हैदराबाद :भारत में कई कानून हैं. कुछ कानून केंद्र बनाता है तो कुछ राज्य सरकारें. कई कानून है जो कुछ ही राज्यों में लागू होते हैं. इन दिनों जनसंख्या नियंत्रण कानून काफी चर्चा में है.
आइये डालते हैं एक नजर
भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून
इस कानून की बात की जाए तो इन दिनों काफी चर्चा में है. इसे लागू करने की बात बहुत पहले से चलती आ रही है, लेकिन किसी कारणवश यह लागू नहीं हो पाया. फिलहाल उत्तर प्रदेश में इस कानून को लागू करने की तैयारी की जा रही है. बता दें, आजादी के बाद से देश की संसद में 35 से अधिक बार संसद में दो बच्चों की नीति पेश की जा चुकी है. इसे आखिरी बार राज्यसभा में फरवरी 2020 में संसद सदस्य अनिल देसाई द्वारा विधेयक के माध्यम से लाया गया था. विधेयक में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 47ए को शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन करने की मांग की गई थी. विश्वभर में चीन के बाद भारत जनसंख्या में दूसरे नंबर पर है लंबे समय से यह मांग उठती रही कि वन चाइल्ड पॉलिसी या फिर टू चाइल्ड पॉलिसी भारत में लाई जाए. इस वक्त भारत की जनसंख्या 135 करोड़ से ज्यादा हो गई है जिसको देखकर इस कानून की मांग उठाई गई.
भारत में 9 राज्यों में यह कानून लागू है जिसमें असम, उड़ीसा, बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राजस्थान, गुजरात मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं.
क्या है जनसंख्या नियंत्रण कानून?
इस कानून के तहत एक या दो जितने भी चाइल्ड पॉलिसी की बात इस कानून में राज्यों की तरफ से कही गई हो उससे ज्यादा बच्चे पैदा करता है तो उसे किसी भी तरह की सरकारी सुविधाएं नहीं दी जाएंगी और ना ही वह पंचायत के चुनाव पर नगर पालिका के चुनाव लड़ सकता है. हालांकि हर राज्य में इसको लेकर अलग-अलग प्रावधान है क्योंकि यह कानून राज्य अपने प्रावधानों के तहत संशोधन के साथ लागू कर सकता है.
बता दें, सरकार ने बीते साल सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल कर कहा था कि वह जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू नहीं करेंगे. वह देश के नागरिकों पर जबरन परिवार नियोजन का विचार नहीं हो पाएंगे पर अब जल्दी यूपी सरकार इस कानून को यूपी में लाने वाली है.
राज्यों पर डालें एक नजर
1: राजस्थान में जिन लोगों के दो से अधिक बच्चे हैं वे सरकारी नौकरियों के लिए पात्र नहीं होंगे. राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 में यह भी कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति के दो से अधिक बच्चे हैं, तो उसे पंच या सदस्य के रूप में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. हालांकि, एक बच्चे के अलग-अलग विकलांग होने की स्थिति में दो-बच्चे के मानदंड में ढील दी गई है.
2: मध्य प्रदेश में 2001 से दो बच्चों के मानदंड का पालन किया जा रहा है. मध्य प्रदेश सिविल सेवा नियमों के तहत, यदि तीसरे बच्चे का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद हुआ है, तो व्यक्ति सरकारी सेवाओं के लिए अपात्र हो जाता है. यह मानदंड उच्च न्यायिक सेवाओं पर भी लागू होता है.
3: महाराष्ट्र सिविल सेवा नियम भी दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को राज्य सरकार में एक पद धारण करने से रोकता है.
4: महाराष्ट्र में भी उम्मीदवारों को दो से अधिक बच्चे होने के कारण स्थानीय निकाय चुनाव (ग्राम पंचायतों से नगर निगमों तक) लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ उठाने की अनुमति नहीं है.
5: गुजरात ने 2005 में स्थानीय कानून में संशोधन किया ताकि दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को स्थानीय स्वशासन निकायों - पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सके. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पंचायती राज कानूनों के तहत, यदि किसी व्यक्ति के 30 मई, 1994 से पहले दो से अधिक बच्चे थे, तो उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया जाएगा. उत्तराखंड में भी जिला पंचायत और प्रखंड विकास समिति की सदस्यता के चुनाव में दो संतान की शर्त लागू होती है.
6: ओडिशा जिला परिषद अधिनियम भी दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में किसी भी पद पर रहने से रोकता है.
7: असम में जनसंख्या नीति पहले से ही लागू है. 2019 में पिछली भाजपा सरकार ने फैसला किया था कि दो से अधिक बच्चों वाले लोग 1 जनवरी, 2021 से सरकारी नौकरियों के लिए पात्र नहीं होंगे. 2011 में, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीआर कृष्णा अय्यर की अध्यक्षता में कानून सुधार आयोग ने दो-बच्चे के मानदंड की सिफारिश की थी.
8: यूपी राज्य विधि आयोग ने एक विधेयक लाने के लिए एक मसौदा विधेयक पर काम शुरू कर दिया है, जो राज्य की योजनाओं के लाभों को केवल दो या उससे कम बच्चों वाले लोगों तक सीमित करने का प्रस्ताव कर सकता है, जबकि यूपी सरकार ने अभी तक इस संबंध में कोई घोषणा नहीं की है, कानून आयोग के प्रमुख न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आदित्य नाथ मित्तल ने पुष्टि की कि उन्होंने मसौदा विधेयक तैयार करने के लिए जमीनी काम और चर्चा शुरू कर दी है.
9: असम भी इसी तरह की नीति की योजना बना रहा है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में घोषणा की कि उनकी सरकार राज्य द्वारा वित्त पोषित विशिष्ट योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए दो-बच्चों के मानदंड को धीरे-धीरे लागू करेगी.
ट्रिपल तलाक
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद विश्व भर में ट्रिपल तलाक कानून बनाया गया और इस कानून के तहत उम्मीद थी कि बहुत सारे मामले सामने आएंगे, लेकिन हैरानी तब हुई जब सिर्फ कुछ ही मामले सामने आए. भारत में मुस्लिम महिलाओं के लिए दो कानून लागू होते हैं जिसमें एक शरियत का कानून और दूसरा ट्रिपल तलाक. ट्रिपल तलाक के तहत सजा का प्रावधान है, लेकिन शरीयत के तहत खर्चा मांग सकती है.
एक नजर में ट्रिपल तलाक
ट्रिपल तलाक पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राज्यवार आंकड़ों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि सबसे कम 17 मामले असम में पाए गए हैं. वहीं, सबसे अधिक 1,034 केस सिर्फ उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए. चौंकाने वाली बात है कि महज 265 मामलों में ही गिरफ्तारी हुई है. इससे इतर मध्य प्रदेश का इस लिस्ट मे 8वां स्थान रहा. जहां 32 मामले दर्ज किए गए थे. वहीं, पश्चिम बंगाल में 201 मामले दर्ज किए गए थे. इसके बाद महाराष्ट्र में 102 मामले सामने आए. इसके बाद क्रमश: राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा और केरल में 83, 26, 26 19 मामले दर्ज किए गए हैं. तत्काल तीन तलाक के मामलों में कितनी गिरफ्तारियां हुई हैं, इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा अभी उपलब्ध नहीं हो सका है.
केंद्र की मोदी सरकार ने 19 सितंबर 2018 से इस कानून को लागू किया था. जानकारी के मुताबिक कानून बनने के बाद से देश में तीन तलाक की केवल 1,039 घटनाएं हुई हैं. जबकि 3,82,964 मामले या तत्काल तलाक के मामले दर्ज किए गए.
मध्य प्रदेश में सिर्फ 32 मामले दर्ज किए हैं. वहीं, कानून बनने के बाद से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी हालात बदले हैं. केरल और असम में भी इस कानून का असर दिखाई पड़ा है. इससे इतर दक्षिणी राज्य में औसतन 683 मामले दर्ज किए गए हैं. पूर्वोत्तर राज्य असम में भी सिर्फ 17 मामले सामने आए हैं. इसके आलावा बिहार, महाराष्ट्र में काफी सुधार देखा गया है.
धर्मांतरण विरोधी कानून