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Chhawla rape case : उत्तराखंड की 'निर्भया' कर रही न्याय का इंतजार

छावला रेप केस में दिल्ली हाईकोर्ट ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई, जिसके बाद परिवार को यह लगा कि अब उनकी बेटी को इंसाफ मिल जाएगा. इस दौरान दोषी फांसी की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए और तब से आजतक पीड़ित परिवार न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहा है. करीब 10 साल के इंतजार के बाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और आरोपियों की सजा पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

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सुप्रीम कोर्ट

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Published : Apr 7, 2022, 5:54 PM IST

Updated : Apr 7, 2022, 6:28 PM IST

नई दिल्ली:छावला रेप केस में 10 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन दोषियों की सजा के मुद्दे पर आदेश सुरक्षित रख लिया है. जिन्हें दिल्ली की अदालत ने 19 साल की युवती से बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई थी. यह मामला उत्तराखंड के पौड़ी की रहने वाली 19 साल की युवती के अपहरण, उसके साथ दरिंदगी और हैवानियत का है. जिसमें अभियुक्‍तों ने उसके साथ रेप के बाद आंखों में तेजाब तक डाल दिया था. रोंगटे खड़े कर देने वाली यह घटना साल 2012 की है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने तीनों दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की है.

न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दोषियों की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा गया था.

इस दरिंदों को फांसी की सजा दिलाने की मांग को लेकर पिछले 10 सालों से लड़की के गरीब माता-पिता हर उस दर पर जा रहे हैं, जहां से भी उन्हें इंसाफ की उम्मीद दिखाई देती है. ऐसे में आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. उत्तराखंड के पहाड़ों से निकलकर एक परिवार दिल्ली जाकर सिर्फ इसलिए बसा था ताकि वह अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे सके. पढ़-लिखकर बच्चे नाम कमा सकें लेकिन इस परिवार की बड़ी बेटी के साथ दिल्ली में जो हुआ वो शब्दों में भी बयां नहीं किया जा सकता. यहां हम पीड़िता का नाम और उसके परिवार की जानकारी तो नहीं दे सकते है, लेकिन जिस बेटी के साथ ये दरिंदगी हुई, उसे उत्तराखंड की निर्भया जरूर कह सकते हैं.

उत्तराखंड की वो बेटी अपने परिवार का साहस बनना चाहती थी. वो अपने भाई को अच्छी परवरिश देना चाहती थी इसलिए उसने दिल्ली में पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी करनी भी शुरू कर दी थी. पिता एक प्राइवेट संस्थान में गार्ड की नौकरी कर रहे थे, लेकिन फरवरी 2012 में एक दिन ऐसा भी आया है कि 'निर्भया' के सारे सपने टूट गए. परिवार का सबकुछ लूट गया.

14 फरवरी का काला दिन:रोजना की तरह 14 फरवरी 2012 को भी 'निर्भया' अपने काम पर जाने के लिए घर से निकली थी, लेकिन उस दिन वो देर शाम तक घर नहीं लौटी. परिजनों ने उसकी काफी तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं लगा. बहुत खोजने के बाद इतनी सूचना जरूर मिली कि कुछ लोग एक लड़की को गाड़ी में डालकर दिल्ली से बाहर ले जाते हुए दिखाई दिए हैं.

पुलिस ने जांच पड़ताल शुरू की तो दो दिन बाद यानी 16 फरवरी को लड़की का शव हरियाणा में गन्ने के एक खेत में मिला था. उसके साथ जो क्रूरता की गई थी वो दिल्ली की निर्भया से भी भयावह थी. परिजनों की मानें तो उत्तराखंड की निर्भया को आरोपियों के किसी जानवर की तरह नोंचा गया था. उसे न सिर्फ मारा पीटा गया था, बल्कि दो दिनों तक लगातार उसके साथ गैंगरेप हुआ था. यही नहीं, उसकी आंखों में तेजाब डाल दिया गया था, उसके नाजुक अंगों से शराब की बोतल मिली थी. पानी गरम करके उसके शरीर को दाग दिया गया था.

तत्कालीन दिल्ली सीएम शीला दीक्षित ने कही थी बेहद अजीब बात:पीड़िता परिवार न तो इतना रसूखदार था कि वो किसी नेता के पास जाकर इंसाफ की फरियाद कर सके और न ही उनके पास इतने पैसे थे कि वो महंगा वकील कर पाएं. लिहाजा केस धीरे-धीरे आगे बढ़ाना शुरू हुआ. बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए पिता ने हर वो मुमकिन कोशिश की जो वो कर सकते थे. यहां तक कि उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से भी मुलाकात की थी. निर्भया की मां इस बारे में बताती हैं कि तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित ने उनकी बेटी के लिए जो शब्द कहे थे वो आज भी उनके कानों में गूंजते हैं. हालांकि, अब शीला दीक्षित इस दुनिया में नहीं है.

हाई कोर्ट से फांसी मिली लेकिन मामला सालों से विचाराधीन:परिवार कानूनी रूप से लड़ाई लड़ता रहा. लगभग तीन साल के बाद दिल्ली हाई कोर्ट का इस मामले में जब फैसला आया तो निचली अदालत और ऊपरी अदालत ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई, जिसके बाद परिवार को यह लगा कि अब उनकी बेटी को इंसाफ मिल सकेगा. इस दौरान दिल्ली सरकार ने पीड़ित परिवार को एक लाख रुपए का मुआवजा देकर सांत्वना देने की भी कोशिश की. इस दौरान दोषी फांसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए और तब से आजतक पीड़ित परिवार अपनी लड़ाई जारी रखे हुये आगे बढ़ रहा है. पीड़ित परिवार के पास न तो पैसा है और न ही ऐसे कोई संपर्क जिससे वो इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से लड़ सकें. वहीं, सालों बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की और आरोपियों की सजा पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

Last Updated : Apr 7, 2022, 6:28 PM IST

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