नई दिल्ली : वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों के बारे में जानकारी के नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है. शीर्ष अदालत के पिछले फैसलों का हवाला देते हुए भूषण ने कहा कि अगर नागरिकों को उम्मीदवारों के बारे में जानने का अधिकार है, तो उन्हें निश्चित रूप से यह भी जानने का अधिकार है कि राजनीतिक दल को कौन फंड कर रहा है. सीजेआई डी.वाई.चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की एक संवैधानिक पीठ मामले की सुनवाई कर रही है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर एक जनहित याचिका के लिए अपील करते हुए, भूषण ने अदालत में बताया कि चुनावी बॉन्ड योजना ने एक अपारदर्शी उपकरण पेश किया है. इस वजह से सरकार के अलावा किसी को पता नहीं चल पाता कि किसने किसको कितना योगदान दिया. उन्होंने कहा, "राजनीतिक दल को यह भी नहीं पता होगा कि किसने दान दिया है. पार्टी के लिए यह कहना खुला है - हमने सुबह अपना कार्यालय खोला और देखा कि ये 100 करोड़ के बॉन्ड हमारे दरवाजे के नीचे पड़े थे. हमने उन्हें जमा कर दिया, हमें नहीं पता कि किसने दिया उन्हें दे दिया. ये वाहक बॉन्ड हैं." उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को बस इतना बताना होगा कि उन्हें मिले कुल चंदे में से उन्हें 500 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए मिले और यह बॉन्ड किसने खरीदा और किस पार्टी ने भुनाया इसका मिलान केवल भारत का स्टेट बैंक ही कर सकता है, जो केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है.
भूषण ने अदालत में कहा, "अगर ऐसा है, तो केवल एक कानून प्रवर्तन एजेंसी ही जान सकती है, जिसका नियंत्रण सरकार या खुद सरकार के पास है, क्योंकि वह स्टेट बैंक को नियंत्रित करती है. यह जानकारी कोई और नहीं जान सकता.'' उन्होंने बताया कि सरकार ने कंपनियों के लिए सालाना मुनाफे की 7.5 फीसदी की सीमा हटा दी है. इसका मतलब यह है कि घाटे में चल रही कंपनी या कोई व्यवसाय नहीं करने वाली कंपनी (शुद्ध शेल कंपनी) भी दान कर सकती है. उन्होंने अदालत में कहा, "यह राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के स्रोतों के बारे में जानकारी पाने के लोगों के अधिकार को खत्म करता है. यह अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत नागरिकों का मौलिक अधिकार है."
भूषण ने जोर देकर कहा कि चुनावी बॉन्ड भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं क्योंकि यह मानने का अच्छा कारण है कि ये बॉन्ड सत्ता में पार्टियों को रिश्वत के माध्यम से दिए जा रहे हैं. लगभग सभी बॉन्ड सत्ताधारी पार्टी को प्राप्त हो चुके हैं. भूषण ने कोर्ट में कहा, "50 प्रतिशत से अधिक केवल केंद्र में सत्तारूढ़ दल को प्राप्त हुआ है और बाकी केवल राज्यों में सत्तारूढ़ दल को प्राप्त हुआ है, एक प्रतिशत भी विपक्षी दलों को नहीं मिला है, जो सत्तारूढ़ नहीं हैं." उन्होंने कहा कि वस्तुतः सभी बॉन्ड कॉरपोरेट्स द्वारा यह कहते हुए खरीदे गए हैं कि लगभग 95 प्रतिशत 1 करोड़ और उससे अधिक मूल्यवर्ग में हैं.
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि केंद्र ने इस योजना के माध्यम से कॉर्पोरेट दान पर लगी सीमा को भी हटा दिया है और एफसीआरए में संशोधन किया है. "यह देश में लोकतंत्र को नष्ट और परेशान करता है. क्योंकि यह सत्ताधारी बनाम विपक्षी दलों के बीच, या राजनीतिक दलों और स्वतंत्र उम्मीदवारों के बीच एक समान अवसर की अनुमति नहीं देता है." वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया कि चुनावी बॉन्ड योजना शुरू होने के बाद से पांच वर्षों में, चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को योगदान किसी भी अन्य पद्धति से कहीं अधिक है. भूषण ने कहा कि यह साबित करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं कि निगमों द्वारा सत्ताधारी दलों के राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से रिश्वत दी जा रही है.