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Published : Jan 9, 2021, 6:13 PM IST

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भारत में सौर ऊर्जा के विकास पर पूर्व IAS राजीव स्वरूप से खास बातचीत

सौर ऊर्जा विकास के लिए मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी (MNRE) द्वारा बनाई गई पहली टीम के सदस्य और राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव राजीव स्वरूप से ईटीवी भारत दिल्ली स्टेट हेड विशाल सूर्यकांत की विशेष चर्चा.

rajeev swarup exclusive interview on renewable energy
नवीकरणीय ऊर्जा पर राजीव स्वरूप का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

देखिए भारत में सौर ऊर्जा के विकास पर पूर्व IAS और MNRE द्वारा बनाई गई पहली टीम के सदस्य राजीव स्वरूप से खास बातचीत

सवाल-भारत में पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है. भारत में अब तक हम करीब 35 हजार 739 मेगावाट ( 35739MW) सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर पाए हैं. केंद्र सरकार ने 2022 तक 100 गीगावॉट का लक्ष्य रखा है. 2006 से 2020 तक सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का सफर कैसे देखते हैं?

पूर्व IAS राजीव स्वरूप से खास बातचीत

राजीव स्वरूप-सौर ऊर्जा को लेकर देश में काफी चर्चाएं चल रही थीं. उस वक्त गांवों में सोलर लेंटर और सोलर वॉटर हिटिंग सिस्टम तक ही ये सीमित थी. तब तक कई देशों में सौर ऊर्जा पर सिर्फ प्रयोग ही चल रहे थे, भारत भी अपनी संभावनाओं को खोज रहा था. 2008 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ( MNRE) ने इसी के मद्देनजर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई, जिसमें मैं शामिल रहा. जब एमएनआरई ने सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने का फैसला लिया तब देश में सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट 20 रुपये लागत थी और परंपरागत बिजली की दरें दो रुपये प्रति यूनिट थी. सौर ऊर्जा के लिए जरूरी सिलिकन की कीमतें ज्यादा थी और उत्पादन बढ़ाना भी बड़ी चुनौती थी.

सौर ऊर्जा की संभावनाएं

फोसल फ्यूअल्स की बढ़ती कीमतों ने भी देश में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विकास की राह तेज की. सौर ऊर्जा की ज्यादा लागत के चलते वैकल्पिक ऊर्जा में पहले देश का फोकस विंड एनर्जी पर था, लेकिन इसकी मात्रा बहुत सीमित थी. 2008 में सोचा गया कि कैसे सौर ऊर्जा की लागत ग्रिड पैरेटी के बराबर लाई जाए और फिर ये लागत उससे भी सस्ती होती चली जाए. इसके लिए भविष्योन्मुखी योजना तैयार हुई. आज लागत बहुत घट गई है और सौर ऊर्जा संसाधनों में तेजी से विकास हुआ है. कई चुनौतियां हैं, मसलन हमारी जरूरत 24 घंटे पावर सप्लाई की है, लेकिन सौर ऊर्जा सिर्फ सूर्य की रोशनी तक ही उपलब्ध है. इसीलिए अभी भी ग्रिड की जरूरत के मुताबिक अभी तक यह ढल नहीं पाई है. लेकिन 2008 में सौर ऊर्जा 18 रुपये प्रति यूनिट थी. हमने बड़ी सब्सिडी देते हुए पांच से दस मेगावाट के सोलर प्लांट्स राजस्थान में स्वीकृत किये थे. आज यही सौर ऊर्जा बिना किसी सब्सिडी के ढाई रुपये प्रति यूनिट से भी कम होती जा रही है. आप खुद सोचिए , हम कहां से कहां तक आ पहुंचे हैं.

सौर ऊर्जा से होने वाले फायदे

सवाल - क्या यह वैकल्पिक ऊर्जा की बजाए मुख्य ऊर्जा स्त्रोत भी कभी बनाया जा सकता है? इसके लिए क्या किए जाने की ज़रूरत है?

राजीव स्वरूप- देखिए, यहां तक तो हम आ पहुंचे हैं कि सौर ऊर्जा का उत्पादन व्यापक पैमाने पर हो. हम दुनिया में सबसे कम लागत में सौर ऊर्जा उत्पादन करने वाले देश हैं. यह एक बड़ी उपलब्धि है. भारत में पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा की संभावनाएं हैं. सवाल यह है कि क्या हम सौर ऊर्जा को स्टोर कर ट्रांसफॉर्म कर सकते हैं ? सौर ऊर्जा में तीन चुनौतियां रही हैं. इसकी लागत कम करने की चुनौती को तो हम अवसर में बदल चुके हैं.

कम लागत में ज्यादा उत्पादन की क्षमता हम विकसित कर चुके हैं. दूसरी चुनौती स्टोरेज मीडिया और तीसरी चुनौती ट्रांसमिशन की है, जिसे लंबी दूरी में भी ट्रांसमिशन लॉस कम से कम हो. इसे लेकर भारत में ही नहीं, ग्लोबल थिंकिंग भी चल रही है. नॉर्थ अफ्रीका में सोलर रेडिएशन सर्वाधिक है, वहां से यूरोप तक सोलर एनर्जी ले जाने की संभावनाएं खोजी जा रही हैं.

सौर ऊर्जा की राह में चुनौतियां

सवाल- यह बात सही है कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उत्पादन बढ़ा है लेकिन सोलर प्लांट उपकरणों के मामले में हम पूरी तरह चीन या अन्य देशों पर निर्भर हैं. सवाल यह कि हमारी रफ्तार, अन्य देशों की नीतियों पर ही निर्भर है?

राजीव स्वरूप- दरअसल, सिलिकन इनगॉट्स बहुत महंगे होते हैं. सोलर सेल इत्यादि लागत को और बढ़ा देते हैं. हमें प्रोडक्शन साइकिल में और दक्षता हासिल करने की जरूरत है. हालांकि एक दशक में हमारी लागत एक चौथाई कम हो गई है. बाकी देशों से आयातित उपकरण और संसाधनों ने लागत तो कम की है लेकिन सौर ऊर्जा उत्पादन में ज्यादा से ज्यादा भारतीयकरण करना जरूरी है. अन्य देशों पर निर्भरता हमें रफ्तार तो दे सकती है लेकिन इसे बरकरार रखने और नए विकल्प खोजने के लिए इसका स्वदेशीकरण जरूरी है.

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