कोटा. शिक्षा की नगरी कोटा में लाखों की संख्या में विद्यार्थी मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस की तैयारी के लिए आते हैं. जिन विद्यार्थियों की शहर के तलवंडी में स्थित राधा कृष्ण मंदिर से भी गहरा लगाव है. यहां पर सैकड़ों की संख्या में विद्यार्थी रोज आते हैं और मंदिर में अपनी मन्नत मांगने के लिए दीवारों पर अर्जी भी लिखते हैं. बच्चों का विश्वास है कि यहां लिखने से उनकी मनोकामना जल्द पूरी हो जाती है, इसीलिए वह ऐसा करते हैं. कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो डिप्रेशन का शिकार होने के बाद भी मंदिर में अपनी भावना को प्रकट करते हैं. इसके लिए मंदिर की जो दीवारें चंद महीनों में ही बच्चों की कमेंट से पट जाती है. ऐसे में मंदिर प्रबंधन को इसकी पुताई भी करवानी पड़ती है. बार-बार कलर करने का खर्चा भी मंदिर को उठाना पड़ता है, लेकिन बच्चों को दीवार पर लिखने से रोका नहीं जाता है. बच्चे यहां पर मन्नत मांगते हैं और अपने सिलेक्शन के लिए भी भगवान से अर्जी भी लगाते हैं. मंदिर में सेवा पूजा करने वाले पंडित राधेश्याम का कहना है कि बच्चों को यहां पर आने से कोई रोकता नहीं है. बच्चे यहां पर आते हैं और भगवान के दर्शन भी करते हैं, उनके परिजन भी आते हैं. यहां तक की कई पेरेंट्स भी यहां पर कमेंट लिख कर जाते हैं. सभी ज्यादातर अपने सिलेक्शन और परिवार की खुशी की मांग भगवान से करते हैं.
15 साल से लिख रहे अपनी अर्जी :मंदिर समिति के प्रवक्ता रवि अग्रवाल का कहना है कि कोटा में पहले अधिकांश कोचिंग विज्ञाननगर, जवाहर नगर, शीला चौधरी रोड और तलवंडी इलाके में ही थे. ऐसे में यहां पर ही ज्यादातर बच्चे रहा करते थे. इसीलिए शुरुआत में यहां बच्चों ने यह लिखने का क्रम शुरू किया और यह प्रक्रिया धीरे-धीरे बढ़ती चली गई. शुरुआत में एक दो बच्चों ने इसकी शुरुआत की थी. फिर यह संख्या लगातार बढ़ती गई, अब एग्जाम के आसपास तो रोजाना लगभग 500 स्टूडेंट लिखकर यहां पर अपनी अर्जी लगाते हैं. साथ ही भगवान को उसकी अर्जी को पूरी करने की मनोकामना करते हैं. यह कार्य पिछले 10 से 15 साल से अनवरत जारी है.
शुरू में जताया था विरोध :शुरुआत में मंदिर समिति ने इसका विरोध भी जताया था. बच्चों को मंदिर की दीवार गंदा करने की बात कह कर रोका भी था, लेकिन बाद में बच्चों की आस्था को देखते हुए टोकना भी बंद कर दिया. ऐसे में हालात ऐसे हैं कि हर महीने ही मंदिर की दीवारों की पुताई करानी पड़ती है. बच्चों को जहां जगह मिलती है, वहां लिख देते हैं लकड़ी की अलमारी, कांच की खिड़की और यहां तक की टाइल और संगमरमर के पत्थर पर भी यह लिखकर चले जाते हैं. जिसमें स्केच पेन से लेकर मारकर और व्हाइटनर का भी यूज विद्यार्थी करते हैं. जिन विद्यार्थियों को नीचे जगह नहीं मिलती वह स्टूल का सहारा लेकर 7 से 8 फीट ऊंचाई पर भी लिख देते हैं.