दिल्ली

delhi

हाई काेर्ट के आदेश पर सुप्रीम काेर्ट ने जताई नाराजगी, जानें पूरा मामला

By

Published : Jul 3, 2021, 6:00 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को तलब करने के झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश को लेकर नाराजगी जताई.

जमानत
जमानत

नई दिल्ली: न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय (high Court) इस मामले के दायरे से बाहर निकल गया और अगर वह पाता है कि तथ्यात्मक स्थितियां इस तरह की कार्रवाई का समर्थन करती हैं, तो वह ज्यादा से ज्यादा इस मामले को जनहित याचिका बना सकता था.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने 29 जून को पारित अपने आदेश में कहा कि अधिकारियों के पेश होने की कोई आवश्यकता नहीं है और चूंकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका को लेकर चल रही कार्यवाही बंद हो गई है, इसलिए अब इस मामले में कुछ भी शेष नहीं है.

बता दें कि पीठ नौ अप्रैल और 13 अप्रैल को पारित उच्च न्यायालय के दो आदेशों के खिलाफ झारखंड सरकार (Jharkhand government) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. उच्च न्यायालय ने राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव और स्वास्थ्य सचिव सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया था और उनसे पूछा था कि उनके खिलाफ अवमानना ​​कार्रवाई क्यों न की जाए. अपनी याचिका में राज्य सरकार ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अप्रत्याशित ढंग से उक्त कार्यवाही जारी रखी और जांच अधिकारियों और सरकारी डॉक्टरों की ओर से हुई कथित चूक पर राज्य से संबंधित सामान्य प्रकृति के कई निर्देश पारित किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप अभियुक्त पर कथित रूप से झूठा मुकदमा चलाया गया, जिसने अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दी थी.

उच्च न्यायालय धनबाद निवासी बसीर अंसारी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिस पर उसकी पत्नी अंजुम बानो द्वारा शादी के एक साल के भीतर अपने मायके में आत्महत्या करने के बाद आईपीसी की धारा 498ए और अन्य प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है. अंसारी ने कहा कि उसकी शादी सात जुलाई, 2018 को हुई थी और उसकी पत्नी ने अगस्त 2018 में पेट में दर्द की शिकायत की, जिसके बाद उसका अल्ट्रासाउंड किया गया और यह पाया गया कि वह तीन महीने की गर्भवती है.

बसीर ने कहा कि अंजुम बानो के पिता को सूचित किया गया और उसे उसके पिता को सौंप दिया गया, जो उसे अपने गांव ले गये और समय से पहले गर्भ को समाप्त कर दिया गया. इसके बाद अंजुम बानो ने अपने पिता के घर पर आत्महत्या कर ली.' उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अंजुम बानो का शव परीक्षण डॉ. स्वपन कुमार सरक द्वारा किया गया था, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उन्होंने महिला की मृत्यु से ठीक पहले गर्भपात का उल्लेख नहीं किया है.

उच्च न्यायालय ने तब मुख्य सचिव को झारखंड में सरकारी या निजी क्षेत्र में प्रैक्टिस करने वाले सभी डॉक्टरों के प्रमाणपत्रों को सत्यापित करने का निर्देश दिया था. नौ अप्रैल को उच्च न्यायालय ने कहा था कि मुख्य सचिव द्वारा दायर हलफनामा अदालत के पहले के आदेशों के अनुसार नहीं है जबकि वह डॉ स्वपन कुमार सरक की नामांकन संख्या का उल्लेख करने में भी विफल रहे हैं, जिनके आचरण का मामला 2018 से अदालत में लंबित है. इसके बाद, मुख्य सचिव, गृह सचिव और स्वास्थ्य सचिव को उसी दिन वर्चुअल माध्यम से बुलाया गया, लेकिन अधिकारी उपस्थित नहीं हुए और बाद में उन्होंने अपनी अनुपस्थिति के कारण के रूप में कोविड-19 प्रबंधन से संबंधित मुद्दों के कारण अपने व्यस्त कार्यक्रम का हवाला दिया.

इसे भी पढ़ें :बाबा रामदेव की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, Supreme Court में याचिका दायर

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने डॉ स्वपन कुमार सरक के कथित आचरण को लेकर अग्रिम जमानत के पहलू के बाहर के कई अन्य पहलुओं पर गौर किया. पीठ ने कहा कि अगर उच्च न्यायालय को लगता है कि तथ्यात्मक परिदृश्य इस तरह की कार्रवाई का समर्थन करते हैं तो वह एक जनहित याचिका दर्ज कर सकता है.
(पीटीआई-भाषा)

ABOUT THE AUTHOR

...view details