नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय मूल के केन्याई नागरिक को बच्चे की कस्टडी सौंपने का आदेश वापस ले लिया है. कोर्ट ने पाया कि आदेश पाने के लिए केन्याई नागरिक ने धोखाधड़ी की और भौतिक तथ्यों को कोर्ट से संपर्क किया था.
यह देखते हुए कि पिता ने बच्चे की कस्टडी पाने के बाद उसे केन्या ले जाने के लिए अदालत पहुंचा और से तय शर्तों का उल्लंघन किया है. कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह बच्चे की कस्टडी को सुरक्षित करे और उसे मां को सौंपने के लिए कार्यवाही शुरू करे.
कोर्ट ने केंद्र सरकार और केन्या स्थित भारतीय दूतावास को भी मां की मदद करने और बच्चे के पिता पेरी कंसाग्रा के खिलाफ स्वत: अवमानना का मामला दर्ज करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने पेरी कंसाग्रा को 16 नवंबर को उसके सामने पेश होने का निर्देश दिया है.
साथ ही निर्देश दिया कि कंसाग्रा की ओर से जमा की गई रकम में से 25 लाख रुपये मुकदमेबाजी की लागत के रूप में उसकी पत्नी को दिया जाए. जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि यह मूलभूत है कि अदालत में आने वाले पक्ष को सच के साथ आना चाहिए, खासकर बच्चों की कस्टडी के मामलों में. कोई भी कपटपूर्ण आचरण जिसके आधार पर अदालत के आदेश के तहत नाबालिग की कस्टडी प्राप्त की जाती है, वह भरोसे के तत्व को नकार देगा.
जहां भी नाबालिग की हिरासत माता-पिता या संबंधित पक्षों के बीच विवाद का मामला है, माता-पिता के अधिकार क्षेत्र में नाबालिग की प्राथमिक हिरासत न्यायालय के पास है, जो किसी व्यक्ति को तब सौंपी जा सकती है, जब वह न्यायालय की नजर में सबसे उपयुक्त व्यक्ति होगा. धोखाधड़ी के आचरण के साथ न्यायालय से ऐसी कस्टडी प्राप्त करने के लिए शुरू की गई कोई भी कार्रवाई न्यायालय की प्रक्रिया पर धोखाधड़ी होगी.
क्या है पूरा मामला
अक्टूबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट की 3-जजों की पीठ ने 2:1 बहुमत से माना था कि भारतीय मूल के पिता, जो उस समय केन्या में रह रहे थे, बच्चे की कस्टडी के हकदार थे. जहां जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने बेटे की कस्टडी पिता को दी था, वहीं जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा था कि मां कस्टडी की हकदार है.