पटना:बाबरी विध्वंस के गवाह रहे कारसेवक प्रमोद कुमार आज गुमनामी की जिंदगी जीने को बेबस हैं. मुख्य रूप से बिहार के पटना जिला अंतर्गत मोकामा के मोल्दीयार टोला निवासी रामाश्रय प्रसाद सिंह के पुत्र हैं. प्रमोद कुमार ने पटना के ANS कॉलेज बाढ़ से LLB किया. 1986 में पास आउट हुए थे. प्रमोद बताते हैं कि कैसे उनकी आंखों के सामने उनके साथी और कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया गया था. "हमारे घर वालों ने हमें टीका लगाकर कहा अब विध्वंस करके आना नहीं तो गोली खा लेना पर मत आना."
पटना के कारसेवक प्रमोद कुमार की दास्तां: 1985 में बिहार स्टेट बार काउंसिल की ओर से स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था. उसके बाद वे 1987 में बाढ़ सिविल कोर्ट में बतौर वकील के तौर पर प्रशिक्षण शुरू किया जो आज तक जारी है. उनका जन्म सन 10 जनवरी 1955 को हुआ था. उससे पहले वे निजी को कंपनी में काम भी कर चुके हैं.
संभाल चुके हैं कारसेवक संयोजक का प्रभार:उसके बाद वह शुरुआती पढ़ाई के दौर से ही श्री राम जन्मभूमि आंदोलन में 1989 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तहसील के बौद्धिक प्रमुख के रूप में जुड़े. इस दौरान विहिप के अधिकारी तहसील स्तर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने आया करते थे, तो विहिप के अधिकारियों द्वारा उनके कामों से संतुष्ट होकर कारसेवक संयोजक का प्रभार दिया.
1990 में हुई थी संघर्ष की असल शुरुआत: इसके बाद वे लगातार संघ के कार्यों में जुड़े रहकर लोगों को जागरूक करने का काम किया. प्रमोद कुमार ने बताया कि "सन 1990 में कारसेवकों को अयोध्या बुलाया गया. जिसके बाद बिहार के अपने 101 साथियों के साथ बिहार से अयोध्या के लिए रवाना हुआ. लेकिन उस वक्त के मुलायम सिंह की सरकार को इस बात की जानकारी हो गई थी तो मुगलसराय स्टेशन से अयोध्या जाने वाली रेल और सड़क मार्ग को छावनी में बदल दिया था."
कई कारसेवकों को लिया गया हिरासत में: इस दौरान इनके कई कारसेवकों को मुगलसराय स्टेशन पर हिरासत में ले लिया गया था. जिनमें सिर्फ 7 अलग अलग बोगी में टीका मिटाकर चढ़ गए और प्रतापगढ़ के रास्ते पैदल चलते हुए 3 दिन में अयोध्या पहुंचे थे. जिसके लिए स्थानीय लोगों ने मदद किया था और रात्रि विश्राम प्रतापगढ़ के लोगों ने आर्य समाज मंदिर में ठहराया था. उसके अगले सुबह गांव वालों ने पुलिस से बचने के लिए खेत के जरिए 1 लाख 33 हजार बोल्ट के सहारे खेत नदी पार करते हुए पहुंचे थे.
जब राम भक्तों पर चली थी गोलियां: 30 अक्टूबर 1990 को राज्य सरकार ने जब लाखों की संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से आए राम भक्तों पर गोली चलवायी, उस समय मस्जिद की गुम्बद पर चढ़कर भगवा ध्वज फहराया गया था, जिसकी अगुवाई प्रमोद कुमार कर रहे थे. गोलियों की बौछार के कारण कई लोगों की मौत हो गई थी, जिससे कारसेवकों ने वापस आकर पुनः बैठक कर 1 नवंबर को प्रतिबद्ध होकर बाबरी मस्जिद के विध्वंस की प्लानिंग की.
पुलिस से धक्का मुक्की: जब वे लोग जाने लगे तो पुलिस वालों ने रोका और कारसेवकों के बीच पुलिस से धक्का मुक्की होने लगी. इस दौरान पुलिस को कारसेवकों पर गोली चलानी पड़ी और उस समय भी कारसेवकों की मौत हो गई. उसके बाद फिर सभी कारसेवकों को रणनीति बनाकार घर भेज दिया गया.