चंडीगढ़: किसान नेता शिवकुमार कक्का (Farmer leader Shivkumar Kakka) ने कहा कि जब मोदी जी लैंड बिल लेकर आये थे तब हमने 80 किसान संगठन जोड़कर एक महासंगठन बनाया था. लेकिन जब कृषि कानून आये तब हमने संयुक्त किसान मोर्चा बनाया. ये तय हुआ कि इसे राजनीतिक नहीं बनाया जाएगा. लेकिन कुछ लोग राजनीति में गए और दोबारा वापस आ रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा गैर राजनीतिक अभी भी है. कुछ लोगों ने इसे अपवित्र किया और हमारे साथ विश्वासघात किया. असली एसकेएम अभी भी गैर राजनीतिक है. इसमें कोई राजीनीतिक व्यक्ति नहीं है. हमने ऐसे राजनीति करने वाले लोगों को एसकेएम से बाहर कर दिया.
राजनीतिक लोग मोर्चा से बाहर- एसकेएम ने खुलासा किया कि कृषि कानून वापस लेने से पहले एसकेएम में शामिल करीब 20 किसान नेताओं ने सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए इन लोगों ने सरकार को अपने सुझाव दिए थे. यह सब बिना संयुक्त किसान मोर्चा की सहमति के हुआ और ये लोग सरकार के साथ लगातार संपर्क में थे. किसान नेता डालेवाल ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा में गैर राजनीतिक संगठन शामिल हैं. जो राजनीति में गए उन्हें वापस नहीं लिया जाएगा.
बिना सहमति लिखी गई सरकार को चिट्ठी- जब बार-बार हमारे वरिष्ठ नेताओं ने कॉर्डिनेशन कमेटी में सरकार को चिट्ठी लिखने का मुद्दा उठाया तो चिट्ठी लिखने की पुष्टि करते हुए योगेंद्र यादव ने 30 नवंबर को कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में बताया कि 13 सितंबर को किसान नेता बलबीर राजेवाल के फ्लैट पर एक मीटिंग बुलाई गई थी. इस मीटिंग में 21 व्यक्तियों को शामिल किया गया था और अलग-अलग स्तर पर केंद्र सरकार के साथ जारी बातचीत के बारे में 21 व्यक्तियों को अवगत कराया गया. उन्होंने यह भी बताया कि 13 सितम्बर को सरकार को चिट्ठी भेजी गई, उनके अनुसार उन्होंने चिट्ठी में कुछ आंशिक बदलाव किए थे लेकिन जब उन्होंने वे बदलाव करके चिट्ठी बलवीर सिंह राजेवाल को भेजी तो बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा कि चिट्ठी तो अब सरकार के पास भेजी जा चुकी है.
'कुछ नेताओं ने किया विश्वासघात'- जब 30 नवंबर को योगेंद्र यादव ने वो चिट्ठी दिखाई तो हमारे कुछ साथियों ने सवाल उठाया कि ये बातें आपने पूरे SKM के सामने 13 सितम्बर को ही क्यों नहीं बताई? इस बात का योगेंद्र यादव कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए. 13 सितम्बर की बैठक में बुलाये गए 21 नेताओं को छांटने का कार्य एक सोची-समझी रणनीति के तहत डॉक्टर दर्शनपाल द्वारा किया गया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन तमाम नेताओं ने ऊपर किये गए कार्यों को करने से पहले SKM की बैठक में कोई मंजूरी नहीं ली और SKM व देश के किसानों को अंधेरे में रखकर आंदोलन को समाप्त करने की साजिश रची, जो देश के किसानों के साथ बड़ा विश्वासघात था.
आंदोलन 11 दिसंबर को स्थगित होने के बाद कुछ किसान नेताओं ने चुनाव लड़ा. जिसमें जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया. उनके चुनाव लड़ने के फैसले से SKM की साख पर एक बहुत गहरा धब्बा लगा. पंजाब में चुनाव लड़ने वाले किसान नेताओं में से 6 को बिना SKM की सर्वसम्मति के 3 जुलाई की SKM की बैठक में वापस ले लिया गया जिससे आम किसानों में काफी नाराजगी है. इन सभी मुद्दों को अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर मजबूती से उठाने का प्रयास किया लेकिन हमारी बातों को नजरअंदाज किया गया. इन दोनों मुद्दों पर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के 35 से अधिक संगठनों की बैठक हरियाणा के रतिया में 4 जून को और बठिंडा में 25 जून को आयोजित की गई जिसमे कई फैसले लिये गये.
- SKM की आगामी बैठक में चिट्ठी लिखने के आरोपियों को न बुलाया जाए और चिट्ठी लिखने के मुद्दे पर चर्चा की जाए. यदि मीटिंग में उन्हें बुलाया भी जाता है तो विस्तृत चर्चा के बाद जिन लोगों पर चिट्ठी लिखने का दोष साबित हो जाये, उन्हें फिर फैसला लेते समय वोट डालने का अधिकार न दिया जाए.
- चुनावी राजनीति में भाग लेने वाले नेताओं को आगामी बैठक में न बुलाया जाए.
- आगामी बैठक में लखीमपुर खीरी वाले प्रकरण पर कोई बड़ा फैसला लिया जाए.