नई दिल्ली:चीन के श्रीलंका की ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया (Sri Lankas debt restructuring process) का नेतृत्व करने के लिए अचानक कदम उठाने से भारत सहित द्वीप राष्ट्र के अन्य ऋणदाताओं को आश्चर्य हुआ. वहीं, बीजिंग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह कोलंबो को अपने कब्जे में रखने का इरादा रखता है (Beijing makes move to keep Colombo in its hold).
श्रीलंका के वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ़ श्रीलंका की सरकार को यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि वह एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ़ चाइना (चाइना एक्ज़िम बैंक) के साथ ऋण उपचार के प्रमुख सिद्धांतों और सांकेतिक शर्तों पर एक समझौते पर पहुंच गई है.'
बयान में कहा गया है कि 'सैद्धांतिक रूप से यह समझौता लगभग 4.2 बिलियन डॉलर के बकाया ऋण को कवर करता है. यह श्रीलंका की दीर्घकालिक ऋण स्थिरता को बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और त्वरित आर्थिक सुधार का मार्ग प्रशस्त करेगा.'
कई वर्षों के कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, अदूरदर्शी नीतियों और कुल मिलाकर सुशासन की कमी के बाद, श्रीलंका ने पिछले साल अप्रैल में घोषणा की कि वह अपने कुल 83 बिलियन डॉलर के विदेशी ऋण को चुकाने में विफल रहा है.
तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे द्वारा 2019 के चुनावों से पहले देश के इतिहास में कुछ सबसे बड़ी कर कटौती पर जोर देने से स्थिति और भी खराब हो गई. कोविड-19 महामारी ने मुसीबतें और बढ़ा दीं. राजमार्गों, एक हवाई अड्डे और एक बंदरगाह जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए चीन से उधार लेना, जो अपेक्षित व्यावसायिक अवसरों को आकर्षित नहीं कर पाया, एक अन्य कारक था.
देश की अर्थव्यवस्था संकट में फंस गई, जिससे भोजन, ईंधन और अन्य आवश्यकताओं की भारी कमी हो गई. इससे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया, जिसके परिणामस्वरूप जुलाई 2022 में राजपक्षे को सत्ता से बाहर होना पड़ा.
श्रीलंका ने बेलआउट पैकेज के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से संपर्क किया. पिछले साल सितंबर में द्वीप राष्ट्र ने 2.9 बिलियन डॉलर के आईएमएफ बेलआउट पैकेज के लिए अर्हता प्राप्त की थी. इस पैकेज की 330 मिलियन डॉलर की पहली किस्त इस साल मार्च में आई थी.
हालांकि, आईएमएफ ने एक शर्त रखी कि ऋण कोलंबो द्वारा अपने अन्य लेनदारों से ऋण स्थिरता के आश्वासन पर आधारित होगा. इसका मतलब यह था कि ऋण चुकाने की अवधि बढ़ाने और ऋण ब्याज दरों में कमी के लिए ऋणदाता देशों के साथ बातचीत की जानी चाहिए.