नई दिल्ली : वाद्ययंत्र सरोद को दुनिया में पहचान दिलाने का श्रेय उस्ताद अमजद अली खान को जाता है, लेकिन भारत के सबसे प्रसिद्ध संगीतकारों में शामिल संगीतकार का कहना है कि उनका पहला प्यार तार वाला यह वाद्ययंत्र नहीं, बल्कि 'तबला' है.
खान ने 'संसद टीवी' पर लोकसभा सदस्य शशि थरूर को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि वह बचपन में तबला के प्रति इतने आकर्षित हो गए थे कि इससे चिंतित होकर उनके पिता ने कुछ महीनों के लिए उनसे संगीत वाद्ययंत्र छिपा दिया.
खान ने कहा तबला मेरा पहला प्यार है. बचपन में मैं इसकी ओर आकर्षित हुआ. इससे मेरे पिता इतने चिंतित हो गए कि कुछ महीनों तक वाद्ययंत्र को मुझ से छिपा दिया. लेकिन तबला के हर वादक के लिए लय, ताल को समझना बहुत जरूरी है. मैं कई युवा तबला वादकों को भी प्रोत्साहित करता हूं, वे गुमनाम लेकिन प्रतिभाशाली लोग हैं.
सवाल पूछे जाने पर कि संगीत का क्षेत्र क्यों चुना-
सरोद वादक ने कहा हर इंसान ध्वनि और लय के साथ पैदा होता है, कुछ को एहसास होता है और कुछ को एहसास नहीं होता है. खान ने कहा सुर और ताल की अपनी दुनिया है. स्वाभाविक रूप से लोग सुर की दुनिया में अधिक व्यस्त हैं मैं सुर की दुनिया को समझ नहीं पाया. इसलिए भगवान का शुक्र है कि मैं ताल की दुनिया में रहता हूं क्योंकि ताल के माध्यम से मैं हेरफेर नहीं कर सकता. अगर मैं सुर से बाहर होता हूं तो आपको पता चल जाएगा, यह इतना पारदर्शी होता है.
सरोद वादक हाफिज अली खान के घर जन्मे अमजद अली खान, सेनिया बंगश स्कूल की छठी पीढ़ी हैं और 1960 के दशक से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. संगीतकारों के परिवार में जन्म लेने के लिए खुद को 'बहुत भाग्यशाली' बताते हुए 75 वर्षीय अमजद अली खान ने कहा कि वह पंडित रविशंकर, उस्ताद अल्ला राखा, उस्ताद अलाउद्दीन खान, पंडित भीमसेन जोशी और पंडित कुमार गंधर्व सहित सभी बड़े नामों को सलाम करते हैं, जिन्होंने अपनी बदौलत संगीत के क्षेत्र में पहचान बनाई.
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(पीटीआई-भाषा)