नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने राज्य में स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों (Postgraduate Medical Courses) में दाखिले के वास्ते सेवारत अधिकारियों के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के फैसले को गुरूवार को बरकरार रखा. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की इस दलील को स्वीकार करना कठिन है कि बीच में ही नियमों में बदलाव के कारण सरकार का प्रस्ताव चालू शैक्षणिक वर्ष में लागू नहीं होना चाहिए.
पीठ ने कहा कि 'हमारा मानना है कि बंबई उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है.' शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दूसरे दौर के बाद नहीं भरी जाने वाली कोई भी स्नातकोत्तर मेडिकल सीट सामान्य श्रेणी में जाएगी. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने दलील दी कि सेवारत अभ्यर्थियों के लिए आरक्षण को बीच में पेश किया गया था, जो शीर्ष अदालत के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें कहा गया था कि दाखिला प्रक्रिया शुरु होने के बाद उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा कि सेवारत अधिकारियों के लिए राज्य सरकार का 20 प्रतिशत कोटा प्रदान करने का निर्णय मेधावी अभ्यर्थियों के लिए ठीक नहीं था. ग्रोवर ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई आंकड़ा एकत्र नहीं किया है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि स्नातकोत्तर (पीजी) के लिए 1,416 सीटों में से 286 सीट सेवा के दौरान (इन-सर्विस) कोटा के लिए उपलब्ध थीं, लेकिन केवल 69 अभ्यर्थी नीट पीजी के लिए उपस्थित हुए.