उत्तरकाशी (उत्तराखंड): उत्तराखंड के उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल में फंसे 40 मजदूरों का रेस्क्यू ऑपरेशन पांचवें दिन भी जारी है. बाहर निकलने का सिलसिला पांचवें दिन भी जारी है. टनल में फंसे मजदूरों को 100 घंटे से अधिक समय बीत चुका है. उत्तराखंड समेत देशभर की तमाम एजेंसियां टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी हुई है. अब सबकी नजरें अमेरिकन ऑगन मशीन पर टिकी है. ऑगर मशीन से टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हो चुका है. उम्मीद जताई जा रही है कि 17 नवंबर तक सभी मजदूरों का रेस्क्यू कर लिया जाएगा.
ऑगर मशीन की खासियत:रेस्क्यू टीम से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि हमारे पास तमाम तरह के एक्सपर्ट मौजूद हैं. जिसमें भारत तिब्बत सीमा बल (आईटीबीपी) और देशभर के टनल बनाने के महारथी शामिल हैं. हरक्यूलिस विमान से पहुंची अमेरिकन मशीन मजदूरों के ऊपर गिर रहे मलबे के खतरे को भी कम करेगी. ऐसे में मशीन से मजदूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन को काफी गति मिल चुकी है.
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5 मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से काम जारी:युद्ध स्तर पर चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में इस मशीन की अंतिम भूमिका रहेगी. मशीन की शुरुआत करने से पहले बाकायदा तमाम लोगों ने पूजा अर्चना की. नारियल फोड़ कर मशीन को टनल के अंदर फिट किया गया. 7 घंटे की मशक्कत के बाद इस मशीन को विमान से उतर गया था. आप इस मशीन की विशालकायता का इस बात से भी अंदाजा लगा सकते हैं कि इसको असेंबल करने में लगभग 10 घंटे का वक्त लग गया. इस मशीन की खासियत ये है कि जिस पाइप को मजदूरों और अन्य मशीनों द्वारा मलबे के बीच से अंदर दाखिल नहीं किया जा सकता था, ये मशीन वो काम चंद घंटों में पूरा कर सकती है. ये मशीन 5 मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पहाड़ को काटने में सक्षम है. जबकि इस दौरान आसपास के पहाड़ को इससे कोई खतरा नहीं होगा.
राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) के डायरेक्टर अंशु मनीष बताते हैं कि 10 घंटे में लगभग 50 मीटर की खुदाई करके मशीन उन लोगों तक पहुंच जाएगी. हमारा पहला मकसद यही है कि लोगों तक पहुंचाने का रास्ता किसी तरह से बनाया जाए. पहले से ही टनल में खाने पीने का सामान और ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा पहुंचाई जा रही है. अच्छी बात ये है कि अब तक इस तरह की कोई भी खबर अंदर से नहीं आई है जो हमें परेशान करे. अंदर जितने भी व्यक्ति हैं, उन्होंने बहुत हिम्मत रखी हुई है.
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मशीन के लिए बनाया गया ग्रीन कॉरिडोर: एसडीआरएफ के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा का कहना है कि सभी लोगों को बचाने के लिए कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है. हम टनल तक पहुंचने वाली हर एक सामग्री को ग्रीन कॉरिडोर बनाकर पहुंचा रहे हैं. हैवी ऑगर मशीन को टनल तक पहुंचाने के लिए पूरे क्षेत्र को ग्रीन कॉरिडोर में तब्दील किया गया, ताकि किसी भी तरह के वाहन को यहां तक पहुंचने में दिक्कत का सामना ना करना पड़े. लगभग 32 किलोमीटर के इस रूट को हमने 2 घंटे में तय किया.
5 मीटर प्रति घंटा मलबा भेदने की शक्ति. उधर जो विशेषज्ञ उत्तरकाशी पहुंचकर चट्टानों का अध्ययन कर रहे हैं, वे भी वापस लौट गए हैं. विशेषज्ञों ने पाया कि सुरंग के ऊपरी हिस्से में कुछ ऐसी परिस्थितियां पैदा हुईं, जिससे निचले इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं. हालांकि जानकार ये भी मान रहे हैं कि दोबारा से टनल के ऊपरी हिस्से में जांच की जरूरत है. उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक डॉ. शांतनु सरकार ने बताया कि वाडिया इंस्टीट्यूट, आईआईटी रुड़की सीबीआरआई रुड़की और अन्य टीम लगातार उत्तरकाशी में अध्ययन कर रही थी. शुरुआती दौर में कुछ चीजें साफ हुई हैं, जो आगे के लिए काम आएगी.
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अंतिम जरिया होगी हैवी ऑगर मशीन: टनल में फंसे लोगों को बचाने के लिए अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं, वह सभी असफल हुए हैं. यही कारण है कि अब इस हैवी ऑगर मशीन को आखिरी जरिया माना जा रहा है. अब तक जितनी भी मशीन लगी, वे इस तरह का काम करने में सक्षम नहीं थी. पहले दिन से मजदूरों, ड्रिलिंग मशीन और जेसीबी द्वारा मलबा हटाने का कार्य किया जा रहा है. लगभग 5 एजेंसियां कार्य में जुटी हुई है. झारखंड और यूपी की टीम भी टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन में सहयोग कर रही है.