नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए एक दोषी को उसके बेटे और दो भाइयों को जलाने के आरोप से बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि दोनों पीड़ितों के मौत से पहले दिये गये बयान आपस में मेल नहीं खाते हैं. न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान की सत्यता पर संदेह होने की स्थिति में, इसे केवल एक साक्ष्य माना जा सकता है, लेकिन दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं.
अदालत ने दोषी इरफान की तत्काल रिहाई का निर्देश दिया, जो पिछले आठ वर्षों से जेल में है. इरफान पर 5-6 अगस्त, 2014 की मध्यरात्रि को अपने घर, बिजनोर में बेटे इस्लामुद्दीन और दो भाइयों - इरशाद और नौशाद की हत्या में उसकी कथित भूमिका का मुकदमा चला था. जिसमें उसे दोषी पाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इरफान की दोषसिद्धि और मौत की सजा को रद्द कर कर दिया. मृतक कथित तौर पर 2014 में उसकी दूसरी शादी के खिलाफ थे.
पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि मरने से पहले दिया गया बयान सच होने का अनुमान रखते हुए पूरी तरह से विश्वसनीय होना चाहिए और आत्मविश्वास जगाने वाला होना चाहिए. जहां इसकी सत्यता पर कोई संदेह है या रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है कि मरने से पहले दिया गया बयान सच नहीं है, इसे केवल साक्ष्य के एक टुकड़े के रूप में माना जाएगा, लेकिन यह अकेले दोषसिद्धि का आधार नहीं हो सकता है.