नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे नलिनी श्रीहरन और आरपी रविचंद्रन समेत छह दोषियों को समय से पहले रिहा करने का निर्देश दिया है. न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश बीवी नागरत्ना की पीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि मामले के दोषियों में से एक एजी पेरारिवलन के मामले में शीर्ष अदालत का पहले दिया गया फैसला इनके मामले में भी लागू होता है.
पीठ ने कहा, 'जहां तक हमारे समक्ष आए आवेदकों का संबंध है, तो उनकी फांसी की सजा को देरी के कारण उम्रकैद में बदल दिया गया था. हम निर्देश देते हैं कि यह मान लिया जाए कि सभी अपीलकर्ताओं ने अपनी सज़ा काट ली है. इस प्रकार आवेदकों को रिहा करने का निर्देश दिया जाता है, जब तक कि किसी अन्य मामले में जरूरत नहीं है.'
सुप्रीम कोर्ट का नलिनी समेत 6 दोषियों को रिहा करने का आदेश
नलिनी के घर पर जश्न
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में दोषी नलिनी श्रीहरन के वेल्लोर स्थित घर पर लोगों ने जश्न मनाया. नलिनी के समर्थकों ने उनके आवासा पास पटाखे फोड़े और मिठाई बांटी.
नलिनी के वकील ने फैसले पर खुशी जताई
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में नलिनी श्रीहरन सहित छह दोषियों को रिहा करने के शीर्ष अदालत के फैसले को नलिनी के वकील पी. पुगालेंथी ने खुशी प्रदान करने वाला बताया. शीर्ष न्यायालय के रिहाई के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए नलिनी के वकील ने तमिल में 'मग्जहची' शब्द कहा, जिसका अर्थ 'खुशी' है. पुगालेंथी ने कहा, 'शीर्ष न्यायालय का फैसला यह याद दिलाता है कि राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सिफारिश पर काम करना चाहिए और कैदियों को रिहा करना चाहिए.'
उन्होंने मारु राम बनाम भारत सरकार मामले में शीर्ष न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए यह कहा. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के 1981 के फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत सजा की अवधि घटाने और कैदियों को रिहा करने की शक्ति राज्य सरकार में निहित है. इस तरह, राज्यपाल मंत्रिमंडल के फैसले को मंजूरी देने के लिए कर्तव्यबद्ध है. उन्होंने कहा, 'इस तरह, अनुच्छेद 161 ने इसे स्पष्ट कर दिया है. राज्यपाल शब्द को राज्य सरकार के रूप में पढ़ा जाना चाहिए और उच्चतम न्यायालय ने इसे पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है.'
पुगालेंथी ने कहा कि हालांकि, 2018 में तमिलनाडु मंत्रिमंडल ने सात दोषियों को रिहा करने का फैसला किया था, लेकिन राजनीतिक कारणों को लेकर केंद्र द्वारा उनकी रिहाई रोक दी थी. उन्होंने कहा, हम कह सकते हैं कि इन वर्षों के दौरान उन लोगों को संविधान का उल्लंघन करते हुए अवैध रूप से कैद में रखा गया.
बता दें, नलिनी और रविचंद्रन ने समय से पहले रिहाई की मांग को लेकर शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था. दोनों ने मद्रास हाई कोर्ट के 17 जून के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उनकी समय से पूर्व रिहाई वाली याचिका खारिज कर दी थी और सह-दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश देने वाले शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया था. इस मामले में नलिनी, रविचंद्रन, संतन, मुरुगन, पेरारिवलन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने 18 मई को पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था, जिसने जेल में 30 साल से अधिक की सजा पूरी कर ली थी.
ये भी पढ़ें- ओवैसी पर हमला मामला : सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को सरेंडर करने का दिया आदेश
गौरतलब है कि 21 मई 1991 की रात राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरुंबदूर में एक चुनावी सभा के दौरान हत्या कर दी गई थी. इसके लिए धनु नाम की एक महिला आत्मघाती हमलावर का इस्तेमाल किया गया था. मई 1999 के अपने आदेश में, उच्चतम न्यायालय ने चार दोषियों पेरारिवलन, मुरुगन, संतन और श्रीहरन के मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा था. हालांकि, 2014 में, न्यायालय ने दया याचिकाओं पर फैसला करने में देरी के आधार पर संतन और मुरुगन के साथ पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. नलिनी की मौत की सजा को 2001 में इस बात पर गौर करते हुए आजीवन कारावास में बदल दिया गया था कि उसे एक बेटी है.(इनपुट- भाषा)