नई दिल्ली : कोरोना महामारी के दौरान आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के वितरण को लेकर केंद्र ने क्या सार्थक कदम उठाए हैं इस पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई की. शीर्ष न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत को लेकर सवाल उठाए.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नसवारा राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत में अंतर क्यों हैं? देश को इतना भुगतान क्यों करना चाहिए जब अमेरिका में एस्ट्राजेनेका भी अपने नागरिकों को कम दर पर टीके उपलब्ध करा रहा है.
कोर्ट ने माना कि यह अंतर लगभग 30-40 हजार करोड़ रुपये है और अलग-अलग कीमत होने का कोई मतलब नहीं है.
कोरोना महामारी के दौरान क्या कदम उठाए गए, इसे लेकर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था. इसी को लेकर सरकार की ओर से ये हलफनामा प्रस्तुत किया था.
टीकाकरण के लिए क्या कदम उठाए?
कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि कोविड 19 पर अंकुश लगाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. ऑक्सीजन टैंकरों और सिलेंडर की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया. अनपढ़ या किसी व्यक्ति को बिना नेट के टीकाकरण के लिए पंजीकरण कराने की क्या योजना है. श्मशान कर्मचारियों या फ्रंट लाइन के श्रमिकों का टीकाकरण करना, अनिवार्य लाइसेंसिंग के बारे में क्या किया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि केंद्र ने 100% वैक्सीन की खुराक क्यों नहीं सुनिश्चित कीं. राज्यों, जिलों और अस्पतालों को आवंटित ऑक्सीजन पर किसी भी वास्तविक समय अद्यतन के लिए किसी भी तंत्र को रैंप अप करने के लिए निवेश के बारे में पूछा. यही नहीं वायरस के नए प्रकार का परीक्षण कैसे किया जा रहा है और इससे कैसे निपटने की क्या कार्ययोजना है, इसके बारे में भी जानकारी ली.
कोर्ट ने अवलोकन किया कि चिकित्सा पेशेवर टूटने वाले बिंदु पर पहुंच रहे हैं ऐसे में उन्हें केवल कोविड योद्धा कहना पर्याप्त नहीं है. निर्णायक भूमिका निभाने वाली नर्सें मर रही हैं. कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि डॉक्टरों के लिए ठहरने की व्यवस्था क्यों नहीं है.