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सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला पलटकर ' स्किन टू स्किन टच' की कन्फ्यूजन को दूर कर दिया, जानिए क्या था मामला?

जनवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के बाद स्किन टू स्किन टच को लेकर काफी चर्चा हुई. इसके कई मायने और मतलब निकाले गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटकर स्किन टू स्किन टच और पॉक्सो एक्ट के प्रावधान को स्पष्ट कर दिया.

SC quashing 'skin-to-skin' judgment
SC quashing 'skin-to-skin' judgment

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Published : Nov 18, 2021, 3:45 PM IST

Updated : Nov 18, 2021, 4:08 PM IST

हैदराबाद :सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए 'स्किन टू स्किन' टच आवश्यक है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 19 जनवरी 2021 को एक फैसले में कहा था कि नाबालिग लड़की के वक्षस्थल को जबरन छू लेने मात्र को यौन उत्पीड़न की संज्ञा नहीं दी जा सकती. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरोपी को पोक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत आरोपी को 3 साल के कठोर कारावास और एक महीने के साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी.

जस्टिस यू ललित, एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने पलटा बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला.

जानिए, मामला क्या था :बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के पास एक मामला सुनवाई के लिए आया, जिसमें 12 की बच्ची से छेड़खानी के दोषी ने अपराध के आरोपों से बरी करने की अपील की थी. उसे नागपुर सत्र न्यायालय ने आईपीसी सेक्शन 354 के तहत इस व्यक्ति को एक साल की और पोक्सो के तहत तीन साल की सज़ा सुनाई थी. दोषी पाए गए व्यक्ति ने लालच देकर 12 साल की एक लड़की को अपने घर बुलाया था और जबरन उसके वक्षस्थल को छूने की कोशिश की थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिया था चर्चित फैसला :सुनवाई के बाद हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की न्यायाधीश पुष्पा वी गनेडीवाला ने जनवरी में इस पर अपना फैसला सुनाया. फैसले में उन्होंने लिखा कि सिर्फ वक्षस्थल को जबरन छूना मात्र यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा, इसके लिए यौन मंशा के साथ स्किन टू स्किन टच होना ज़रूरी है. बच्ची के वक्षस्थल छूना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-354 के तहत महिला के शील भंग की परिभाषा के अंतर्गत आता है. कोर्ट ने दोषी को इस आधार पर पॉक्सो एक्ट से बरी कर दिया था कि पीड़िता ने कपड़े पहने थे और कोई स्किन टू स्किन संपर्क नहीं था.

भारत में इस साल ही पाक्सो एक्ट के तहत 40 हजार मामले दर्ज किए गए हैं.

फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील :बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला काफी चर्चित रहा. भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राष्ट्रीय महिला आयोग और महाराष्ट्र राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद 30 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. गुरुवार को जस्टिस यू ललित, एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने फैसला सुनाया और नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति को पॉक्सो के तहत दोषी करार दिया.

' अदालतें अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं' : सुप्रीम कोर्ट

बेंच ने अपने फैसले में कहा कि पॉक्सो के तहत 'यौन हमले' के अपराध का घटक यौन इरादा है और ऐसी घटनाओं में स्किन टू स्किन टच प्रासंगिक नहीं है. पॉक्सो की धारा 7 के तहत 'स्पर्श' या 'शारीरिक संपर्क' तक सीमित करना बेतुका है. यह अधिनियम लागू करने की मंशा को नष्ट कर देगा, जो बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया है. अगर अपराधी शारीरिक रूप से टटोलते समय दस्ताने या किसी अन्य समान सामग्री का उपयोग करता है और उसे इसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा तो यह प्रावधान की बेतुकी व्याख्या भी होगी. पीठ ने कहा कि जब विधायिका ने स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून का उद्देश्य अपराधी को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता.

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच. फाइल फोटो

पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 (POCSO ACT SECTION 7-8) के तहत ऐसे मामले पंजीकृत किए जाते हैं, जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है. POCSO एक्ट की धारा 8 के तहत ऐसे अपराध की सजा 3-5 साल है, जबकि IPC की धारा 354 के तहत एक से 2 साल तक की सजा का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दोषी व्यक्ति को तीन साल का कठोर कारावास और एक महीने की साधारण कैद की सजा भुगतनी होगी. बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के बाद दोषी को तीन साल की कैद से राहत मिल गई थी.

इतिहास में दूसरी बार अटार्नी जनरल ने हाई कोर्ट के खिलाफ अपील की

गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. इतिहास में यह दूसरी बार था कि अटार्नी जनरल ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. वेणुगोपाल ने पहले सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट का विवादास्पद फैसला एक खतरनाक और 'अपमानजनक मिसाल' स्थापित करेगा और इसे उलटने की जरूरत है. इससे पहले 1985 में अटार्नी जनरल ने राजस्थान उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ अपील की थी. तब राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपी को सार्वजनिक रूप से फांसी देने का निर्देश दिया गया था.

Last Updated : Nov 18, 2021, 4:08 PM IST

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