नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि देश में नफरत भरे भाषण की कई घटनाओं के बाद लिंचिंग और भीड़ हिंसा से निपटने की रणनीति तैयार करने के लिए 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने नोडल अधिकारी नियुक्त किए गये हैं. तहसीन पूनावाला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया ऑर्र्स (2018) फैसले में अदालत के निर्देशों के अनुपालन में, गृह मंत्रालय में उप सचिव द्वारा 17 नवंबर को शीर्ष अदालत के समक्ष हलफनामा दायर किया गया था.
25 अगस्त 2023 को शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने 25 अगस्त को पारित अपने आदेश में कहा था कि विद्वान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि गृह मंत्रालय नोडल अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में राज्य सरकार से पता लगाएगा और जानकारी प्राप्त करेगा. आज से तीन सप्ताह की अवधि के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाएगी. यदि कोई राज्य सरकार जानकारी/विवरण प्रदान नहीं करती है, तो उसे भी अदालत के समक्ष रखाना होगा. केंद्र की प्रतिक्रिया वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर आई है.
जिन राज्यों ने 2018 के फैसले के अनुपालन में अपनी प्रतिक्रियाएं दाखिल की हैं, वे हैं आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, लद्दाख और लक्षद्वीप शामिल हैं.
25 अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नफरत फैलाने वाले भाषण को परिभाषित करना मुश्किल है (चाहे भाषण सीमा पार कर जाए और यह आसान नहीं है) और जिलेवार नोडल अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में राज्य सरकारों से प्रतिक्रिया मांगी. इस बात पर भी जोर दिया महानिदेशक को डीसीपी के परामर्श से नफरत भरे भाषण के मामलों की जांच, सीसीटीवी कैमरे लगाने आदि के लिए 3 या 4 अधिकारियों की एक समिति बनानी चाहिए.