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12 पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक है बैद्यनाथ धाम, सावन में भक्तों पर बरसती है कृपा, जानिए यहां की परंपरा

सावन के महीने में बैद्यनाथ धाम में पूजा करना काफी खास माना जाता है. मान्यता है कि सावन में यहां सच्चे मन से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यही वजह है कि पूरे भारत से लोग सावन में भोलेनाथ को जल अर्पण करने देवघर पहुंचते हैं.

Story and history of baba mandir Devghar
Story and history of baba mandir Devghar

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Published : Jul 14, 2022, 7:38 PM IST

देवघर:बैद्यनाथ धाम देश का एक ऐसा ज्योर्तिलिंग है जो शक्तिपीठ भी है. मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है. इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं. सावन में यहां लाखों लोग पहुंचे हैं बाबा भोलेनाथ पर जल अर्पण करते हैं. देवघर के बारे में मान्यता है कि माता के ह्रदय की रक्षा के लिए भगवान शिव ने यहां जिस भैरव को स्थापित किया था, उनका नाम बैद्यनाथ था. इसलिए जब रावण शिवलिंग को लेकर यहां पहुंचा तो भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने भैरव के नाम पर उस शिवलिंग का नाम बैद्यनाथ रख.

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देवघर के बैद्यनाथ धाम की गिनती देश के पवित्र द्वाद्वश ज्योतिर्लिंगों में से एक है. शास्त्रो में भी यहां की महिमा का उलेख है. मान्यता है कि सतयुग में ही इसका नामकरण हो गया था. खुद भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने भैरव के नाम पर यहां का नाम बैद्यनाथ रखा था. ऐसी अस्था है कि यहां मांगी हर मनोकामना पूर्ण होती है. इसके लिए सावन का महीना खास होता है इसलिए पूरे सावन यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.

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तीर्थ पुरोहित बाबा झा बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार यह माता सती के ह्रदय और भगवान शिव के आत्मलिंग का सम्मिश्रण है. इसलिए यहां के ज्योतिर्लिंग में आपार शक्ति है. यहां सच्चे मन से पूजा पाठ और ध्यान करने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं. बड़े बड़े साधु संत मोक्ष पाने के लिए यहां पहुंचते हैं. बाबा झा कहते हैं कि शिव पुराण के शक्तिखंड में इस बात का उलेख है कि माता सती की शरीर के 52 खंडों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने सभी जगहों पर भैरव को स्थापित किया था. देवघर में माता का ह्रदय गिरा था, इसलिए इसे ह्रदयपीठ या शक्तिपीठ भी कहते हैं. माता के ह्रदय की रक्षा के लिए भगवान शिव ने जिस भैरव को स्थापित किया था उसका नाम बैद्यनाथ था. इसलिए जब रावण शिवलिंग को लेकर यहां पहुंचा तोह भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने भैरव के नाम पर उस शिवलिंग का नाम बैद्यनाथ रख दिया.


नामकरण के पीछे एक और मान्यता है कि त्रेतायुग में बैजू नाम का एक शिव भक्त था. उसकी भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए की अपने नाम के आगे बैजू जोड़ लिया इसी से यहां का नाम बैजनाथ पड़ा. कालांतर में यही बैजनाथ, बैद्यनाथ में परिवर्तित हुआ.


बैद्यनाथ धाम देश के 12 पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल है. इसलिए पूरे साल यहां बाबा पर जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. सावन में भक्त सुल्तानगंज से 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं और बाबा का जलाभिषेक करते हैं. यह सिलसिला पूरे एक महीना चलता है. इसके अलावा अगर कोई पति पत्नी यहां पूजा करने आता है वे भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर के बीच एक बंधन बांधता है. ऐसा माना जाता है कि इससे पति पत्नी के बीच प्रेम और समृद्ध आती है. श्रद्धालु बाबा मंदिर में पूजा करने के बाद भस्म लेते हैं पुरोहित बताते हैं कि भस्म का टीका लगाने से सारी बाधा दूर होती है.

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