देखिए भारत में सौर ऊर्जा के विकास पर पूर्व IAS और MNRE द्वारा बनाई गई पहली टीम के सदस्य राजीव स्वरूप से खास बातचीत
सवाल-भारत में पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है. भारत में अब तक हम करीब 35 हजार 739 मेगावाट ( 35739MW) सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर पाए हैं. केंद्र सरकार ने 2022 तक 100 गीगावॉट का लक्ष्य रखा है. 2006 से 2020 तक सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का सफर कैसे देखते हैं?
राजीव स्वरूप-सौर ऊर्जा को लेकर देश में काफी चर्चाएं चल रही थीं. उस वक्त गांवों में सोलर लेंटर और सोलर वॉटर हिटिंग सिस्टम तक ही ये सीमित थी. तब तक कई देशों में सौर ऊर्जा पर सिर्फ प्रयोग ही चल रहे थे, भारत भी अपनी संभावनाओं को खोज रहा था. 2008 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ( MNRE) ने इसी के मद्देनजर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई, जिसमें मैं शामिल रहा. जब एमएनआरई ने सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने का फैसला लिया तब देश में सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट 20 रुपये लागत थी और परंपरागत बिजली की दरें दो रुपये प्रति यूनिट थी. सौर ऊर्जा के लिए जरूरी सिलिकन की कीमतें ज्यादा थी और उत्पादन बढ़ाना भी बड़ी चुनौती थी.
फोसल फ्यूअल्स की बढ़ती कीमतों ने भी देश में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विकास की राह तेज की. सौर ऊर्जा की ज्यादा लागत के चलते वैकल्पिक ऊर्जा में पहले देश का फोकस विंड एनर्जी पर था, लेकिन इसकी मात्रा बहुत सीमित थी. 2008 में सोचा गया कि कैसे सौर ऊर्जा की लागत ग्रिड पैरेटी के बराबर लाई जाए और फिर ये लागत उससे भी सस्ती होती चली जाए. इसके लिए भविष्योन्मुखी योजना तैयार हुई. आज लागत बहुत घट गई है और सौर ऊर्जा संसाधनों में तेजी से विकास हुआ है. कई चुनौतियां हैं, मसलन हमारी जरूरत 24 घंटे पावर सप्लाई की है, लेकिन सौर ऊर्जा सिर्फ सूर्य की रोशनी तक ही उपलब्ध है. इसीलिए अभी भी ग्रिड की जरूरत के मुताबिक अभी तक यह ढल नहीं पाई है. लेकिन 2008 में सौर ऊर्जा 18 रुपये प्रति यूनिट थी. हमने बड़ी सब्सिडी देते हुए पांच से दस मेगावाट के सोलर प्लांट्स राजस्थान में स्वीकृत किये थे. आज यही सौर ऊर्जा बिना किसी सब्सिडी के ढाई रुपये प्रति यूनिट से भी कम होती जा रही है. आप खुद सोचिए , हम कहां से कहां तक आ पहुंचे हैं.