हरिद्वार : जगतगुरू आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित अखाड़ों के वक्त से नागा संन्यासी हथियार चलाने में माहिर हैं. पुराने वक्त में त्रिशूल, भाला, तलवार, कुल्हाड़ी और खुखरी नागा संन्यासियों द्वारा उपयोग किये जाते थे, मगर आज के वक्त में तमाम अत्याधुनिक हथियार चलाने में भी नागा संन्यासी माहिर हो चले हैं. हर कुंभ में नागा संन्यासियों का शस्त्र चलाते हुए अलग ही स्वरूप दिखता है.
सनातन धर्म का अहम अंग हैं नागा साधु
संत का चोला देखकर सभी लोग संतों के चरणों में नतमस्तक हो जाते हैं. उनसे आत्मज्ञान की प्राप्ति करते हैं. संतों का कार्य धर्म का प्रचार करना होता है. जब धर्म पर कोई विपदा आती है तो, उसकी रक्षा भी संतों द्वारा ही की जाती है. यही कारण है कि आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा धर्म की रक्षा के लिए नागा संन्यासियों को शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्र चलाने की भी दीक्षा दी गई.
कौन है नागा संन्यासी
महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रवींद्र पुरी का कहना है कि जब पूरा भारत बौद्ध तांत्रिकों के प्रभाव से त्रस्त हो गया था, तब आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा शास्त्रों के ज्ञान से कई राजाओं को हिंदू धर्म में समाहित किया गया. कुछ लोगों द्वारा इसका विरोध किया गया और सेना के माध्यम से इसको रोकने का प्रयास किया गया. तब शंकराचार्य द्वारा कुछ युवा साधुओं को शस्त्रों की शिक्षा दी गई. उन्हीं को नागा संन्यासी कहा जाता है.
देश और धर्म के लिए जान लगा देते हैं नागा साधु
जो संन्यासी शस्त्र चलाने और शास्त्रों के ज्ञान में निपुण होते हैं और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से पीछे नहीं हटते, उन्हीं को नागा संन्यासी कहा जाता है. यही नागा संन्यासियों की परंपरा प्राचीन समय से चलती आ रही है.
धर्म की रक्षा के लिये दिए बलिदान
रवींद्र पुरी कहते हैं कि आज के वक्त में जब भारत में लोकतंत्र है और हथियार चलाने की कोई आवश्यकता नहीं है मगर जब भी विशेष परिस्थिति में हथियार चलाने की आवश्यकता पड़ी है तो संतों ने कई बार बलिदान दिए हैं, जो इतिहास में दर्ज है. नागा संन्यासियों द्वारा भारत के प्राचीन मंदिरों की रक्षा की गई. आक्रमणकारियों ने हिंदू महिलाओं से अभद्रता के प्रयास किए तो नागा संन्यासियों ने उनका मुकाबला किया, ये भी इतिहास में दर्ज है.
सिखों में भी है शास्त्र ज्ञान की परंपरा
संन्यासी अखाड़े के नागा संन्यासियों के साथ-साथ सिख धर्म के संतों में भी शास्त्रों के साथ शस्त्र चलाने की परंपरा है. सिख धर्म के निर्मल संप्रदाय को शास्त्रों का ज्ञान गुरु गोविंद सिंह द्वारा दिया गया. साथ ही धर्म की रक्षा के लिए खालसा संप्रदाय को शस्त्र चलाने की दीक्षा दी गई.
संत करते हैं धर्म की रक्षा
पंचायती निर्मल अखाड़े के कोठारी महंत जसविंदर सिंह का कहना है कि संत महापुरुषों का जीवन समाज सुधार और समाज को सत्य के मार्ग पर लाने के लिए है. संत ही धर्म की रक्षा करते हैं. धर्म की रक्षा दो प्रकार से हो सकती है या तो शास्त्रों से या फिर शस्त्रों से इसलिए श्री गुरु गोविंद सिंह ने निर्मल संप्रदाय को शास्त्र दिया और खालसा संप्रदाय को शस्त्र दिया.