नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने पेंशन को एक सतत दावा प्रक्रिया करार देते हुए बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) का पेंशन बकाया न देने संबंधी एक फैसला खारिज कर दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने यह मानने के बावजूद पेंशन बकाया रोकने का फैसला दिया कि याचिकाकर्ताओं को 60 साल के बजाय 58 साल की उम्र में गलत तरीके से सेवानिवृत्त कर दिया गया था.
शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया कि हालांकि उच्च न्यायालय ने माना था कि मूल याचिकाकर्ताओं को 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त करने की कार्यवाही या उन्हें 60 वर्ष की आयु तक सेवा में बने रहने की अनुमति नहीं देने का गोवा सरकार का कदम अवैध था, लेकिन उसने यह निर्णय देकर गलती की थी कि अपीलकर्ता पेंशन के किसी भी बकाए का हकदार नहीं होंगे.
न्यायमूर्ति एम आर शाह (Justice MR Shah) और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना (Justice BV Nagaratha) की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा संशोधित दरों पर पेंशन से इनकार करने और सिर्फ एक जनवरी, 2020 से देयता के निर्णय का कोई औचित्य नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय देरी के आधार पर अपने समक्ष रिट याचिकाकर्ताओं को दो अतिरिक्त वर्षों की अवधि के लिए किसी भी वेतन से इनकार करने के लिए सही या उचित हो सकता है, यदि याचिकाकर्ता सेवा में बने रहते.
पीठ ने 20 मई को दिए अपने फैसले में कहा, 'पेंशन की बकाया राशि से उसी तरह इनकार करने का कोई औचित्य नहीं है, जैसा कि वे 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त हुए होते.' शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फरवरी 2020 के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील पर फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया था कि इस मामले के रिट याचिकाकर्ताओं को 58 वर्ष के बजाय 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होना चाहिए था. पीठ ने अपीलकर्ताओं के बकाये का भुगतान चार सप्ताह के भीतर करने का आदेश भी दिया.
ये भी पढ़ें -वैधानिक अधिकरणों पर संवैधानिक अदालतों के आदेश प्रबल होंगे: सुप्रीम कोर्ट