नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर किलिंग के एक मामले की सुनवाई के बाद आरोपी की जमानत रद्द कर दी. राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत प्रदान कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के फैसले पर नाराजगी व्यक्त की थी.
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक दिसंबर 2020 को आरोपी को जमानत दी थी. आरोपी युवक पीड़ित महिला का भाई है. पीड़िता ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
17 मई 2017 को युवक ने अपने जीजा की हत्या कर दी थी. वह अपने बहन की शादी से नाराज था. उसकी बहन ने केरल के एक युवक से 2015 में शादी की थी. महिला राजस्थान की रहने वाली है. आरोपी का नाम मुकेश चौधरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जिला अदालत को इस मामले पर एक सप्ताह में सुनवाई के आदेश दिए हैं.
आरोपी की ओर से सीनियर वकील वीके शुक्ला और पीड़िता की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह ने अपना-अपना पक्ष रखा था.
पीड़िता की ओर से इसे एक आपराधिक कृत्य बताया गया. उन्होंने कहा कि परिवार वाले नहीं चाहते थे कि उसकी शादी उस युवक से हो. इसलिए परिवार वाले (माता-पिता) शार्प शूटर के साथ उसके कमरे में पहुंच गए. शूटर ने उसके पति को गोली मार दी. इसके बाद उसका अपहरण करने की कोशिश की गई.
पीड़िता के वकील जयसिंह ने कहा, यह कोई सामान्य मामला नहीं है. यह 'ऑनर किलिंग' का मामला है, जिसमें परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी करने वाली महिला के पति की गोली मारकर हत्या कर दी गई. आरोपी को जमानत मिल गई, जिसके खिलाफ याचिका दाखिल की गई है. यह आपराधिक साजिश का मामला है. उनका (आरोपी का) एकमात्र बचाव यह है कि वह वहां मौजूद नहीं था. लड़की गर्भवती थी. वरिष्ठ वकील ने कहा कि राजस्थान में 'ऑनर किलिंग' का प्रचलन है और मौजूदा मामले में महिला के भाई की जमानत अर्जी पहले दो बार खारिज हो चुकी है.
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमणा, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने इस पर नाराजगी जताई कि मुकदमा लंबित होने के बावजूद आरोपी को जमानत क्यों दी गई.
पीठ ने कहा, यह कैसा आदेश है. वे इंतजार क्यों नहीं कर सकते. मुकदमे से पहले जमानत पाने के लिए मुवक्किल की बेचैनी सही नहीं है. हमने पहले जमानत रद्द कर दी थी. उन्हें मुकदमे के पूरा होने का इंतजार करना चाहिए था.
आरोपी के वकील ने कहा कि वह एक इंजीनियर है और घटना की जगह पर मौजूद नहीं था और इसके अलावा, उस पर साजिश रचने का आरोप लगाया गया है और इसके लिए निचली अदालत के सामने कोई सबूत नहीं रखा गया है.
वकील ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा मुकदमे के दौरान 46 में से केवल 21 अभियोजन गवाहों से पूछताछ की गई है और आरोपी को जेल में बंद करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
पीठ ने कहा, आप के लिए अच्छा है. अगर कोई सबूत नहीं है, तो आप इससे बाहर आ जाएंगे. मुकदमा पूरा होने की प्रतीक्षा कीजिए.
17 मई, 2017 को जयपुर में भारतीय दंड संहिता की धारा 452 (घर में अवैध तौर पर घुसना), 302 (हत्या) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी.