नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने सोमवार को कहा कि आंखों देखा साक्ष्य बेहतर साक्ष्य होता है, जब तक कि उन पर संदेह करने के कारण नहीं हों. अदालत ने हत्या के लिए चार लोगों को मिली आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की.
न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि जिन मामलों में चिकित्सीय साक्ष्य और मौखिक साक्ष्य के बीच काफी विरोधाभास होता है, उनमें आंखों देखे साक्ष्य पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. पीठ ने कहा, 'आंखों देखा साक्ष्य बेहतर साक्ष्य माना जाता है, जब तक कि उन पर संदेह करने के कारण नहीं हों. जिन मामलों में चिकित्सीय साक्ष्य और मौखिक साक्ष्य में विरोधाभास होता है और चिकित्सीय साक्ष्य सभी प्रत्यक्ष साक्ष्यों को असंभव बनाते हों और सभी प्रत्यक्ष साक्ष्यों के सच होने की संभावना से इंकार करते हों, वहां आंखों देखे साक्ष्य पर विश्वास नहीं किया जा सकता है.'
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