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हिमाचल प्रदेश: यहां केक काटने, सेहरा बांधने, मेहंदी लगाने और जूते छिपाने की रस्म पर लगी पाबंदी, जानिए वजह - किन्नौर जिले का सुमरा गांव

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर के गांव सुमरा में शादियों में मेहंदी रस्म, जूते छिपाने, केक काटने और शादी में सेहरा बांधने का प्रचलन बंद कर दिया गया है. वजह जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर... (sumra village of kinnaur) (himachal village bans cake cutting to mehndi ceremony).

sumra village of kinnaur
पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करते किन्नौर के लोग.

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Published : Apr 11, 2023, 8:53 PM IST

हिमाचल प्रदेश के जिला किन्नौर में केक काटने, सेहरा बांधने, मेहंदी लगाने और जूते छिपाने की रस्म पर लगी पाबंदी.

किन्नौर: हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले का सुमरा गांव इन दिनों अपने एक फैसले को लेकर सुर्खियों में है. दरअसल सुमरा ग्राम पंचायत ने गांव में शादी या अन्य समारोह के दौरान केक काटने, मेंहदी लगाने, जूते छिपाने या सेहरा पहनने जैसी रस्मों पर पाबंदी लगा दी है. ग्राम पंचायत के सदस्यों के मुताबिक ये अपनी संस्कृति को बचाने की पहल है. ग्राम पंचायत सुमरा के उप प्रधान के मुताबिक ये फैसला बरसों से चली आ रहे हमारे रीति रिवाज, रस्मों और संस्कृति को बचाने के लिए लिया है. पूरी ग्राम सभा ने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है और इसको लेकर बकायदा प्रस्ताव पास करके हंगरंग रिंचन बौद्ध धरोहर सांस्कृतिक संस्था को भेज दिया गया है.

प्रवेश द्वार किन्नौर.

दरअसल सुमरा गांव किन्नौर जिले की हंगरंग घाटी में आता है. जहां हंगरंग रिंचन बौद्ध धरोहर सांस्कृतिक संस्था परंपराओं और संस्कृति से जुड़े फैसले लेती है. घाटी के सभी गांव इस संस्था से जुड़े हैं और गांव के जनप्रतिनिधि इस संस्था के सदस्य हैं. हर साल संस्था की बैठक होती है और इस साल हुई बैठक में बाहरी रीति रिवाजों को लेकर चर्चा की गई. हंगरंग रिंचन बौद्ध धरोहर सांस्कृतिक संस्था के मुताबिक 'हम कोई भी नियम या फैसला अपने सदस्यों पर नहीं थोपते. बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई और सर्वसम्मति से फैसला लिया जाता है. सुमरा गांव की ओर से सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर संस्था को भेज दिया गया है और उम्मीद है कि बाकी गांव भी इस तरह के प्रस्ताव पारित करके भेजेंगे.'

सुमरा गांव, किन्नौर.

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जिला परिषद सदस्य शांता कुमार नेगी के मुताबिक 'पिछले कुछ सालों से हंगरंग घाटी में बाहरी रीति-रिवाजों का हस्तक्षेप बहुत बढ़ गया है. जिसे लेकर निर्णय लिया गया है कि हर गांव में बाहरी रीति रिवाजों को रोकने पर चर्चा की जाए'. शांता कुमार कहते हैं कि 'शादियों में मेंहदी रस्म, जूते छिपाना, सेहरा लगाना जैसे कई रिवाज हैं जिनका हमारी संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है. सुमरा गांव ने इन रीति-रिवाजों पर पाबंदी लगा दी है और उम्मीद है कि अन्य गांव भी ये फैसला लेकर अपनी संस्कृति को बचाने में सफल होंगे'

पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करते किन्नौर के लोग.

हंगरंग घाटी के कई गांव और ग्रामीण सुमरा गांव की पहल की तारीफ कर रहे हैं. हंगरंग वैली के चुलिंग गांव के ठियोंग दोर्जे भी उनमें से एक हैं. ठियोंग कहते हैं कि गांवों में वेस्टर्न या फिर बाहरी कल्चर बढ़ा है. जो किन्नौर की संस्कृति नहीं है. ठियोंग के मुताबिक कुछ समय पहले ही हंगरंग रिंचन बौद्ध धरोहर सांस्कृतिक संस्था की अगुवाई में सभी लोगों ने फैसला लिया था इलाके में होने वाली शादियों में अंग्रेजी शराब और मांस (नॉन-वेज) नहीं परोसा जाएगा. आज ये एक नियम है और पूरा इलाका इसका पालन करता है. लोग इस नियम का पालन करते हैं. सुमरा गांव की पहल के बाद हंगरंग के बाकी गांव भी इस विषय को अपने स्तर पर उठाएंगे और बाहरी रीति रिवाजों को छोड़कर अपनी संस्कृति को मजबूत करेंगे.

हिमाचल प्रदेश अपने प्राकृतिक नजारों के साथ-साथ अपने खान-पान, पहनावे, लोकनृत्य के साथ-साथ सभ्यता संस्कृति के लिए जाना जाता है. हिमाचल के कई गांव आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं और अपनी सभ्यता संस्कृति से उनका जुड़ाव बरकरार है. किन्नौर से विधायक और कैबिनेट मंत्री जगत सिंह नेगी के मुताबिक "मौजूदा समय में जनजातीय क्षेत्र के युवा पढ़ाई से लेकर नौकरी तक के लिए बाहर जा रहे हैं. जिसके कारण अन्य क्षेत्रों के रीति रिवाज हमारे रीति रिवाजों में घुल मिल रहे हैं. किन्नौर जिले के सुमरा गांव ने अगर अपने रीति रिवाजों के संरक्षण के लिए ये फैसला लिया है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है."

हिमाचल सरकार में जनजातीय विकास मंत्री के मुताबिक 'सुमरा गांव किन्नौर जिले का आखिरी गांव है. शादी समारोह के दौरान जिन रीति-रिवाजों का पालन होता है अगर संस्कृति को संजोने के लिए अपनी स्वेच्छा से ये कदम उठाया है तो ये एक अच्छा कदम है'. जगत सिंह नेगी कहते हैं कि किन्नौर की संस्कृति बहुत ही समृद्ध है और यहां के लोग काफी खुले विचारों के हैं. किन्नौर के गांवों में बौद्ध धर्म को भी मानते हैं और देवी-देवताओं को भी मानते हैं. गांवों में दोनों धर्मों के मंदिर मिल जाएंगे. इसलिये ये फैसला कट्टरवाद नहीं बल्कि अपनी सभ्यता का संरक्षण है. इस फैसले से हम अपने रीति-रिवाज आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी. हालांकि जनजातीय विकास मंत्री होने के नाते हर कल्चर की अच्छी बातों को अपनाने की पैरवी करते हैं.

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