सुब्रमण्यम स्वामी के चैलेंज पर विधानसभा अध्यक्ष का बयान देहरादून: देश के जाने-माने वकील और पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने एक बार फिर से उत्तराखंड सरकार की परेशानी को बढ़ा दिया है. इस बार उन्होंने राज्य सरकार को विधानसभा से बर्खास्त किए गए कर्मचारियों को लेकर न केवल चेताया है, बल्कि यह भी ऐलान किया है कि वह सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ना केवल केस लड़ेंगे बल्कि पूर्व में जिस तरह से उन्हें 80% मामलों में विजय हासिल हुई है, उसी तरह से इस मामले में भी सरकार को वह हराकर रहेंगे.
सुब्रमण्यम स्वामी के नाम से सरकार को छूटते हैं पसीने: ऐसा पहली बार नहीं है कि जब सुब्रमण्यम स्वामी ने उत्तराखंड सरकार के किसी फैसले को चुनौती दी हो या उसका विरोध किया हो. अपनी ही सरकार के कामकाज पर सुब्रमण्यम स्वामी पहले भी सवाल खड़े करते रहे हैं. इस बार उन्होंने विधानसभा से बर्खास्त किए गए कर्मचारियों और हरिद्वार में बन रहे हरिद्वार हर की पैड़ी कॉरिडोर को लेकर अपनी आपत्ति जताई है. उन्होंने उत्तराखंड सरकार से कहा है कि सरकार अभी भी संभल जाए. नहीं तो आने वाला समय सरकार के लिए कठिन रहेगा.
सुब्रमण्यम स्वामी और सरकार का पहला टकराव:सुब्रमण्यम स्वामी पहले भी सरकार द्वारा बनाए गए देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर चुके हैं. बाकायदा उन्होंने अपने सोशल मिडिया हैंडल से उस वक्त तीखे प्रहार करते हुए तत्कालीन सीएम पर कटाक्ष किये थे. स्वामी ने चेतावनी दी थी कि अगर ये बोर्ड बना और पुरोहितों का अहित हुआ, तो वो कोर्ट के माध्यम से सरकार के खिलाफ खड़े होंगे. स्वामी ने इसके बाद पुरोहितों का साथ देते हुए पीएम मोदी को भी एक पत्र लिखा था.
कहा जाता है कि सुब्रमण्यम स्वामी की चेतावनी और पुरोहितों का विरोध ही था कि सरकार को बहुचर्चित देवस्थानम बोर्ड को वापस लेना पड़ा था. जिस वक्त ये पूरा मामला हुआ था, उस वक्त सरकार के प्रवक्ताओं से भी कुछ बोलते नहीं बन रहा था. क्योंकि सुब्रमण्यम स्वामी के खिलाफ बयानबाजी से हर नेता घबरा रहा था. सुब्रमण्यम स्वामी की देवस्थानम बोर्ड के विरोध में एंट्री से उस वक्त की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार भी असमंजस में आ गई थी.
इस मामले के लिए दिल्ली से उत्तराखंड आ गए सुब्रमण्यम स्वामी: इस बार स्वामी ने सरकार को बड़े मामले में घेरा है. आप सुब्रमण्यम स्वामी की सरकार के खिलाफ लड़ाई की तैयारी का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि अमूमन मामलों में वो दिल्ली में ही बैठ कर ना केवल अपने बयान देते हैं, बल्कि सरकारी पक्ष हो या विपक्ष दोनों को ही वहीं से घेरते रहते हैं. लेकिन ऐसा पहली बार है जब स्वामी दिल्ली से उठ कर उत्तराखंड आ गए. बाकायदा सरकार के खिलाफ और विधानसभा से बर्खास्त हुए कर्मियों के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सरकार को चेतावनी भी दे दी.
सुब्रमण्यम स्वामी का चैलेंज विधानसभा भर्ती मामले में जीतूंगा केस-स्वामी: सुब्रमण्यम स्वामी ने विधानसभा भर्ती मामले में कहा है कि वह ऐसे ही इन कर्मचारियों के समर्थन में नहीं आए हैं. सरकार और विधानसभा अध्यक्ष ने जो भी कुछ किया है वह मानकों के बिल्कुल विपरीत किया है. स्वामी ने कानूनी दांवपेंच पढ़ने और पूरा मामला समझने के बाद यह कहा है कि जब 2001 से लेकर 2015 तक जो कर्मचारी भर्ती हुए हैं उनको नियमित रूप से पक्का किया गया और काम लिया जा रहा है तो भला 2016 के बाद जो नियुक्तियां हुई हैं, उनको कैसे बर्खास्त किया जा सकता है. स्वामी ने इसे आर्टिकल 14 का उल्लंघन बताया है. स्वामी ने कहा है कि हाईकोर्ट ने भले ही इस मामले में कुछ भी कहा हो, लेकिन अब यह मामला वह सुप्रीम कोर्ट लेकर जा रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि वह पूर्व में जिस तरह से तमाम मामलों में विजय हासिल कर चुके हैं, इस मामले में सरकार को अपना फैसला वापस लेना होगा.
सुब्रमण्यम स्वामी ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को भी संदेश दिया है कि सरकार द्वारा 2001 से 2015 तक जिस तरह से कर्मचारियों को नियमित किया गया है, बाकी बर्खास्त कर्मचारियों को भी वह नियमित करे. इस मामले में सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी एक पत्र लिखा है. इसके साथ ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे गए पत्र में भी उन्होंने कानूनी दांवपेंच के सारे हथकंडे और सारे कानून बताते हुए यह पूछा है कि भला एक ही संस्थान में दो तरह के कानून कैसे चल रहे हैं.
सुब्रमण्यम स्वामी के इस मामले में दखल देने के बाद विधानसभा से बर्खास्त हुए कर्मचारियों को भी यह उम्मीद बंध गई है कि इस मामले में जल्द ही कोई उनके पक्ष में निर्णय आएगा. लेकिन एक बात तो तय है कि विधानसभा से बाहर किए गए कर्मचारियों के मामले में सुब्रमण्यम स्वामी की एंट्री ने विधानसभा अध्यक्ष और सरकार के माथे पर बल जरूर डाल दिये हैं.
ये था विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाला विधानसभा भर्ती मामले में अब तक क्या हुआ?: आपको बता दें कि उत्तराखंड विधानसभा में बैक डोर भर्तियों को लेकर 3 सितंबर 2022 को एक कमेटी गठित की गई थी. यह कमेटी उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूड़ी के द्वारा बनाई गई थी. यह कमेटी इस बात की जांच कर रही थी कि बैक डोर से हुई भर्तियों में कहां खामियां हैं और क्या इसमें कार्रवाई का प्रावधान बनता है. समिति की रिपोर्ट आने के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने 228 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था.
इसके बाद कर्मचारी हाईकोर्ट चले गए थे. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला देते हुए उनकी बर्खास्तगी पर रोक लगा दी थी. लेकिन विधानसभा सचिवालय ने एकल पीठ के फैसले को डबल बेंच में चुनौती दी और 24 नवंबर को डबल बेंच की कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को सही बताते हुए कार्रवाई को सही बताया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका कर्मचारियों द्वारा दी गई थी. लेकिन उसे खंडपीठ ने खारिज कर दिया था. अब इस मामले में सुब्रमण्यम स्वामी की एंट्री होने के बाद यही लग रहा है कि स्वामी इस मामले में सरकार को परेशानी में जरूर डालेंगे.
हर की पैड़ी कॉरिडोर को लेकर भी सरकार के खिलाफ हैं स्वामी: इसके साथ ही स्वामी ने सीएम धामी के ड्रीम प्रोजेक्ट हरिद्वार हर की पैड़ी कॉरिडोर पर भी आपत्ति जता दी है. उन्होंने कहा है कि वो वैसे तो इस कॉरिडोर की बारीकियों को देखेंगे. लेकिन ये बात भी सही है कि हरिद्वार शहर और उत्तराखंड को इस तरह के कॉरिडोर की जरूरत नहीं है. उन्होंने सरकार से कहा है कि वो यहां सड़कें अच्छी बनाए. व्यवस्था अच्छी कर दे. पहाड़ों का दोहन बंद कर दे. बस वही बहुत है. बाकी रही कॉरिडोर की बात तो फ़िलहाल हरिद्वार हर की पैड़ी को इस की जरूरत नहीं है.
काशी कॉरिडोर की तर्ज पर हर की पैड़ी कॉरिडोर: इसके लिए वो पीएम मोदी को भी एक पत्र लिखने जा रहे हैं. आपको बता दें कि हरिद्वार की हर की पैड़ी पर सरकार यूपी के काशी की तर्ज पर ही एक कॉरिडोर बनाने जा रही है. फ़िलहाल इस काम के लिए एक कंसल्टेंट एजेंसी की तलाश की जा रही है. साथ ही डीपीआर पर भी काम शुरू होने जा रहा है. इस कॉरिडोर के बनने से हरिद्वार के प्रमुख मंदिरों को जोड़ने की बात कही जा रही है.
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क्या कहती हैं विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूड़ी: बहरहाल बीजेपी का कोई नेता सुब्रमण्यम स्वामी के बयानों पर भले ही कुछ ना बोल रहा हो. भले ही तमाम बयानों के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कुछ ना कहा हो. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूड़ी सुब्रमण्यम स्वामी के सुप्रीम कोर्ट जाने के बयान पर कहती हैं कि यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है. ऐसे में कुछ भी कहना जल्दबाजी और कोर्ट की अवहेलना होगी. रितु खंडूड़ी ने कहा कि वह वरिष्ठ वकील हैं और अपनी बात को कहीं तक भी ले जा सकते हैं. साथ ही रितु खंडूड़ी ने कहा है कि कभी लोग बर्खास्त करने की मांग करते हैं, कभी वापस लेने की मांग करते हैं. इसलिए उत्तराखंड में इस तरह की राजनीति बंद होनी चाहिए. इससे उत्तराखंड और उत्तराखंड के लोगों के साथ अन्याय होगा. खंडूड़ी ने कहा कि जो भी कार्रवाई हुई है, वो नियमों के तहत हुई है.