हैदराबाद : भारत और श्रीलंका के बीच लंबे इंतजार के बाद त्रिंकोमाली तेल टैंक समझौता (trincomalee oil tank contract to india)हुआ है. समझौते की रेस में चीन भी शामिल था, लेकिन श्रीलंका ने भारत को प्राथमिकता दी. इसे लेकर सबसे पहली बार चर्चा बतौर पीएम राजीव गांधी ने की थी.
इस समझौते के तहत इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (oil tank deal with India IOC) और त्रिंको पेट्रोलियम टर्मिनल लिमिटेड सीलोन पेट्रोलियम कॉरपोरेशन दोनों साथ मिलकर 61 ऑयल टैंक (Oil Tank) बनाएंगे. इसका लोकेशन तमिलनाडु से बेहद करीब होगा.
सबसे पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 29 अक्टूबर 1987 को भारत-श्रीलंका समझौते के दौरान इसका जिक्र किया था. लेकिन उसके बाद इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक त्रिंकोमाली बंदरगाह में अमेरिका की भी रूचि थी. अमेरिका यहां पर नौसैनिक अड्डा (Nave Base) बनाना चाहता था. जिस जगह पर ऑयल टैंक बनाया जाना है, वहां से बंदरगाह की दूरी बहुत कम है. त्रिंकोमाली चेन्नई का सबसे करीबी बंदरगाह है. इसका रणनीतिक महत्व है. इसलिए चीन इसे किसी भी तरीके से हासिल करना चाहता था. अगर यह समझौता चीन के पक्ष में जाता, तो भारत के लिए प्रतिकूल स्थिति हो सकती थी.
श्रीलंका पर बढ़ रहा कर्ज, राष्ट्रपति ने कहा कर्ज नहीं होगा डिफॉल्ट
श्रीलंका सरकार ने गंभीर विदेशी मुद्रा संकट के बीच मंगलवार को 1.2 अरब डॉलर के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की. वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे ने दावा किया कि देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कर्ज डिफाल्ट नहीं करेगा. हालांकि, रेटिंग एजेंसियों ने संकेत दिए हैं कि श्रीलंका अपने ऋण दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ है.