नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वकीलों, वादकारियों और जनता द्वारा एक न्यायाधीश को हर रोज 'जज' (आंका) किया जाता है, क्योंकि अदालतें एक खुला मंच हैं. न्यायालय ने यह भी कहा कि वह न्यायिक समीक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए सिफारिशों को रद्द नहीं कर सकता और न ही न्यायाधीशों की नियुक्ति के फैसले पर पुनर्विचार के लिये कॉलेजियम से कह सकता है.
शीर्ष अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने से लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी को रोकने संबंधी दो याचिकाओं पर सात फरवरी को विचार करने से इनकार की वजह शुक्रवार को बताई. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह स्वीकार किया गया कि राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले कई व्यक्तियों को उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नत किया गया है, और 'यह अपने आप में, हालांकि एक प्रासंगिक विचार है, अन्यथा उपयुक्त व्यक्ति की नियुक्ति के लिए एक पूर्ण प्रतिबंध नहीं है.'
शीर्ष अदालत ने कहा कि इसी तरह, ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां पदोन्नति के लिए अनुशंसित लोगों ने आपत्ति व्यक्त की है या यहां तक कि नीतियों या कार्यों की आलोचना की है, लेकिन इसे उन्हें अनुपयुक्त मानने का आधार के तौर पर नहीं देखा गया है.
पीठ ने कहा, 'यह बिना कहे माना जाता है कि न्यायाधीश के आचरण और उसके निर्णयों को स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों के पालन को प्रतिबिंबित और प्रदर्शित करने वाला होना चाहिए.' पीठ ने कहा कि यह आवश्यक है, क्योंकि न्यायपालिका लोकतंत्र की रक्षा, मजबूती और मानवाधिकारों और कानून के शासन को बनाए रखने में केंद्रीय भूमिका रखती है. शीर्ष अदालत के पिछले कई फैसलों का जिक्र करते हुए, जिसमें नौ न्यायाधीशों की पीठ के दो फैसले भी शामिल हैं.