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Jharkhand: 1951 में भारत से चीता लुप्त होने की हुई थी पुष्टि, वन्य जीवों के शिकार रोकने के लिए बनाए गए कानून - Palamu news

सरगुजा महाराज ने अंतिम चीता का शिकार (Hunted Last Panther) किया था. इस चीता का फोटो बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी को भेजा गया था. इस सोसायटी ने इस बात की पुष्टि की थी कि भारत से चीता लुप्त हो गए हैं.

Special conversation with wildlife expert Prof DS Srivastava
Special conversation with wildlife expert Prof DS Srivastava

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Published : Sep 19, 2022, 7:33 PM IST

पलामूः कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से भारत पहुंचे आठ चीते चर्चा के केंद्र में हैं. भारत में चीता लुप्त होने और बाघ के शिकार से जुड़ी कई कहानियां हैं. सतपुड़ा से पलामू तक जंगलों का कॉरिडोर हैं. इस कॉरिडोर में बाघ सहित कई वन्य जीव मिलते हैं. इसकी संख्या अधिक है. साल 1951-52 में भारत से चीता लुप्त होने की घोषणा हुई थी. उस दौरान क्या हुआ था और किसने इसकी पुष्टि की थी. इसकी जानकारी को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने वन्य प्राणी विशेषज्ञ प्रो डीएस श्रीवास्तव से विशेष बातचीत की. प्रो डीएस श्रीवास्तव वाइल्ड लाइफ इंडिया से जुड़े रहे हैं और पलामू टाइगर रिजर्व के एक्सपर्ट कमेटी में सदस्य रहे हैं. इसके साथ ही वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कई राज्यों में काम कर रहे हैं.

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डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि शिकार के कारण भारत से चीता लुप्त हो गए. वहीं, बाघों की संख्या घट गई. उन्होंने कहा कि सतपुड़ा से पलामू तक की जंगलों में बाघ और चीता की अच्छी खासी संख्या हुआ करती थी. कॉरिडोर में आज भी वन्य जीव हैं. लेकिन इनकी संख्या कम हो गई है. प्रो डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि सरगुजा महाराज के पड़ोसी औरैया महाराज ने साल 1951 में अंतिम तीन चीता का शिकार (Hunted Last Panther) किया था. शिकार होने के बाद चीता के फोटो बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी को भेजा गया था. इस सोसायटी ने इस बात की पुष्टि की कि भारत से चीता लुप्त हो गए हैं.

वन्य प्राणी विशेषज्ञ प्रो डीएस श्रीवास्तव से विशेष बातचीत

उन्होंने कहा कि भारत से चीता के लुप्त होने और बाघों की संख्या कम होने का बड़ा कारण है शिकार. सरगुजा महाराज ने अकेले 1100 से अधिक बाघों का शिकार किया था. इसमें 80 से अधिक बाघ पलामू के इलाके में शिकार किए गए थे. महाराज उस दौरान कई राज्यों में शिकार करने जाते थे. प्रो डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि 1961-62 में हाथियों पर शोध कर रहे थे. इस दौरान सरगुजा के महाराज से मिलने गए थे तो महाराज को देखा कि उनका हाथ कांप रहा था. हाथ कांपने से संबंधित सवाल किया तो उन्होंने कहा कि हाथ में रायफल आने के बाद शांत हो जाता है. प्रोफेसर कहते है कि महाराज को हाथ में रायफल लेने का आग्रह किया तो रायफल हाथ में लेते ही महाराज का हाथ शांत हो गया था.

प्रोफेसर ने शिकार से संबंधित कई सावाल सरगुजा महाराज से पूछे. महाराज ने स्वीकार किया था कि उन्होंने बड़ी संख्या में बाघों का शिकार किया है. लेकिन शिकार के नियम थे. कभी मादा या बच्चों का शिकार नहीं किया था. एक बार निशाना चूक जाने के बाद दोबारा उस वन्य जीव को निशाना नहीं बनाया जाता था. इसके साथ ही राजा या राज परिवार को छोड़ अन्य किसी को भी शिकार करने का अधिकार नहीं था.


1951-52 में भारत में वनों का राष्ट्रीयकरण शुरू हुआ. इस दौरान राजा और जमींदारों से जंगलों को लेकर सरकार ने अधिग्रहण कर लिया था. सरकार द्वारा अधिग्रहण करने के बाद वन्यजीवों के शिकार में बेतहाशा वृद्धि हुई. शिकार करने का अधिकार राज परिवार से निकलकर आम लोगों के बीच पहुंच गया था. प्रो डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि छोटे शिकारी बाघ और अन्य वन्य जीवों का शिकार किया करते थे. साल 1966-67 में भारत की सरकार ने वन्यजीवों का एक सर्वे करवाया था. इस सर्वे में पाया गया था कि भारत में इतने बाघ भी नहीं बचे हैं, जितना शिकार सरगुजा के महाराज ने किया था. स्थिति को देखते हुए 1971 में वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट को लागू किया गया. इसके साथ ही साल 1973-74 में देश के 9 इलाकों में एक साथ टाइगर प्रोजेक्ट शुरू किया गया था.

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