नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले से जुड़ी दलीलों, लिखित प्रतिवेदनों और फैसले की जानकारी मुहैया कराने वाला एक वेब पेज सोमवार को शुरू किया. संविधान के 'मूल ढांचे' की अहम अवधारणा पेश करने वाले इस मामले पर सुनाए गए फैसले को 24 अप्रैल को 50 वर्ष पूरे हो गए. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक पीठ ने कहा, "हमने एक वेब पेज समर्पित किया है, जिसमें केशवानंद मामले से संबंधित सभी लिखित प्रतिवेदन और अन्य जानकारी है, ताकि विश्व भर के शोधकर्ता इसे पढ़ सकें. इस मामले में फैसला 50 साल पहले यानी 24 अप्रैल, 1973 को सुनाया गया था.
अदालत कक्ष में मौजूद वकीलों ने इस कदम की सराहना की और कहा कि इससे कानून शोधकर्ताओं, छात्रों और वकीलों को काफी मदद मिलेगी. 13 न्यायाधीशों की एक पीठ ने छह के मुकाबले सात के बहुमत से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए संविधान के 'मूल ढांचे' की अवधारणा रखी थी. उसने संसद की संशोधन शक्ति को प्रतिबंधित करते हुए फैसला सुनवाया था कि वह संविधान की मूल संरचना को नहीं छू सकती.
केशवानंद भारती का मामला सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में ऐसा एकमात्र केस था, जिसका निर्णय लेने के लिए पहली बार 13 जजों की सबसे बड़ी पीठ बैठी थी. 13 जजों में से सात ने जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने भारत के संविधान की रक्षा की और देश में एक दलीय सरकार के शासन को आने से रोका. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस एम सीकरी, जस्टिस जे एम शेलत, जस्टिस ग्रोवर, जस्टिस के एस हेगड़े, जस्टिस मुखर्जी, जस्टिस पी जगनमोहन रेड्डी, जस्टिस एच आर खन्ना ने बहुमत का फैसला सुनाया था. अल्पसंख्यक राय जस्टिस ए एन रे, जस्टिस मैथ्यूज, जस्टिस बेग, जस्टिस द्विवेदी, जस्टिस पालेकर और जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ ने दी थी.
केशवानंद भारती के मामले में फैसले का दिन मुख्य न्यायाधीश एसएम सीकरी के लिए भी अहम था, क्योंकि वह उनकी सेवानिवृत्ति का दिन भी था. पूरी मुकदमेबाजी को कोयला, खनन और चीनी कंपनियों द्वारा वित्त पोषित किया गया था, जो केशवानंद भारती के साथ याचिकाकर्ता भी थे. पांच महीनों में 68 दिनों तक मामले की सुनवाई हुई और अंत में 703 पन्नों का फैसला सुनाया गया.
(एजेंसी-इनपुट)