सक्सेस स्टोरी: सरगुजा के द्रोणाचार्य की कहानी, पांच सौ से अधिक खेल प्रतिभाओं को तराशा और बनाया खेल का सिकंदर - नेशनल और इंटरनेशनल प्लेयर
Success story of Surguja sports coach सरगुजा जिले में आदिवासी बच्चों के द्रोणाचार्य राजेश प्रताप सिंह हैं. इन्होंने जिले के गरीब आदिवासी बच्चों का जीवन संवार दिया है. इनके स्टूडेंट्स नेशनल ही नहीं इंटरनेशनल लेबल पर खेल में अपनी छाप छोड़ रहे हैं. अब तक कई बच्चों को खेलों का प्रशिक्षण देकर एक अलग मुकाम तक उन्होंने पहुंचा दिया है.Surguja sports teacher Rajesh Pratap Singh
सरगुजा:जिले के एक शख्स में खेल के प्रति ऐसी लगन है कि उसने दर्जनों बच्चों का भविष्य संवार दिया है.दरअसल, हम बात कर रहे हैं सरगुजा के द्रोणाचार्य राजेश प्रताप सिंह की. ये एक स्पोर्ट टीचर हैं. इन्होंने अपना जीवन खेल को ही समर्पित कर दिया है. आलम यह है कि आज कई बच्चों को आदिवासी अंचल के गांव से निकालकर राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय मंच तक इन्होंने पहुंचाया है. कुछ की तो खेल की वजह से नौकरी भी लग गई, कई गरीब परिवारों में इनकी वजह से खुशहाली आ गई है.
राजेश हर दिन देते हैं बच्चों को ट्रेनिंग: सरगुजा के रहने वाले राजेश प्रताप सिंह पहले सरकारी स्पोर्ट टीचर बने. इस दौरान राजेश बास्केटबॉल के कोच बने फिर वो नेशनल लेबल की प्रतियोगिता में रेफरी बनाए गए. उनकी इस सफलता के पीछे का संघर्ष भी गहरा है. राजेश हर रोज सुबह 5 बजे ग्राउंड पर होते हैं. शाम 4 बजे वो दोबारा ग्राउंड आ जाते हैं, इस दौरान सभी बच्चे भी ग्राउंड पहुंचते हैं, जो प्रशिक्षण ले रहे होते हैं, इसके बाद राजेश बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं. अब तक 500 से अधिक बच्चों को राजेश ने प्रशिक्षण दिया है.
2016 में टैलेंट सर्च कार्यक्रम की शुरुआत की: राजेश को साल 2011 में सरकारी नौकरी लगी. 2004 से उन्होंने बास्केटबॉल की कोचिंग देना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उन्होंने कई अलग-अलग खेलों का प्रशिक्षण भी शुरू कर दिया. हर खेल में उन्हें सफलता मिलती गई, संसाधनों का आभाव था फिर भी किसी तरह लोगों से सहयोग लेकर अपने इस अभियान को जारी रखा. कई अधिकारियों ने तो कई सामाजिक और राजनैतिक लोगों ने इनका समय-समय पर सहयोग किया. साल 2016 में राजेश ने तत्कालीन कलेक्टर की मदद से टैलेंट सर्च कार्यक्रम शुरू किया, जो आज भी चल रहा है.
मुझे बचपन से ही खेल में दिलचस्पी थी. हालांकि संसाधनों के अभाव में मैं काफी कुछ कर नहीं पाया. तभी से मेरे मन में ये मलाल था. तब मैंने ठाना कि मैं बच्चों की प्रतिभा को संसाधनों के आभाव में दबने नही दूंगा. साल 2016 में हमने तत्कालीन कलेक्टर की मदद से टैलेंट सर्च कार्यक्रम की शुरुआत की. सरगुजा के गांव-गांव से बच्चों का चयन शुरू किया. इनका चयन कर राजनांदगांव भेजा जाता था. वहां सेलेक्शन होने के बाद बच्चो के पढ़ने, रहने, खाने और ट्रेनिंग की निशुल्क व्यवस्था हो जाती थी. आज कई बच्चे अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुके हैं. कुछ की तो नौकरी भी लग चुकी है. -राजेश प्रताप सिंह, कोच
क्या कहते हैं राजेश के स्टूडेंट ?:राजेश के स्टूडेंट रजत एक प्राइवेट कॉलेज में स्पोर्ट ऑफिसर बन चुके हैं. रजत ने ईटीवी से बातचीत के दौरान कहा कि, "राजेश सर ग्राउंड को ही अपना घर समझते हैं. वो लगातार मेहनत करते हैं. मुझे भी उन्होंने ही ट्रेंड किया है. कई बच्चों का उन्होंने भविष्य बनाया है. सरगुजा की खेल प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने में उनका बड़ा योगदान है."
सरगुजा के द्रोणाचार्य की कहानी
3 खिलाड़ियों की लगी रेलवे में नौकरी: बता दें कि गोवा में अब तक का सबसे बड़ा 37 वें नेशनल गेम्स गोवा 2023-24 प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है. इसमें 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों ने हिस्सा लिया. इसमें मिनी गोल्फ रेफरी के तौर पर इन्हें शामिल किया गया था. वर्तमान में कार्फ बॉल, नेट बॉल, टारगेट बॉल, स्पीड बॉल, मिनी गोल्फ, वुडबॉल, ड्रॉप रोबॉल, फेंसिंग, सीलमबम, यंग यूडो, टेनिकोइट, शूटबॉल, जंप रोबॉल, टेबल सोकर, रॉप स्पीकिंग, गतका, रॉकबॉल जैसे खेलों का संचालन राजेश के द्वारा किया जा रहा है. इन खेलों के बदौलत सरगुजा के 3 खिलाड़ियों की नौकरी रेलवे में लग चुकी है. 1 खिलाड़ी ने एनआईएस सर्टिफिकेट प्राप्त कर लिया है. सैकड़ों बच्चों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और अपना भविष्य बनाने की ओर अग्रसर हैं.
सरगुजा के बच्चों के लिए द्रोणाचार्य हैं राजेश प्रताप सिंह:राजेश प्रताप सिंह ने अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में 34 गर्ल्स प्लेयर और 33 ब्वॉयज प्लेयर्स को पहुंचाया है. इसके साथ ही राष्ट्रीय ओपन गेम में जिले से 205 गर्ल्स प्लेयर औऱ 166 ब्वॉयज प्लेयर खेल चुके हैं. 6 लड़कियों ने खेलो इंडिया में प्रदर्शन किया है. राष्ट्रीय स्तर के स्कूल गेम में सरगुजा से 83 गर्ल्स प्लेयर्स और 69 ब्वॉयज प्लेयर्स खेल चुके हैं. इसी तरह राज्य स्तर की प्रतियोगिता में खेलने वाले बच्चों की संख्या काफी अधिक है. इनकी भी स्टूडेंट सरगुजा की उर्वशी बघेल हैं, जिन्होंने 4 बार छत्तीसगढ़ बास्केटबॉल टीम की कप्तानी की है. आज रेलवे में जॉब पाकर रेलवे की टीम से खेल रही हैं. इनकी ट्रेनिंग से सीखे बच्चों में कुल 4 बच्चे रेलवे में नौकरी पा चुके हैं, 1 को एनआईएस सर्टिफिकेट मिल चुका है.