पटना :महिला दिवस के मौके पर कई कार्यक्रमों का आयोजन 8 मार्च को किया जाता है. लेकिन क्या वास्तव में आधी आबादी को उसका हक समाज में मिल रहा है. इन तमाम सवालों को पद्मश्री सुधा वर्गीज ने उठाया है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने सभी महिलाओं को आगे आकर कदम से कदम मिलाकर चलने की अपील की है.
दलितों के उत्थान के लिए सुधा प्रयासरत
कुछ वर्ष पहले तक दलित की गरीबी, बदहाली और अशिक्षा अकल्पनीय थी. उन्हें पेट भरने के लिए रोज संघर्ष करना पड़ता था. शिक्षा और स्वास्थ्य उनकी प्राथमिकता नहीं थी. दलित लड़कियों का बाल विवाह और यौन उत्पीड़न उनकी नियति का हिस्सा था. लेकिन दलित की जिंदगी सुधारने के लिए केरल की एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में रहते हुए भी सुधा वर्गीज अपने राज्य को छोड़कर बिहार में गरीब बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से चली आईं थीं और यहीं की होकर रह गईं.
सुधा वर्गीज कई अवार्ड से हो चुकीं हैं सम्मानित भेदभाव देख आहत
शुरुआती दिनों में सुधा कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षिका रहीं. शिक्षा के क्षेत्र में रहने के साथ ही उनका दलित समुदाय के लोगों से संपर्क हुआ, जिसके बाद उन्हें पता चला कि दलित लोग आम गरीब से भी ज्यादा गरीब हैं. दलित जाति के लोगों, खासतौर से बिहार में भेदभाव देखने को मिला.
'ये सब जानने के लिए ही उनके बीच जाकर कई सालों तक रहीं, उसके बाद मुझे समझ में आया कि उनकी मदद कैसे की जा सकती है'- सुधा वर्गीज, पद्मश्री
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गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत
दलितों के जीवन को सुधारना, उन्हें भेदभाव से बचाना यही सुधा के जीवन का मुख्य लक्ष्य है. भले ही सरकार उच्च शिक्षा को लेकर ढिंढोरा पीटे, लेकिन आज भी गुणवत्ता शिक्षा को लेकर सरकार कोई अहम फैसला नहीं कर पा रही है. अशिक्षा, गरीबी और शोषण से अति पिछड़ा समाज का पुराना नाता है. खासकर जो सरकार की योजनाएं हैं वह निचले समुदाय के लोगों तक नहीं पहुंच पा रही हैं.
स्वयंसेवी संस्था नारी गुंजन की शुरुआत
धीरे-धीरे सुधा वर्गीज महिला समाज के लिए आईना बन कर उभरीं. उसके बाद 1987 में सुधा वर्गीज ने एक स्वयंसेवी संगठन शुरू किया. जिसका नाम रखा गया नारी गुंजन औरतों की आवाज. इसके जरिए, औरतों को उनके कानूनी अधिकार के बारे में बता कर उन्हें आगे बढ़ाना मकसद था. अब बिहार के कई जिलों में नारी गुंजन के नाम से यह संस्था चल रही है.
समाज को बदलने की कोशिश
इस संस्था के जरिए समाज को बदलने की कोशिश लगातार जारी है. आज भी अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए सुधा वर्गीज उसी उत्साह के साथ काम करती रहती हैं. उन्होंने महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे आने की अपील की है.
'साइकिल दीदी' के नाम से मशहूर
वर्गीज शुरुआती दिनों में साइकिल से दलित समुदाय के बीच में पहुंचती थीं और लोगों को जागरूक करती थीं. लोग उनको साइकिल दीदी के नाम से पुकारने लगे. वह साइकिल दीदी के नाम से भी मशहूर हैं.
कई अवार्ड से हो चुकीं हैं सम्मानित
सुधा वर्गीज को बिहार के मुखिया नीतीश कुमार शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं.
'सरकारी नौकरी में महिलाओं के लिए 35 परसेंट छूट है. लेकिन महिलाएं नौकरी करने लायक रहेंगी तभी तो लाभ ले पाएंगी. सबसे पहले सरकार को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बहाल करनी होगी. अगर कोई बच्चा स्कूल में पहुंचे और उसको अच्छी शिक्षा नहीं मिलेगी, तो उसको आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता है'.- सुधा वर्गीज, पद्मश्री
योजनाओं की होनी चाहिए मॉनिटरिंग
वर्गीज का कहना है कि सरकार जितनी भी योजनाएं चला रही है. उन योजनाओं में मॉनिटरिंग करने की बहुत जरूरत है. सरकारी हॉस्पिटलों में डॉक्टर-नर्स की कमी के साथ-साथ दवाई भी उपलब्ध नहीं होने के कारण गरीब परिवार तड़प कर दम तोड़ देते हैं.
महिलाओं के लिए संदेश
महिला दिवस के मौके पर वर्गीज ने कहा कि आने वाले दिनों में बिहार में पंचायत चुनाव में बढ़-चढ़कर कर महिला हिस्सा लें. हार और जीत एक सिक्के के दो पहलू हैं. लेकिन महिलाओं को बढ़-चढ़कर पंचायत चुनाव में हिस्सा लेना चाहिए. जिससे महिलाएं लोगों की मानसिकता बदल सकती हैं.