नई दिल्ली:अफ्रीका का रहने वाला 28 साल का एक मरीज भारत में सिजोफ्रेनिया के लिए सर्जरी कराने वाला प्रथम व्यक्ति बन गया है. वह 13 साल की उम्र से सिजोफ्रेनिया से पीड़ित था. गुरुग्राम के मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल की न्यूरो सर्जरी टीम ने न्यूक्लियस एक्यूमबेंस- डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) सर्जरी के माध्यम से सिजोफ्रेनिया के मरीज की सफल सर्जरी की. सिजोफ्रेनियाएक मेंटल डिसऑर्डर और भारत में इसके लिए की गई ये पहली सर्जरी है. इस तरह की सर्जरी पूरी दुनिया में अब तक केवल 13 बार ही की गई है. साइकोसर्जरी के क्षेत्र में ये बड़ी उपलब्धि है.
सिजोफ्रेनिया एक जटिल मानसिक बीमारी है, जिससे दुनियाभर में लाखों लोग प्रभावित हैं. इस बीमारी के प्रभावी इलाज खोजने का प्रयास चुनौतीपूर्ण रहा है. जिस मरीज की सर्जरी की गई, वह अफ्रीका का निवासी है. सिजोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज का इलाज 15 साल की उम्र से ही चल रहा था. मरीज में सिजोफ्रेनिया के अन्य लक्षण नजर आ ही रहे थे, वह लगातार मतिभ्रम का भी अनुभव कर रहा था. स्कूल छोड़ने के बाद मरीज ने आठ साल तक खुद को एक कमरे में कैद कर लिया था. वह सबसे अलग-थलग हो गया था. सिजोफ्रेनिया के मरीज में लक्षण दिन-ब-दिन बद से बदतर होते चले गए और स्थिति यह हो गई कि मरीज ने खुद को समाज से पूरी तरह दूर कर लिया.
मरीज की स्थिति में सुधार:डॉक्टरों ने इलाज के हर विकल्प पर विचार करने के बाद मरीज की डीबीएस (Deep Brain Stimulation) सर्जरी करने का निर्णय लिया. मरीज का ऑपरेशन 14 जून 2023 को किया गया और इस डीबीएस प्रक्रिया का परिणाम उल्लेखनीय रहा. मरीज के लक्षणों में काफी कमी आई है और उसकी स्थिति में भी सुधार हुआ है. मरीज की सर्जरी के बाद नतीजे उम्मीदों के अनुरूप दिख रहे हैं.
क्या है डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जिकल टेक्निक?:मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल गुरुग्राम में सीनियर कंसल्टेंट न्यूरो सर्जन डॉक्टर हिमांशु चंपानेरी ने कहा कि डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) एक उभरती हुई सर्जिकल टेक्निक है, जिसमें ब्रेन के स्पेसिफिक एरिया में इलेक्ट्रोड का प्रत्यारोपण किया जाता है. ये इलेक्ट्रोड ब्रेन की असामान्य गतिविधियों को रेगुलेट करने और बैलेंस बहाल करने के लिए इलेक्ट्रिकल इंपल्स की आपूर्ति करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में 8-10 घंटे लगे और इसके बाद मरीज को रातभर आईसीयू में रखा गया. ऑपरेशन के दूसरे ही दिन से ही वह चलने-फिरने लगा और लक्षणों में भी करीब 50 से 60 फीसदी तक सुधार महसूस हुआ. समय बीतने के साथ मरीज की स्थिति में और सुधार की उम्मीद है.