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Special: ज्यादा फीस देने वाले स्टूडेंट्स को NEET UG में 93 नंबर लाने पर भी मिल गई MBBS सीट

NEET UG परीक्षा में भले ही कम नंबर आए हों, लेकिन आप डीम्ड और (NEET Counselling 2022) प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की भारी भरकम फीस को अफोर्ड कर सकते हैं तो आपको एमबीबीएस में प्रवेश मिल जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर बच्चे अधिक फीस अफोर्ड करने की स्थिति में नहीं होते हैं और आखिरकार वो सीट छोड़ देते हैं. जिसका फायदा अमीरजादों को होता है...

Students paying more fees got MBBS seat
एमबीबीएस प्रवेश के लिए काउंसलिंग .

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Published : Jan 4, 2023, 9:15 PM IST

करियर काउंसलिंग एक्सपर्ट पारिजात मिश्रा.

कोटा. नीट यूजी 2022 के बाद शुरू (NEET UG 2022) हुई मेडिकल काउंसलिंग कमेटी की एमबीबीएस प्रवेश के लिए काउंसलिंग अंतिम चरण में है. काउंसलिंग में सरकारी मेडिकल कॉलेज की सीट का अंतिम आवंटन ऑल इंडिया कोटे के तहत 22703 नीट यूजी रैंक पर हुआ था. इसके बाद डीम्ड यूनिवर्सिटी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की सीट का आवंटन भी हुआ. जिसमें नीट यूजी की 1055053 ऑल इंडिया रैंक पर (Medical Counselling Committee) स्टूडेंट चंद्रकांत को श्री सत्य साईं मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की एमबीबीएस (Shri Sathya Sai Medical College and Research Institute) सीट आवंटित हो गई. जिनके नीट यूजी में 93 नंबर आए थे. ऐसा इसलिए संभव हुआ, क्योंकि अधिकांश विद्यार्थी ज्यादा फीस अफोर्ड नहीं कर पाए थे. ऐसे में उन्होंने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज या डीम्ड यूनिवर्सिटी की आवंटित सीट को छोड़ दिया. इसके चलते कम रैंक वाले विद्यार्थियों को भी एमबीबीएस में प्रवेश मिल गया है. जबकि सरकारी एमबीबीएस सीट जनरल और ओबीसी कैटेगरी में 599 अंक वाले विद्यार्थी को ही मिली है. इससे साफ है कि डीम्ड यूनिवर्सिटी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की एमबीबीएस की पूरी फीस एक करोड़ रुपए से ज्यादा होती है.

लाखों की फीस होने के चलते छोड़ देते हैं सीट:सरकारी मेडिकल सीट 599 अंक लाने वाले जनरल कैटेगरी के विद्यार्थियों को साल 2022 की काउंसलिंग में मिली है. जबकि ओबीसी में भी यही अंक सरकारी मेडिकल सीट के लिए कटऑफ रहे हैं. ईडब्ल्यूएस में ये अंक 598 थे. जबकि एससी में 454 और एसटी में ये 423 रहे हैं. इस रैंक के नीचे वाले विद्यार्थियों को प्राइवेट मेडिकल कॉलेज या फिर डीम्ड यूनिवर्सिटी (NEET Counselling 2022) की एमबीबीएस सीट मिल रही थी. हालांकि अधिकांश विद्यार्थियों ने यह सीट छोड़ दी. जिसके चलते नीचे कम रैंक और नंबर पाने वाले विद्यार्थियों ने लाखों रुपए फीस देकर एमबीबीएस में प्रवेश ले लिया. इसी के चलते 1053525 रैंक वाले विद्यार्थी को भी एमबीबीएस की सीट मिल गई. इसके ऊपर रैंक के कई विद्यार्थी दोबारा नीट यूजी की परीक्षा देंगे. इसके अलावा अन्य कोर्सेज में प्रवेश लेंगे या फिर कम फीस के चलते विदेशों में एमबीबीएस का रुख करेंगे.

जनरल कैटेगरी की कटऑफ.

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सरकारी मेडिकल कॉलेजों की फीस:देश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों की बात की जाए तो यहां फीस दो हजार रुपए से ही शुरू होती है. यह फीस अधिकांश मेडिकल कॉलेजों में डेढ़ लाख तक है. जबकि कुछ कॉलेजों में दो से तीन लाख रुपये सालाना भी है. महाराष्ट्र के एमजीआईएमएस वर्धा में 3 लाख रुपये सालाना फीस है. इससे ज्यादा फीस कहीं भी नहीं है. हालांकि राजस्थान सहित कई प्रदेशों के सरकारी मेडिकल कॉलेज में 50 से 55 हजार रुपये के आसपास की सालाना फीस है. दिल्ली के सरकारी कॉलेज में दो से ढाई हजार रुपए सालाना फीस है. जबकि एम्स में करीब 6 से 8 हजार के बीच ही एमबीबीएस पूरी हो जाती है. देशभर के मेडिकल कॉलेजों की फीस का औसत भी निकाला जाए तो एक लाख से कम है.

निजी में 30 लाख से सवा करोड़ तक MBBS की फीस:प्राइवेट कॉलेजों की बात की जाए तो देशभर के प्राइवेट कॉलेजों में फीस का औसत 11 लाख से ज्यादा है. केरल सरकार ने 6 से 13, मध्य प्रदेश में 8 से 12, कर्नाटक ने साढ़े 10 से 11, महाराष्ट्र में 6 से 14 और राजस्थान में 15 से 21 लाख रुपए सालाना फीस ली जाती है. जबकि देशभर के मेडिकल और डीम्ड यूनिवर्सिटीयों (Money big factor in medical studies in india) की बात की जाए तो ये 10 से 25 लाख रुपए तक है. इसमें सबसे कम फीस पुणे के सिंबोसिस मेडिकल कॉलेज की करीब 10 लाख और सबसे अधिक डीवाई पाटील मेडिकल कॉलेज की 25 लाख रुपए है. अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी अलग-अलग फीस है. ऐसे में पूरी एमबीबीएस की फीस भी 30 लाख से लेकर सवा करोड़ रुपए तक भारत में है.

नीट यूजी कटऑफ.

राजस्थान के निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस:राजस्थान में कुल 29 मेडिकल संस्थान हैं. जिनमें से 20 मेडिकल संस्थान गवर्नमेंट और 9 प्राइवेट सेक्टर के हैं. इन 29 मेडिकल संस्थानों में कुल 4437 एमबीबीएस सीटें उपलब्ध है. प्राइवेट मेडिकल संस्थानों में 2246 एमबीबीएस सीट हैं व सभी आवंटित की जा चुकी हैं. मोटे तौर पर राजस्थान राज्य के प्राइवेट मेडिकल संस्थानों में एमबीबीएस की फीस 18 से 25 लाख है. ऐसे में यह निश्चित है कि प्राइवेट मेडिकल संस्थानों को लगभग 600 करोड़ रुपए सालाना फीस मिली है. जबकि प्रदेश के 20 गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेजों की 2191 सीटों पर ही यह आंकड़ा महज 20 से 25 करोड़ के बीच है.

9 लाख 93 हजार विद्यार्थी क्वालीफाई घोषित:नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की आयोजित नीट यूजी 2022 परीक्षा के परिणाम के बाद 993069 स्टूडेंट्स ने क्वालीफाई किया था. जबकि एग्जाम के लिए रजिस्ट्रेशन 1872343 हुए थे. जिनमें 1764571 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी. इनमें जनरल और ईडब्ल्यूएस के लिए 50 परसेंटाइल कटऑफ थी, जिसमें 117 अंक तक लाने वाले विद्यार्थियों को 881402 ने क्वालीफाई किया था. इसके बाद कैटेगरी ओबीसी, एससी, एसटी में 40 परसेंटाइल यानी 116 से लेकर 93 अंक तक के विद्यार्थियों को क्वालीफाई घोषित किया गया था. इसमें ओबीसी में 74458, एससी में 26087 और एसटी में 10565 विद्यार्थी क्वालीफाई घोषित हुए थे.

इसलिए विदेशों का रुख करते हैं भारतीय छात्र:एक्सपर्ट पारिजात मिश्रा ने बताया कि जिस बच्चे को 93 रैंक पर कॉलेज मिला है, उसकी फीस 22 से 25 लाख रुपए सालाना है. खैर, इतनी फीस भारत में एक साल में है, जबकि रूस, चीन और भारत के अलावा अन्य कई देशों में इस राशि में पूरी एमबीबीएस की पढ़ाई हो जाती है. एक्सपर्ट मिश्रा ने बताया कि रूस और यूक्रेन में एमबीबीएस 22 से 25 लाख रुपए में हो जाती है. जबकि कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज़्बेकिस्तान, और जॉर्जिया में ये फीस 18 से 20 लाख रुपए हैं. हालांकि वहां पर रहने, आने जाने में लाखों रुपए का खर्चा और जुड़ जाता है. जबकि भारत में कुछ छोटे निजी कॉलेज और डीम्ड यूनिवर्सिटी में करीब 60 लाख रुपए का खर्च आता है. दूसरी तरफ नेपाल और बांग्लादेश में 50 से 55 लाख में एमबीबीएस हो रही है.

नीट यूजी 2022 की कटऑफ.

देश के डीम्ड यूनिवर्सिटी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में फीस ज्यादा होने के चलते भारत से हजारों की संख्या में बच्चे विदेशों में जाकर एमबीबीएस करते हैं. भारत से बाहर 400 से ज्यादा विदेशी कॉलेज में हिंदुस्तान के बच्चे एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें अकेले रूस में 200 से ज्यादा कॉलेज हैं. जहां चार से पांच हजार विद्यार्थी हैं. इसके अलावा यूक्रेन में करीब 20 और चाइना में 45 मेडिकल कॉलेज व यूनिवर्सिटी भारतीय छात्र पढ़ने के लिए जाते थे. हालांकि यूक्रेन में युद्ध और चाइना में कोविड-19 के बाद बच्चों का जाने का रुख कम हुआ है. विदेशों में भी नीट यूजी की कटऑफ से कई यूनिवर्सिटी और मेडिकल कॉलेज प्रवेश देते हैं.

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