शिमला : हिमाचल प्रदेश में पर्यटकों को सफर करते समय बहुत से ऐसी जगहें मिलती हैं, जिनका नाम सुनते ही, उनके बारे में जानने और की इच्छा जरूर होती है. जिला किन्नौर का मुख्यालय रिकांगपिओ भी उन्हीं जगहों में से एक है.
रिकांगपिओ का नाम रेकांग और पिओ दो शब्दों को मिलाकर बना है. रिकांग पिओ यहां के एक रेकांग खानदान का उपनाम था और ख्वांगी परिवार की डीसी ऑफिस के साथ लगती जमीन को पीओ के नाम से जाना जाता था. इन दोनों शब्दों को रेकांग और पिओ को मिलाकर यहां का नाम रिकांगपिओ पड़ा.
आईटीबीपी के अधिकारियों ने रखा नाम
1960 में आईटीबीपी से पहले यहां बॉर्डर पुलिस हुआ करती थी. रिकांगपिओ में जिस जगह पर जहां आज आईटीबीपी कैंप बसा हुआ है पहले यह जगह रेकांग परिवार की हुआ करती थी. यहां रेकांग खानदान का खेत हुआ करता था. वहीं, डीसी ऑफिस के साथ लगने वाली ख्वांगी परिवार की जमीन को लोग पिओ के नाम से बुलाते थे. बॉर्डर पुलिस के अधिकारियों ने रेकांग खानदान के उपनाम और डीसी ऑफिस के साथ लगती जमीन पिओ के नाम को मिलाकर 1960 में यहां का नाम रेकांगपिओ रख दिया. समय के साथ धीरे-धीरे इसका नाम रेकांगपिओ से रिकांगपिओ हुआ और अब रिकोंगपिओ भी कहा जाने लगा है, जबकि किन्नौर मुख्यालय का नाम असल में रेकांगपिओ है.
रेकांग परिवार के सदस्य पंडुप लाल रेकांग ने बताया कि इतना तो उन्हें भी याद है कि जहां आज डीसी ऑफिस बना हुआ है, किसी समय वहां उनका खेत हुआ करता था और वहां पर उनके पिता खेती किया करते थे.
जमींदार से लगी थी शर्त
वहीं, पंडुप लाल रेकांग ने बताया एक बार उनके पूर्वजों की गांव के एक जमींदार के साथ शर्त लग गई थी कि रेकांग परिवार का व्यक्ति जितनी दूर पत्थर फेंकेंगे जमीन का उतना हिस्सा उन्हें दे दिया जाएगा.
ऐसे में रेकांग परिवार के किसी बुजुर्ग ने एक पत्थर को ब्रेलंगी गांव से फेंका तो सीधे रिकांगपिओ में आकर गिरा. बुजुर्ग समेत ग्रामीणों ने आकर देखा तो वह पत्थर आज के आईटीबीपी मैदान गिरा हुआ था. ऐसे में आईटीबीपी मैदान तक की जमीन रेकांग परिवार को दी गई थी.