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छत्तीसगढ़ : कोरोना काल में भी कोरबा की स्वच्छता दीदियों का हौसला बरकरार, इन्हें भी सुविधा दो सरकार

संक्रमितों के घर से कचरा उठाव के लिए नगर निगम ने एक अलग वाहन की व्यवस्था कर दी है, लेकिन खतरा तो बना हुआ है. घर-घर घूमकर कचरा उठाने वाली स्वच्छता दीदियां सरकार से सुविधाएं मांग रही हैं.

कोरोना काल
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Published : Apr 18, 2021, 10:46 PM IST

कोरबा:कोरोनासंक्रमण काल में किसी पॉजिटिव मरीज के घर के सामने कोविड-19 का बैनर लगा देख अच्छे-अच्छों की सांसें फूलने लगती हैं. लेकिन घर-घर घूमकर कचरा उठाने वाली स्वच्छता दीदियां हर दिन ऐसे घरों के सामने से गुजरती हैं. हालांकि संक्रमितों के घर से कचरा उठाव के लिए कोरबा नगर निगम ने एक अलग वाहन की व्यवस्था कर दी है, लेकिन खतरा तो बना हुआ है. घर-घर घूमकर कचरा उठाने वाली स्वच्छता दीदियां सरकार से सुविधाएं मांग रही हैं.

स्वच्छता दीदियों ने बताया कि काफी समय पहले सिर्फ दस्ताने मिले थे. जो अब फट चुके हैं. 6 हजार रुपए महीने की तनख्वाह पाने वाली ये स्वच्छता दीदियां आपदा के समय अपने पूरे हौसलों से काम कर रही हैं. वह अपने खर्चे पर मास्क, दस्ताने और सैनेटाइजर खरीद रही हैं.

कोरोना काल में भी स्वच्छता दीदी का हौसला बरकरार

कचरा उठाव की अहम जिम्मेदारी

नगर पालिक निगम कोरबा का क्षेत्रफल 215. 2 वर्ग मीटर है. क्षेत्रफल की दृष्टि से कोरबा नगर निगम छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे बड़ा नगर निगम है. जिसकी जनसंख्या 3 लाख 65 हजार 73 है. नगर निगम में कुल 67 वार्ड हैं. कुछ वार्डों को छोड़ दिया जाए, तो सभी स्थानों पर डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन हो रहा है. महिला स्व सहायता समूह के माध्यम से स्वच्छता दीदियों को कचरा उठाने की जिम्मेदारी दी गई है.

डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन में लगी महिलाएं सुबह ही अपना काम शुरू कर देती हैं. वह घर-घर जाकर कचरा उठाती हैं और फिर एसएलआरएम सेंटर में लाकर इसे अलग-अलग करने के बाद अपने घर जाती हैं. शहर की सफाई व्यवस्था बनाए रखने में स्वच्छता दीदियों की सबसे अहम भूमिका है. बावजूद इसके आपदा के ऐसे समय में है पर्याप्त सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई है.

वेतन 6 हजार रुपए

डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन के काम में लगी महिलाओं को छुट्टी कम ही नसीब होती है. उनका कहना है कि वह महीने के 30 दिन काम करती हैं. यदि एक दिन वह किसी घर से कचरा उठाना भूल जाऐं, तो वहां 2 दिन का कचरा इकट्ठा हो जाता है. जिससे बोझ उन पर ही बढ़ता है. महीने में 6 हजार रुपए बतौर वेतन मिलते हैं. साल भर से वेतन भी नहीं बढ़ा है. इतनी कम वेतन में भी वह किसी तरह गुजारा कर रही हैं. परेशानी सहकर भी वे महीने के 30 दिन ड्यूटी करती हैं. फिर चाहे वह संक्रमण का काल हो या फिर सामान्य दिन.

महिलाओं को दस्ताने तक नहीं मिले

कोरोना संक्रमण काल में भी कचरा कलेक्शन करने वाली महिलाओं को निगम की ओर से दस्ताने, मास्क और सैनेटाइजर जैसी मूलभूत आवश्यकता मुहैया नहीं कराई गई है. महिलाओं का कहना है कि काफी पहले एक बार दस्ताने मिले थे. जो पूरी तरह से फट चुके हैं. दस्तानों के साथ ही कई तरह के खर्च होते हैं. उनके पास जो तीन पहिया पैडल वाला रिक्शा है. इसकी मरम्मत के लिए भी उन्हें मशक्कत करनी पड़ती है. कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

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कोरोना संक्रमण का डर

महिलाओं का कहना है कि संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है. हालांकि पॉजिटिव मरीज के घर से वह कचरा नहीं उठा रही हैं. इसके लिए अलग से गाड़ी आती है. इसलिए संक्रमितों को दूर से ही बता देते हैं कि आपके घर का कचरा उठाने दूसरी गाड़ी आएगी. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि हम जिस घर में आज जाते हैं, पता चलता है कि कल वहां एक पॉजिटिव मरीज मिल गया. काम करने में काफी डर लग रहा है. हमारे पास सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम भी नहीं है. लेकिन काम तो करना ही है. इसलिए हम लगातार काम कर रहे हैं.

बढ़ाएंगे सुरक्षा

इस मामले में नगर पालिक निगम के अपर आयुक्त अशोक शर्मा को ईटीवी भारत ने अवगत कराया. उनका कहना है कि स्वच्छता के काम में लगी महिलाएं स्व सहायता समूह के माध्यम से काम करती हैं. उन्हें समय-समय पर संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं. यदि किसी समूह से उन्हें जानकारी दी जाएगी तो वह निश्चित तौर पर उनकी सुरक्षा बढ़ाएंगे और संसाधन उपलब्ध कराएंगे. ग्राउंड लेवल पर काम करने वाली स्वच्छता दीदियों का पूरा ध्यान रखा जाएगा.

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