ग्रेनेड के साथ खाई गोलियां, फिर भी नहीं टूटा हौसला देहरादून(उत्तराखंड): कारगिल युद्ध में स्पेशल टास्क को अंजाम देने वाले उत्तराखंड के कमांडो भगवती प्रसाद की कहानी बॉलीवुड की किसी एक्शन फिल्म से कम नहीं है. कमांडो भगवती प्रसाद की कहानी में इमोशन, ड्रामा, एक्शन सब कुछ है. कारगिल में कमाडों भगवती ने अपने दोस्त के लिए गोली खाई. इसके बाद भी वे अपने दोस्त को नहीं बचा पाये. दोस्त को खोने के बाद भी कमांडो भगवती प्रसाद ने हौंसला नहीं खोया. उन्होंने टाइगर हिल पर मौजूद दुश्मन की सेना की रसद रोकी. इसके लिए उन्होंने दुश्मन के इलाके घुसकर वीरता का परिचय दिया.
पैरा कमांडो भगवती प्रसाद खंतवाल दुश्मनों की राशन और रसद रोकने का प्लान: कारगिल में टाइगर हिल पर दुश्मन देश पाकिस्तान का कब्जा था. वह लगातार सिख रेजीमेंट पर गोला बारूद बरसा रहे थे. इस दौरान टाइगर हिल पर मौजूद दुश्मन की इस टुकड़ी का राशन और रसद बंद करने का जिस पैरा कमांडो यूनिट को टास्क दिया गया उसी यूनिट का उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल जहरी खाल ब्लॉक से आने वाले भगवती प्रसाद खंतवाल भी थे. उस रात का हर एक लम्हा आज भी भगवती प्रसाद की आंखों में जीवंत है. भगवती प्रसाद खंतवाल बताते हैं वह रात उनके जीवन की सबसे अहम रात थी.
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कारगिल युद्ध के दौरान स्पेशल टास्क पर गए भगवती प्रसाद और उनकी यूनिट ने उस रात अपने कई साथियों को खोया. भगवती प्रसाद के पैर में भी गोली लगी. उनके दूसरे पैर की उंगलियां कट गई. इसके बाद भी उन्होंने अपना टास्क पूरा किया. उनकी इस वीरता के लिए भगवती प्रसाद खंतवाल को सेना मेडल दिया गया.
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टाइगर हिल्स की ओर भेजी गई कमांडो की दो टुकड़ियां: दरअसल, जिस समय कारगिल युद्ध चल रहा था उस समय टाइगर हिल पर दुश्मन देश पाकिस्तान के सैनिकों का कब्जा था. लगातार टाइगर हिल से नीचे घाटी में मौजूद सिख रेजीमेंट के ऊपर गोला बारूद बरसा रहे थे. तब सेना ने एक स्पेशल ऑपरेशन चलाकर टाइगर हिल पर मौजूद सैनिकों का राशन और रसद बंद करने का प्लान बनाया. इस स्पेशल ऑपरेशन में मौजूद भगवती प्रसाद बताते हैं कि शाम 5 बजे दरार सेक्टर में एक छोटी ब्रीफिंग के बाद पैरा कमांडो की दो टुकड़ियों को रवाना किया गया. सेना के उच्च अधिकारियों से इनपुट मिला कि ऐसी जगह पर कब्जा करना है जहां पर इस वक्त कोई भी मौजूद नहीं है.
भगवती प्रसाद ने ग्रेनेड के साथ खाई गोलियां. उस जगह के लिए रात को 9 बजे पैरा कमांडो की पहली टुकड़ी ने चढ़ाई शुरू की. पूरी रात भर रात के अंधेरे में चलने के बाद सुबह 5 बजे जब पैरा कमांडो अपने टारगेट वाली लोकेशन पर पहुंचे. इस दौरान पीछे आ रही टुकड़ी को सिग्नल दिया गया. इस दौरान दुश्मन सेना की तरफ से गश्त पर आए किसी सैनिक को इस पूरे ऑपरेशन की भनक लग गई. उसके बाद आमने सामने की लड़ाई हुई.
भगवती प्रसाद की पैरा कमांडो यूनिट 8 जवानों को एक साथ लगी गोली, सिहर गया शरीर: ईटीवी से बात करते हुए उस ऑपरेशन में भाग ले रहे भगवती प्रसाद ने बताया कि जैसे ही सामने से गोलीबारी होने लगी उससे हमारे सैनिकों को काफी नुकसान हुआ. सामने से उम्मीद के विपरीत गोलीबारी होने से एक जवान शुरू में ही वीरगति को प्राप्त हो गया. उसके बाद सभी लोग चौकन्ने हो गए. भगवती प्रसाद ने बताया वह अपनी लोकेशन पर सुबह 5 बजे पहुंचे. इसके कुछ घंटों बाद तकरीबन सुबह 9 बजे से शुरू हुई मुठभेड़ शाम 5:00 से 6:00 बजे तक चलती रही. इस दौरान लगातार गोलीबारी होती रही. मुठभेड़ में दुश्मन पहाड़ी पर था. जिसके कार वह हम पर हावी हो रहा था. लड़ाई के दौरान एक ऐसा समय भी आया जब लाइन से बैठे हुए तकरीबन 8 जवानों को एक साथ गोली लगी. वे सभी वीरगति को प्राप्त हो गए.
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ग्रेनेड और गोली लगने से भी कम नहीं हुआ हौंसला:अपने साथियों को लगातार अपने सामने दम तोड़ते देख भगवती प्रसाद का हौंसला कम नहीं हुआ. वे आखरी दम तक लड़ते रहे. इस दौरान एक ग्रेनेड उनके बाएं पैर पर और एक गोली उनके दाहिने पैर पर लगी. उन्होंने बर्फ का सहारा लेते हुए किसी तरह खुद को बचाया. इसके बाद उन्होंने नीचे आकर दूसरी टुकड़ी को जानकारी दी. साथ ही उनके साथ चलने की बात कही. इस दौरान उन्होंने अपने साथी को कहा कि वह घसीट कर उन्हें बंकर तक लेकर जाएं. जो दूरी रात में कई घंटों तक चढ़ाई कर पूरी की गई थी वह दूरी वापसी में भगवती प्रसाद के साथी ने घंटों में पूरी कर दी. जब वह सुरक्षित नीचे पहुंचे.
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पौड़ी के रहने वाले हैं पैरा कमांडो भगवती प्रसाद: उत्तराखंड के पौड़ी जहरीखाल ब्लॉक से के पैरा कमांडो भगवती प्रसाद खंतवाल 1994 में सेना में भर्ती हुए. वह सेना के पैरा कमांडो में डिप्लॉय किए गए. कारगिल की तमाम यादों के बारे में ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए भगवती प्रसाद ने कहा कारगिल उनके जीवन का बेहद रोमांचक पल था. कारगिल के यादगार लम्हें उन्हें आखिरी सांस तक याद रहेंगे.
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