नई दिल्ली : कोरोना वायरस (covid-19) के गहराते संकट के बीच केंद्र और राज्यों का सिरफुटौव्वल जैसे हालात हैं. कोरोना टीके की कमी (covid vaccine shortage) के आरोप लगने शुरू हो गए हैं. हालात की गंभीरता को देखते हुए खुद पीएम मोदी ने कोरोना संक्रमण के हालात की दो बार समीक्षा की है. इसी बीच महाराष्ट्र में कोरोना वैक्सीन की कथित किल्लत का मामला सामने आया है. हालांकि, केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र में कोरोना टीके की कमी से इनकार किया है.
महाराष्ट्र में टीकों की कमी से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि ऐसी खबरें तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हैं. केंद्र ने कहा कि महाराष्ट्र में उपलब्ध कोरोना वैक्सीन की स्टॉक और अप्रयुक्त कोविड टीकों की डोज सही तस्वीर नहीं दिखाती.
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बता दें कि गुरुवार को महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने केंद्र से और अधिक कोरोना टीकों की मांग की थी. प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक के दौरान स्वास्थ्य मंत्री टोपे ने कहा, हमने 15-18 आयु वर्ग को दी जाने वाली तीसरी कोरोना वैक्सीन (precaution dose) के लाभार्थियों के मद्देनजर महाराष्ट्र में 40 लाख कोवैक्सीन और 50 लाख कोविशील्ड टीकों की जरूरत होगी. टोपे ने कहा था कि वर्तमान में जारी कोरोना टीकाकरण अभियान में वैक्सीन की कमी अनुभव की जा रही है.
महाराष्ट्र में कोविड-19 टीके की कमी संबंधी खबरों का खंडन करते हुए, शनिवार को स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि राज्य में कोवैक्सीन की 24 लाख से अधिक अप्रयुक्त खुराक थी और शुक्रवार को अतिरिक्त 6.35 लाख डोज दी गई. खबरों के मुताबिक, राज्य सरकार टीके की उपलब्धता में कमी के कारण टीकाकरण की गति नहीं बढ़ा पा रही है.
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'को-विन पर उपलब्ध उनके साप्ताहिक खपत के आंकड़ों के अनुसार, 15-17 वर्ष के आयु वर्ग के पात्र लाभार्थियों के लिए और एहतियाती खुराक देने के वास्ते महाराष्ट्र द्वारा कोवैक्सीन की औसत खपत प्रतिदिन लगभग 2.94 लाख खुराक है. इसलिए, राज्य के पास पात्र लाभार्थियों को कोवैक्सीन की खुराक देने के लिए लगभग 10 दिनों के वास्ते पर्याप्त खुराक है.'
केंद्र की ओर से जारी बयान में कहा गया, 'इसके अलावा, कोविशील्ड के लिए, राज्य में अब तक 1.24 करोड़ अप्रयुक्त और शेष खुराक उपलब्ध हैं. प्रतिदिन 3.57 लाख की औसत खपत के साथ 30 दिनों से अधिक समय तक लाभार्थियों को टीके की खुराक दी जा सकेगी.'
इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय ने मीडिया में आई उन खबरों का भी खंडन किया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि भारत में कोविड-19 की पहली दो लहरों में हुई मौतों की संख्या को 'काफी कम करके' बताया गया है. मंत्रालय ने उन खबरों को भ्रामक, जानकारी के अभाव वाला और शरारती प्रकृति का करार दिया. मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार के पास विश्व स्तर पर स्वीकार्य वर्गीकरण के आधार पर कोविड-19 से होने वाली मौतों को वर्गीकृत करने की एक बहुत व्यापक परिभाषा है.
मंत्रालय ने एक बयान में मीडिया के एक वर्ग में आयी उन खबरों का खंडन किया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कोरोना वायरस की पहली दो लहरों में कोविड-19 के कारण भारत में मरने वाले लोगों की वास्तविक संख्या से 'काफी कम करके बतायी गई' और वास्तविक मृतक संख्या 'काफी अधिक' हो सकती है तथा यह संख्या 30 लाख से अधिक हो सकती है.
मंत्रालय ने बयान में कहा, 'यह स्पष्ट किया जाता है कि इस तरह की मीडिया की खबरें भ्रामक और गलत सूचना पर आधारित हैं. ये तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और शरारती प्रकृति की हैं. भारत में जन्म और मृत्यु की सूचना की एक बहुत मजबूत प्रणाली है, जो एक विधान पर आधारित है और यह कवायद नियमित रूप से ग्राम पंचायत स्तर से जिला स्तर और राज्य स्तर तक होती है.'
मंत्रालय ने कहा कि पूरी कवायद भारत के महापंजीयक (आरजीआई) की निगरानी में की जा रही है. बयान में कहा गया है, 'इसके अलावा, भारत सरकार के पास विश्व स्तर पर स्वीकार्य वर्गीकरण के आधार पर कोविड-19 से मौतों को वर्गीकृत करने की एक बहुत व्यापक परिभाषा है. होने वाली सभी मौतों की स्वतंत्र रूप से राज्यों द्वारा सूचना दी जा रही है और इसे केंद्रीय रूप से संकलित किया जा रहा है. राज्यों द्वारा अलग-अलग समय पर कोविड-19 मृत्यु से संबंधित, जो पीछे का आंकड़ा मुहैया कराया जाता है, उसका भी नियमित रूप से भारत सरकार के आंकड़ों में मिलान किया जा रहा है.'
बयान में कहा गया है कि बड़ी संख्या में राज्यों ने नियमित रूप से मृत्यु संबंधित अपनी संख्या का मिलान किया है और मृत्यु से संबंधित पीछे के आंकड़े पारदर्शी तरीके से सूचित किये हैं. इसलिए, यह कहना कि मौतों की संख्या को कम करके बताया गया, बिना आधार और बिना औचित्य के हैं.
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मंत्रालय ने कहा कि भारत में कोविड से मौत की सूचना पर लोग मौद्रिक मुआवजे के हकदार होते हैं. इसलिए, मृत्यु संख्या को कम करके बताने की संभावना कम है. बयान में कहा गया है, 'महामारी जैसी विपरीत स्थिति के दौरान, वास्तविक मृत्यु दर कई कारकों के कारण सूचित मौतों से अधिक हो सकती है, यहां तक कि सबसे मजबूत स्वास्थ्य प्रणालियों में भी. बयान में कहा गया है, भारत में मरने वाले लोगों की संख्या को लेकर ये वर्तमान मीडिया रिपोर्ट एक अध्ययन पर आधारित है, जो प्रकृति में पक्षपातपूर्ण लगती है क्योंकि इसमें केवल कोविड-19 लक्षणों वाले वयस्कों को ही लिया गया और यह सामान्य आबादी का प्रतिनिधि नहीं हो सकता है.
(एजेंसी इनपुट)