नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चुनाव चिह्न आवंटन मुद्दे से जुड़ी एक याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि यह चुनाव प्रक्रिया में 'बाधक' होगी तथा मुकदमेबाजी कोई 'शौक' नहीं हो सकती. शीर्ष अदालत, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पिछले साल के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. उच्च न्यायालय ने उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि निर्वाचन आयोग के पास चुनाव चिह्न आवंटित करने की कोई शक्ति नहीं है.
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने तर्क दिया है कि निर्वाचन आयोग के पास चुनाव चिह्न आवंटित करने की कोई शक्ति नहीं है और केवल निर्वाचन अधिकारी ही इसे आवंटित कर सकता है. पीठ ने कहा, 'हमने पाया है कि उपरोक्त तर्क पूरी तरह से नियमों की गलत व्याख्या है और वास्तव में चुनाव प्रक्रिया में बाधक है.' शीर्ष अदालत ने कहा, 'हमें लगता है कि यह पूरी तरह से न्यायिक समय की बर्बादी है और इस तरह 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ याचिका खारिज की जाती है.'
शुरुआत में, याचिकाकर्ता ने पीठ से कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष उनका मामला यह था कि चुनाव चिह्न का उपयोग और दुरुपयोग होता है. पीठ ने मौखिक रूप से कहा, 'कोई मान्यता प्राप्त पार्टी, मान्यता की प्रक्रिया से गुजरती है. उसके बाद, एक (चुनाव) चिह्न सौंपा जाता है. क्या गलत है? क्या हम सिर्फ मुकदमेबाजी के लिए मुकदमेबाजी करते रहते हैं." इसने कहा, "यह किसी शौक से जुड़ा मुकदमा नहीं हो सकता.'
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि कानून कहता है कि चुनाव के समय चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को ही चुनाव चिह्न आवंटित किए जा सकते हैं. पीठ ने कहा कि कोई पार्टी, जिसे राजनीतिक दल के रूप में मान्यता प्राप्त है, वह किसी उम्मीदवार को अपने चुनाव चिह्न के तहत चुनाव लड़ने के उद्देश्य से एक अनुमति देती है. आप उस प्रक्रिया को बाधित करना चाहते हैं?
'मुकदमेबाजी कोई शौक नहीं हो सकती'
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि कानून कहता है कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को चुनाव चिह्न का आवंटन होगा और आवंटन की शक्ति निर्वाचन अधिकारी के पास है. पीठ ने कहा, 'क्षमा करें. हम बहुत स्पष्ट हैं कि संबंधित आदेश कानून में सही स्थिति को दर्शाता है.' शीर्ष अदालत ने कहा कि मुकदमेबाजी कोई 'शौक नहीं हो सकती', भले ही वह वकील के लिए ही क्यों न हो. जब याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि कुछ शरारत हो रही है, तो पीठ ने कहा, 'कोई शरारत नहीं है. अगर आपकी दलील को स्वीकार किया जाए, तो यह चुनाव प्रक्रिया में व्यवधान होगा.'
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि चुनाव चिह्नों का आरक्षण एक विशेष अवधि के लिए होना चाहिए, न कि हमेशा के लिए. इसने कहा था, 'हमारा विचार है कि चुनाव चिह्न किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के लिए आरक्षित होता है और इस देश की लोकतांत्रिक राजनीति में उनके महत्व को देखते हुए उनके उपयोग के लिए है.' उच्च न्यायालय ने उल्लेख किया था कि याचिकाकर्ता चुनाव चिह्न के 'आरक्षण' और 'आवंटन' के बीच के अंतर को समझने में विफल रही हैं.