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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- हेट स्पीच पर अंकुश लगाने को नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए - हेट स्पीच

सुप्रीम कोर्ट को केंद्र ने सूचित किया है कि 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा लिंचिंग और भीड़ हिंसा के मुद्दे से निपटने के लिए कार्य योजना विकसित करने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, जो नफरत की कई घटनाओं के कारण चिंता का विषय बन गया है. ईटीवी भारत के सुमित सक्सेना की रिपोर्ट. nodal officers to curb hate speech, officers to curb hate speech, curb hate speech, Hate speech SC on hate speech

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 21, 2023, 7:09 AM IST

नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि देश में नफरत भरे भाषण की कई घटनाओं के बाद लिंचिंग और भीड़ हिंसा से निपटने की रणनीति तैयार करने के लिए 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने नोडल अधिकारी नियुक्त किए गये हैं. तहसीन पूनावाला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया ऑर्र्स (2018) फैसले में अदालत के निर्देशों के अनुपालन में, गृह मंत्रालय में उप सचिव द्वारा 17 नवंबर को शीर्ष अदालत के समक्ष हलफनामा दायर किया गया था.

25 अगस्त 2023 को शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने 25 अगस्त को पारित अपने आदेश में कहा था कि विद्वान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि गृह मंत्रालय नोडल अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में राज्य सरकार से पता लगाएगा और जानकारी प्राप्त करेगा. आज से तीन सप्ताह की अवधि के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाएगी. यदि कोई राज्य सरकार जानकारी/विवरण प्रदान नहीं करती है, तो उसे भी अदालत के समक्ष रखाना होगा. केंद्र की प्रतिक्रिया वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर आई है.

जिन राज्यों ने 2018 के फैसले के अनुपालन में अपनी प्रतिक्रियाएं दाखिल की हैं, वे हैं आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, लद्दाख और लक्षद्वीप शामिल हैं.

25 अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नफरत फैलाने वाले भाषण को परिभाषित करना मुश्किल है (चाहे भाषण सीमा पार कर जाए और यह आसान नहीं है) और जिलेवार नोडल अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में राज्य सरकारों से प्रतिक्रिया मांगी. इस बात पर भी जोर दिया महानिदेशक को डीसीपी के परामर्श से नफरत भरे भाषण के मामलों की जांच, सीसीटीवी कैमरे लगाने आदि के लिए 3 या 4 अधिकारियों की एक समिति बनानी चाहिए.

न्यायमूर्ति संजीव भट और एसवीएन भट्टी की पीठ ने तब कहा था कि यदि कोई कथन सही नहीं है और अधिकारी उस पर विश्वास नहीं करते हैं तो नोडल अधिकारी (जिलावार) बता सकते हैं, और यदि यह सही है, तो उन्हें इसे इंगित करना होगा और काउंटर वीडियो अपलोड करें.

शीर्ष अदालत तब हरियाणा में नूंह-गुरुग्राम सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुसलमानों के बहिष्कार के लिए कई समूहों द्वारा किए गए आह्वान के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. यह आवेदन पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला की ओर से दायर की गई थी. जिसका प्रतिनिधित्व वकील निजाम पाशा कर रहे थे. 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से नफरत भरे भाषण के मामलों को देखने के लिए एक समिति गठित करने को कहा था. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा था कि समुदायों के बीच सद्भाव और सौहार्द होना चाहिए. यह सभी समुदायों की जिम्मेदारी है. कोई भी नफरत भरे भाषण को स्वीकार नहीं कर सकता है.

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पीठ ने 'घृणास्पद भाषण' की समस्या से निपटने के लिए एक अंतर्निहित तंत्र पर जोर देते हुए कहा था कि अदालतों में आना कोई समाधान नहीं है. केंद्र के वकील ने इस बात पर जोर दिया था कि सरकार नफरत फैलाने वाले भाषण का समर्थन नहीं करती है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि 2018 में तहसीन पूनावाला मामले में फैसले में, अदालत ने मॉब लिंचिंग को रोकने के उपायों के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों को काफी विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए थे. इसमें और अधिक चीजें जोड़कर दिशानिर्देशों को और मजबूत किया जाएगा.

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