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