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भारत के राज्यों में क्या है जनसंख्या नियंत्रण समेत अन्य कानूनों की स्थिति, डालें एक नजर

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Published : Jul 18, 2021, 2:21 PM IST

विश्वभर में चीन के बाद भारत जनसंख्या में दूसरे नंबर पर है. लंबे समय से यह मांग उठती रही कि वन चाइल्ड पॉलिसी या फिर टू चाइल्ड पॉलिसी भारत में लाई जाए. इस वक्त भारत की जनसंख्या 135 करोड़ से ज्यादा हो गई है जिसको देखकर इस कानून की मांग उठाई गई.

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काफी चर्चा में जनसंख्या नियंत्रण कानून

हैदराबाद :भारत में कई कानून हैं. कुछ कानून केंद्र बनाता है तो कुछ राज्य सरकारें. कई कानून है जो कुछ ही राज्यों में लागू होते हैं. इन दिनों जनसंख्या नियंत्रण कानून काफी चर्चा में है.

आइये डालते हैं एक नजर

भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून

इस कानून की बात की जाए तो इन दिनों काफी चर्चा में है. इसे लागू करने की बात बहुत पहले से चलती आ रही है, लेकिन किसी कारणवश यह लागू नहीं हो पाया. फिलहाल उत्तर प्रदेश में इस कानून को लागू करने की तैयारी की जा रही है. बता दें, आजादी के बाद से देश की संसद में 35 से अधिक बार संसद में दो बच्चों की नीति पेश की जा चुकी है. इसे आखिरी बार राज्यसभा में फरवरी 2020 में संसद सदस्य अनिल देसाई द्वारा विधेयक के माध्यम से लाया गया था. विधेयक में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 47ए को शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन करने की मांग की गई थी. विश्वभर में चीन के बाद भारत जनसंख्या में दूसरे नंबर पर है लंबे समय से यह मांग उठती रही कि वन चाइल्ड पॉलिसी या फिर टू चाइल्ड पॉलिसी भारत में लाई जाए. इस वक्त भारत की जनसंख्या 135 करोड़ से ज्यादा हो गई है जिसको देखकर इस कानून की मांग उठाई गई.

भारत में 9 राज्यों में यह कानून लागू है जिसमें असम, उड़ीसा, बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राजस्थान, गुजरात मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं.

क्या है जनसंख्या नियंत्रण कानून?

इस कानून के तहत एक या दो जितने भी चाइल्ड पॉलिसी की बात इस कानून में राज्यों की तरफ से कही गई हो उससे ज्यादा बच्चे पैदा करता है तो उसे किसी भी तरह की सरकारी सुविधाएं नहीं दी जाएंगी और ना ही वह पंचायत के चुनाव पर नगर पालिका के चुनाव लड़ सकता है. हालांकि हर राज्य में इसको लेकर अलग-अलग प्रावधान है क्योंकि यह कानून राज्य अपने प्रावधानों के तहत संशोधन के साथ लागू कर सकता है.

बता दें, सरकार ने बीते साल सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल कर कहा था कि वह जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू नहीं करेंगे. वह देश के नागरिकों पर जबरन परिवार नियोजन का विचार नहीं हो पाएंगे पर अब जल्दी यूपी सरकार इस कानून को यूपी में लाने वाली है.

राज्यों पर डालें एक नजर

1: राजस्थान में जिन लोगों के दो से अधिक बच्चे हैं वे सरकारी नौकरियों के लिए पात्र नहीं होंगे. राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 में यह भी कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति के दो से अधिक बच्चे हैं, तो उसे पंच या सदस्य के रूप में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. हालांकि, एक बच्चे के अलग-अलग विकलांग होने की स्थिति में दो-बच्चे के मानदंड में ढील दी गई है.

2: मध्य प्रदेश में 2001 से दो बच्चों के मानदंड का पालन किया जा रहा है. मध्य प्रदेश सिविल सेवा नियमों के तहत, यदि तीसरे बच्चे का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद हुआ है, तो व्यक्ति सरकारी सेवाओं के लिए अपात्र हो जाता है. यह मानदंड उच्च न्यायिक सेवाओं पर भी लागू होता है.

3: महाराष्ट्र सिविल सेवा नियम भी दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को राज्य सरकार में एक पद धारण करने से रोकता है.

4: महाराष्ट्र में भी उम्मीदवारों को दो से अधिक बच्चे होने के कारण स्थानीय निकाय चुनाव (ग्राम पंचायतों से नगर निगमों तक) लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ उठाने की अनुमति नहीं है.

5: गुजरात ने 2005 में स्थानीय कानून में संशोधन किया ताकि दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को स्थानीय स्वशासन निकायों - पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सके. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पंचायती राज कानूनों के तहत, यदि किसी व्यक्ति के 30 मई, 1994 से पहले दो से अधिक बच्चे थे, तो उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया जाएगा. उत्तराखंड में भी जिला पंचायत और प्रखंड विकास समिति की सदस्यता के चुनाव में दो संतान की शर्त लागू होती है.

6: ओडिशा जिला परिषद अधिनियम भी दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में किसी भी पद पर रहने से रोकता है.

7: असम में जनसंख्या नीति पहले से ही लागू है. 2019 में पिछली भाजपा सरकार ने फैसला किया था कि दो से अधिक बच्चों वाले लोग 1 जनवरी, 2021 से सरकारी नौकरियों के लिए पात्र नहीं होंगे. 2011 में, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीआर कृष्णा अय्यर की अध्यक्षता में कानून सुधार आयोग ने दो-बच्चे के मानदंड की सिफारिश की थी.

8: यूपी राज्य विधि आयोग ने एक विधेयक लाने के लिए एक मसौदा विधेयक पर काम शुरू कर दिया है, जो राज्य की योजनाओं के लाभों को केवल दो या उससे कम बच्चों वाले लोगों तक सीमित करने का प्रस्ताव कर सकता है, जबकि यूपी सरकार ने अभी तक इस संबंध में कोई घोषणा नहीं की है, कानून आयोग के प्रमुख न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आदित्य नाथ मित्तल ने पुष्टि की कि उन्होंने मसौदा विधेयक तैयार करने के लिए जमीनी काम और चर्चा शुरू कर दी है.

9: असम भी इसी तरह की नीति की योजना बना रहा है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में घोषणा की कि उनकी सरकार राज्य द्वारा वित्त पोषित विशिष्ट योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए दो-बच्चों के मानदंड को धीरे-धीरे लागू करेगी.

ट्रिपल तलाक

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद विश्व भर में ट्रिपल तलाक कानून बनाया गया और इस कानून के तहत उम्मीद थी कि बहुत सारे मामले सामने आएंगे, लेकिन हैरानी तब हुई जब सिर्फ कुछ ही मामले सामने आए. भारत में मुस्लिम महिलाओं के लिए दो कानून लागू होते हैं जिसमें एक शरियत का कानून और दूसरा ट्रिपल तलाक. ट्रिपल तलाक के तहत सजा का प्रावधान है, लेकिन शरीयत के तहत खर्चा मांग सकती है.

एक नजर में ट्रिपल तलाक

ट्रिपल तलाक पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राज्यवार आंकड़ों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि सबसे कम 17 मामले असम में पाए गए हैं. वहीं, सबसे अधिक 1,034 केस सिर्फ उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए. चौंकाने वाली बात है कि महज 265 मामलों में ही गिरफ्तारी हुई है. इससे इतर मध्य प्रदेश का इस लिस्ट मे 8वां स्थान रहा. जहां 32 मामले दर्ज किए गए थे. वहीं, पश्चिम बंगाल में 201 मामले दर्ज किए गए थे. इसके बाद महाराष्ट्र में 102 मामले सामने आए. इसके बाद क्रमश: राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा और केरल में 83, 26, 26 19 मामले दर्ज किए गए हैं. तत्काल तीन तलाक के मामलों में कितनी गिरफ्तारियां हुई हैं, इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा अभी उपलब्ध नहीं हो सका है.

केंद्र की मोदी सरकार ने 19 सितंबर 2018 से इस कानून को लागू किया था. जानकारी के मुताबिक कानून बनने के बाद से देश में तीन तलाक की केवल 1,039 घटनाएं हुई हैं. जबकि 3,82,964 मामले या तत्काल तलाक के मामले दर्ज किए गए.

मध्य प्रदेश में सिर्फ 32 मामले दर्ज किए हैं. वहीं, कानून बनने के बाद से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी हालात बदले हैं. केरल और असम में भी इस कानून का असर दिखाई पड़ा है. इससे इतर दक्षिणी राज्य में औसतन 683 मामले दर्ज किए गए हैं. पूर्वोत्तर राज्य असम में भी सिर्फ 17 मामले सामने आए हैं. इसके आलावा बिहार, महाराष्ट्र में काफी सुधार देखा गया है.

धर्मांतरण विरोधी कानून

यह कानून लंबे समय से चर्चा में रहा है. बीजेपी ने इस मुद्दे को उठाया गया और कई बीजेपी शासित प्रदेशों में आने वाले समय में यह कानून लागू भी होने वाला है. धर्मांतरण विरोधी कानून देश में 9 राज्य में लागू है. यह कानून सबसे पहले उड़ीसा में 1967 में लागू किया गया था. इस कानून के तहत शादी के लिए गलत तरीके से धर्म परिवर्तन करने पर सजा का प्रावधान किया गया है. जिन 9 राज्यों में यह कानून लागू है उनमें उड़ीसा, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और यूपी शामिल हैं.

लव जिहाद कानून

लव जिहाद वैसे तो कोई कानूनी शब्द नहीं है, लेकिन हिंदू मुस्लिम के हाथ जोड़कर इससे यह नाम दिया गया है और जो कानून कई राज्यों में लव जिहाद को लेकर चल भी रहा है उसे लव जिहाद कानून कहा जाता है.

धर्मांतरण कानून

1:हिमाचल प्रदेश विधान सभा ने अगस्त 2019 में जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने वाला विधेयक पारित किया.

2:विवाह जो धर्म परिवर्तन के एकमात्र उद्देश्य के लिए किया गया था, किसी भी पक्ष द्वारा प्रस्तुत याचिका पर परिवार न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित किया जा सकता है.

3: हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2006, नया अधिनियम लागू होने पर निरस्त कर दिया जाएगा. 2006 के अधिनियम में अधिकतम दो वर्ष की कैद का प्रावधान किया गया था जबकि विधेयक में अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए पांच वर्ष के कारावास का प्रस्ताव किया गया था.

4: विधेयक की धारा-3 में कहा गया कि कोई भी व्यक्ति गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या शादी के जरिए किसी अन्य व्यक्ति को सीधे या अन्यथा किसी धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा और न ही कोई व्यक्ति इस तरह के रूपांतरण के लिए उकसाएगा या साजिश नहीं करेगा.

5: 2006 के अधिनियम में प्रासंगिक प्रावधान में 'गलत बयानी, जबरदस्ती, शादी, अनुचित प्रभाव' जैसे शब्द शामिल नहीं थे. बिल 'जबरदस्ती' को किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव या शारीरिक बल के कारण शारीरिक चोट या धमकी देने के लिए मजबूर करने के कार्य के रूप में परिभाषित करता है. दैवीय अप्रसन्नता या सामाजिक बहिष्कार का खतरा भी 'बल' के अर्थ में आता है. बिल हालांकि स्पष्ट करता है कि मूल धर्म में फिर से धर्मांतरण को अधिनियम के तहत रूपांतरण नहीं माना जाएगा.

6:सबसे महत्वपूर्ण रूप से अधिनियम की धारा 5 में यह प्रावधान है कि कोई भी विवाह जो धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किया गया था, किसी भी पक्ष द्वारा प्रस्तुत याचिका पर परिवार न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित किया जा सकता है. इसके अलावा, एक व्यक्ति जो अन्य धर्म में परिवर्तित होना चाहता है, उसे जिला मजिस्ट्रेट के सामने एक घोषणा देनी चाहिए कि वह अपनी मर्जी से और बिना बल, जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव, प्रलोभन या कपटपूर्ण साधनों के धर्म परिवर्तन कर रहा है.

उत्तर प्रदेश राज्यपाल ने अवैध धर्म परिवर्तन पर रोक अध्यादेश- 2020 जारी किया

1:उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अध्यादेश 2020 (उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म सम्परिवर्तन प्रतिष्ठान 2020) की घोषणा की.

2: उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने 24 नवंबर को अध्यादेश के मसौदे को अपनी मंजूरी दे दी, जो गैर-कानूनी धर्मांतरण को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध बनाता है.

3: अधिनियम की प्रस्तावना के अनुसार 'गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या शादी के द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए और उससे जुड़े मामलों या उससे संबंधित मामलों के लिए है.

अध्यादेश में प्रमुख प्रावधान

1:मिथ्या निरूपण, बल, कपट, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण का निषेध. कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को सीधे या अन्यथा, गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या शादी के द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा और न ही किसी व्यक्ति को इस तरह के रूपांतरण के लिए उकसाना, मनाना या साजिश करना.

2: धारा 3 के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति अपने तत्काल पिछले धर्म में पुन: परिवर्तित हो जाता है, तो उसे इस अधिनियम के तहत रूपांतरण नहीं माना जाएगा.

3: हर जिले के जिलाधिकारी को स्वयं देखना होगा कि धर्मांतरण स्वेच्छा से किया गया है, यदि अनुमति दी जाती है, तो संबंधित पुजारी, मौलवी, पादरी डीएम को स्थान और समय के बारे में सूचित करेंगे कि वह कब जा रहे हैं. यदि वह प्रस्तावित परिवर्तन के बारे में डीएम को सूचित करने में विफल रहता है, तो वह भी दंड के भागी होगा.

मध्य प्रदेश के राज्यपाल ने मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अध्यादेश, 2020 जारी किया

1:मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अध्यादेश, 2020 को प्रख्यापित किया है. अध्यादेश राजपत्र अधिसूचना (दिनांक 09 जनवरी 2021) में प्रकाशित किया गया है.

2: गौरतलब है कि मध्य प्रदेश कैबिनेट ने 26 दिसंबर को अध्यादेश के मसौदे को अपनी मंजूरी दे दी थी, जिसमें कई प्रावधान हैं जो हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के समान हैं.

3: महत्वपूर्ण रूप से अध्यादेश के तहत किए गए प्रत्येक अपराध को सत्र न्यायालय द्वारा संज्ञेय, गैर-जमानती और विचारणीय बनाया गया है.

4: इसके अलावा, अध्यादेश ने मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1968 और उसके तहत बनाए गए नियमों को निरस्त कर दिया है.

कानून के मुताबिक यदि कोई धर्म छिपा कर शादी करता है तो उसको 5 साल की सजा और 200000 का जुर्माना होने का प्रावधान है. वहीं नाबालिग से शादी की जाती है तो 7 साल की सजा व जुर्मा का प्रावधान है और कानून की अवहेलना करने वालों को ₹300000 का जुर्माना व 7 साल की जेल का प्रावधान है.

इस मामले पर पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के वकील फैरी सोफत ने बताया कि हरियाणा में लव जिहाद के मामले सामने आते हैं वही ऑनर किलिंग के मामले भी उसी के साथ जोड़े जाते हैं. खासकर हिंदू मुस्लिम मामले में लव जिहाद को जोड़कर देखा जाता है और ऐसे कई मामले सामने भी आए हैं जहां पर मुस्लिम युवक नहीं हिंदू लड़की से सिर्फ इसलिए शादी की क्योंकि वह मुस्लिमों की संख्या बढ़ाना चाहते थे. उन्होंने कहा कि इस कानून को धर्मांतरण विरोध कानून के तहत भी जोड़ा जाता है.

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