पिथौरागढ़ :कहते हैं पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ में नहीं टिकती, ये सिर्फ एक कहावत नहीं बल्कि पहाड़ का सच है. पहाड़ से पलायन को रोकने के सरकार के लाख दावों के बावजूद हकीकत एकदम जुदा है. अगर बात करने चीन और नेपाल बॉर्डर से लगे सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की तो यहां पिछले 3 सालों में पलायन का ग्राफ घटने के बजाए लगातार बढ़ता जा रहा है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार यहां पहले से ही 41 गांवों में 50 फीसदी से अधिक पयालन हो चुका है.
वहीं, अब जल-जीवन मिशन के ताजा सर्वे में जो आंकड़े सामने आए हैं. वो बेहद चौकाने वाले हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, जिले में वर्तमान में कुल 1,542 गांव ही आबाद हैं, जबकि तीन साल पहले तक जिले में 1,601 गांव आबाद थे. जल जीवन मिशन के आंकड़ों के मुताबिक बीते 3 साल में जिले के 59 गांव और खाली हो चुके हैं. ये हाल तब है, जब रिवर्स पलायन को लेकर सरकार तमाम तरह की योजनाएं चला रही है.
पिथौरागढ़ जिले के 59 गांव हुए वीरान:उत्तराखंड राज्य बने 21 साल हो गए हैं. बीते दो दशकों में सरकार ने सीमांत जिले पिथौरागढ़ में विकास के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च कर दिया है, लेकिन आज भी सीमांत के लोग विभिन्न मूलभूत सुविधा से वंचित हैं. आज भी सीमांत के कई गांवों में सड़क सुविधा नहीं है, जबकि बिजली, पानी, संचार, स्वास्थ्य और रोजगार के भी बुरे हाल हैं, जिस कारण पलायन लगातार जारी है.
वर्तमान में पिथौरागढ़ जिले में 59 गांव ऐसे हैं, जहां अब कोई भी नहीं रहता यानि की ये गांव वीरान हो चुके हैं. इनमें सबसे अधिक 15 गांव पिथौरागढ़ तहसील के हैं. इसके बाद 13 गांव गंगोलीहाट, डीडीहाट और बेरीनाग के छह-छह, धारचूला के चार, गणाई-गंगोली, पांखू और थल के तीन-तीन गांव शामिल हैं. इन गांवों में अब कोई नहीं रहता. हालांकि इनमें कुछ गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी खेती की जाती है.
ये गांव हुए वीरान:सीमांत पिथौरागढ़ जिले के रौलियागांव, थली, घटपाथर, कपतड़, पंतखेत, रौलियागांव, तैनखोला, शालीबोटी, खुरियागांव, भेतकुड़ी, किरखंडे, सरड़ा, दांगड़, चिटगलिया, गिंडीगांव, दुविधा, कुठेरी, कालावन, ग्यालभाट, चौड़ा, भैसढुंगा, ढोलीढुंगा, सैनकनला, मनथला, भांतड, खिमलिंग, गुमकाना, लूम, कंडेरा पोखरी, गरसोली, नामक, वलना, किरमोलिया, ननैत, कसाडी, गडस्यारी आदि गांव जनशून्य हो गए हैं.
41 गांवों में 50 फीसदी से अधिक पलायन:पलायन आयोग के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो पिथौरागढ़ जिले में 41 गांव ऐसे हैं, जहां 50 फीसदी से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं. पलायन की सबसे अधिक मार गंगोलीहाट विकासखंड पर पड़ी है, गंगोलीहाट विकासखण्ड में 25 गांव ऐसे हैं, जो 50 फीसदी से अधिक खाली हो चुके हैं. इसी तरह बेरीनाग विकासखण्ड में 12 गांव, कनालीछीना और मूनाकोट विकासखंड में 2-2 गांव ऐसे है, जो आधे खाली हो गए हैं. ये बात और है कि खाली हो चुके गांवों में रिवर्स पलायन के लिए सरकार कई योजनाओं को भी संचालित कर रही है.
पलायन का बड़ा कारण:पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुरे हाल हैं. राज्य गठन के बाद भले ही यहां अस्पतालों और चिकित्सकों की संख्या बढ़ी हो लेकिन हकीकत ये है कि आज भी लोग इलाज के लिए मैदानी क्षेत्रों पर ही निर्भर हैं, जिले के एकमात्र महिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड के लिए एक रेडियोलॉजिस्ट तक नहीं है. जिला और महिला अस्पताल दोनों में विशेषज्ञ चिकित्सकों और आधुनिक इलाज की तकनीकों का अभाव है.
40 से अधिक गांवों में सड़क सुविधा नहीं:आजादी के 75 साल बाद भी पिथौरागढ़ जिले में 40 से अधिक गांव सड़क सुविधा से वंचित हैं. इन गांवों की कुल आबादी 50 हजार से अधिक है, ये गांव अति दुर्गम इलाके में हैं. इन गांवों की सड़क से दूरी 5 किलोमीटर से लेकर 27 किलोमीटर तक है. यहां जब भी कोई बीमार होता है, तो मरीज को डोली में बैठाकर ही लोग सड़क तक उठाकर लाते हैं. लोगों को उम्मीद थी कि अलग राज्य बनने के बाद उनके गांव तक सड़क पहुंचेगी लेकिन उन्हें मायूसी ही मिली है.