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Supreme Court News : पीड़ित के मृत्यु पूर्व दिए बयान पर संदेह होने पर वह दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता: SC

पीठ ने कहा कि यह निर्धारित करने के लिए कोई सख्त नियम नहीं है कि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान को कब स्वीकार किया जाना चाहिए. न्यायालय का कर्तव्य मामले के तथ्यों और आसपास की परिस्थितियों के आधार पर इस प्रश्न का निर्णय करना और उसकी सत्यता के प्रति पूरी तरह आश्वस्त होना है. पढ़ें पूरी खबर...

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 25, 2023, 8:54 AM IST

Updated : Aug 25, 2023, 12:54 PM IST

नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए एक दोषी को उसके बेटे और दो भाइयों को जलाने के आरोप से बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि दोनों पीड़ितों के मौत से पहले दिये गये बयान आपस में मेल नहीं खाते हैं. न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान की सत्यता पर संदेह होने की स्थिति में, इसे केवल एक साक्ष्य माना जा सकता है, लेकिन दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं.

अदालत ने दोषी इरफान की तत्काल रिहाई का निर्देश दिया, जो पिछले आठ वर्षों से जेल में है. इरफान पर 5-6 अगस्त, 2014 की मध्यरात्रि को अपने घर, बिजनोर में बेटे इस्लामुद्दीन और दो भाइयों - इरशाद और नौशाद की हत्या में उसकी कथित भूमिका का मुकदमा चला था. जिसमें उसे दोषी पाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इरफान की दोषसिद्धि और मौत की सजा को रद्द कर कर दिया. मृतक कथित तौर पर 2014 में उसकी दूसरी शादी के खिलाफ थे.

पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि मरने से पहले दिया गया बयान सच होने का अनुमान रखते हुए पूरी तरह से विश्वसनीय होना चाहिए और आत्मविश्वास जगाने वाला होना चाहिए. जहां इसकी सत्यता पर कोई संदेह है या रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है कि मरने से पहले दिया गया बयान सच नहीं है, इसे केवल साक्ष्य के एक टुकड़े के रूप में माना जाएगा, लेकिन यह अकेले दोषसिद्धि का आधार नहीं हो सकता है.

इरफान की अपील को स्वीकार करते हुए, अदालत ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर निर्भर मामले में मृत्यु पूर्व दिए गए बयानों की विश्वसनीयता पर कानूनी स्थिति और भारतीय और विदेशी दोनों तरह के फैसलों का हवाला दिया. पीठ ने कहा कि मृत्युपूर्व बयान की स्वीकार्यता के संबंध में न्यायिक सिद्धांत यह है कि ऐसी घोषणा अंतिम समय में की जाती है, जब पीड़ित मृत्यु के कगार पर होता है और दुनिया की हर उम्मीद खत्म हो जाती है, तब उसके पास झूठ बोलने का कोई उद्देश्य नहीं रह जाता है ऐसी स्थिति में आदमी केवल सच बोलता है. इसके बावजूद, ऐसे मृत्युपूर्व बयानों को दिए जाने वाले महत्व पर विचार करते समय बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए.

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अदालत ने कहा कि केवल उसके भाइयों के दो मृत्युपूर्व बयानों के आधार पर दोषसिद्धि मुश्किल है, क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के एक प्रमुख गवाह की गवाही पर अविश्वास किया था. उनके भाई इरशाद और इस्लामुद्दीन ने आग लगाने वाले का नाम इरफान बताया था.

Last Updated : Aug 25, 2023, 12:54 PM IST

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