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हंटर सिंड्रोम से पीड़ित बांगलादेशी बच्चे का भारत में सफल इलाज

हंटर सिंड्रोम (hunter syndrome) एक रेयर बीमारी है. इस बीमारी से ग्रसित बांगलादेश के एक बच्चे का भारत में इलाज किया गया. सात साल तक चले इलाज और फॉलोअप के बाद वह सामान्य जीवन जीने लगा. बच्चा और उसकी मां ने डॉक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ के प्रति आभार जताया. डॉक्टर बता रहे हैं कि कितना मुश्किल था इलाज करना.

हंटर सिंड्रोम
हंटर सिंड्रोम

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Published : Nov 4, 2021, 6:28 PM IST

नई दिल्ली : बांग्लादेश का फरहीन हंटर सिंड्रोम (hunter syndrome) नामक जेनेटिक बीमारी से पीड़ित था. 2014 में मेडिकल जांच में उसकी बीमारी के बारे में पता चला. उसके लगभग सभी अंग इस बीमारी की चपेट में आ गए थे. फरहान ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था. उसके हार्ट, लीवर एवं स्प्लीन ठीक ढंग से काम नहीं कर पा रहा था. धीरे-धीरे वह काफी कमजोर होने लगा था. ठीक से चल पाने में भी असमर्थ था. एक उम्मीद लेकर इलाज कराने भारत आया.

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पीडियाट्रिक हिमेटोलॉजी, आंकोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉक्टर डायरेक्टर एवं हेड डॉ. विकास दुआ के नेतृत्व में एक मेडिकल टीम का गठन किया गया. डॉक्टर दुआ की टीम ने फरहीन का बोन मैरो ट्रांसप्लांट (bone marrow transplant) करने का निर्णय लिया. सात वर्ष पहले पांच वर्षीय बांग्लादेशी बच्चा फरहान का बोन मैरो का (bone marrow transplant) ट्रांसप्लांट किया गया था.

इलाज के बारे में दी जानकारी.

डॉ. दुआ ने बताया कि इस मामले में बच्चे पर पूरे सात वर्षों तक नजर रखी गई, क्योंकि यह एक नया प्रयोग था. इलाज के विफल होने की भी उतनी ही आशंका थी. कई फॉलोअप राउंडस के बाद वह सामान्य जीवन जी रहा है.

बोन मैरो ट्रांसप्लांट (bone marrow transplant) होने के बाद बच्चे को सांस लेने, चलने- फिरने में जो परेशानी हो रही थी उसमें उसे काफी हद तक सुधार हुआ. इसके अलावा उसके हार्ट, लीवर और स्प्लीन के काम करने के तरीके में भी बदलाव आया. इस तरह से फरहान का स्वास्थ धीरे-धीरे सुधारने लगा. अब लगभग सात साल बाद 11 साल की उम्र में फरहान और उसका परिवार एक बार फिर भारत आकर उसका सफल इलाज करने वाले डॉक्टर दुआ एवं डॉक्टर सचदेव के प्रति अपना आभार प्रकट किया.

ये हैं लक्षण

भारत में हंटर सिंड्रोम (hunter syndrome) से पीड़ित किसी भी बच्चे का इसके पहले बोन मैरो ट्रांसप्लांट (bone marrow transplant) नहीं किया गया था. यह पहला अवसर था जब किसी हंटर सिंड्रोम (hunter syndrome) से पीड़ित बच्चे का बीएमटी (bone marrow transplant) किया गया. किसी दूसरे देश में इस तरह के किसी केस में ऐसा नहीं किया गया था और इस पर कोई विशेष स्टडी या रिसर्च नहीं था. इस बीमारी के संबंध में कोई आंकड़ें भी उपलब्ध नहीं थे जिससे कि मरीज के इलाज में मदद मिल सके.

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डॉक्टर दुआ ने बताया कि हंटर सिंड्रोम (hunter syndrome) में बोन मैरो ट्रांसप्लांट (bone marrow transplant) करना एक नया प्रयोग था. देश में इस तरह का पहले कोई प्रयोग नहीं किया गया था. बाद में इस केस की सफलता के बाद दूसरे मरीजों के ऊपर इसे एक रेफरेंस के रूप में फॉलो किया गया. फरहान अब एक सामान्य और स्वस्थ जीवन जी रहा है. अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तरह वह बिल्कुल स्वस्थ है. ऐसा इसलिए हो पाया, क्योंकि फरहान को सही समय पर सही इलाज मिला.

क्या हाेता है हंटर सिंड्रोम (hunter syndrome):

यह ऐसी दुर्लभ बीमारी है, जिसमें शरीर शुगर मॉलिक्यूल्स को ठीक से पचा नहीं पाता है. जब यही अपच मॉलिक्यूल्स विभिन्न ऑर्गन एवं टिश्यूज में इकट्ठा होते रहते हैं तो मरीज के शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधा होती है. बच्चा मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है. डॉक्टर दुआ बताते हैं कि भारत में पैदा होने वाले 1,62000 मेल चाइल्ड में किसी एक बच्चा के हंटर सिंड्रोम (hunter syndrome) से पीड़ित होने की आशंका रहती है. इस बीमारी की वजह से शरीर के अंग ठीक से काम नहीं कर पाते हैं. इनके लक्षणों के रूप में सुनने की क्षमता प्रभावित होना, हार्ट का ठीक से काम नहीं करना, सांस लेने में तकलीफ होना और चलने फिरने में परेशानी होने जैसी कई गंभीर समस्याएं शामिल हैं.

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