जयपुर :प्रदेश भाजपा में फिर गुटबाजी चरम पर है, खास बात यह है कि पिछले 15 वर्षों से राजस्थान भाजपा में गुटबाजी और खींचतान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. पूर्व की घटनाओं का जिक्र करें तो प्रदेश भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ खींचतान सुर्खियों में रही.
साल 2009 में प्रदेश में सत्ता में कांग्रेस काबिज हुई थी. इसके बाद भाजपा में यह चर्चा शुरू हुई कि आखिर नेता प्रतिपक्ष कौन बनेगा. पार्टी की ओर से विधानसभा चुनाव में हुई हार के चलते वरिष्ठ पदों पर तैनात नेताओं से इस्तीफे मांग लिए गए थे. फिर चाहे प्रदेश संगठन महामंत्री हो या अन्य पद पर आसीन नेता, लेकिन इस बीच यह तय नहीं हो पा रहा था कि नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए.
लेकिन, वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों का खेमा वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष बनाए रखना चाहते थे. इसको लेकर राजे समर्थकों ने पार्टी आलाकमान पर दबाव भी बनाया. आलम यह रहा कि दिल्ली तक वसुंधरा समर्थकों की परेड तक करवा दी गई.
विपक्ष के उपनेता के रूप में घनश्याम तिवाड़ी ने ही सदन के अंदर पार्टी की भागदौड़ संभाले रखी. तब प्रदेश भाजपा की गुटबाजी वसुंधरा राजे समर्थकों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही और यह पूरा घटनाक्रम मीडिया में सुर्खियों में भी बना रहा.
मेवाड़ यात्रा के विरोध में इस्तीफे की दी थी धमकी
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया से भी कुछ साल पहले तक वसुंधरा राजे के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे. साल 2012 में जब गुलाबचंद कटारिया की ओर से मेवाड़ क्षेत्र में राजनीतिक यात्रा निकाले जाने की चर्चा हुई.
पार्टी के नेता चाहते थे यात्रा निकले, लेकिन वसुंधरा सहमत नहीं थी, उन्होंने अपनी असहमति कोर कमेटी की बैठक में भी जता दी. साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से इस्तीफा तक की चेतावनी दे डाली. हालांकि, वसुंधरा राजे की नाराजगी को देखते हुए गुलाबचंद कटारिया अपनी यात्रा नहीं निकाल पाए. तब भी पार्टी के भीतर की ये खेमेबाजी जग जाहिर हुई थी.
पसंद को तरजीह दिलवाने के लिए भी हुई थी खींचतान
साल 2018 अप्रैल महीने में प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद इस पद पर कौन बैठेगा, इसको लेकर भी प्रदेश भाजपा में काफी कशमकश हुई. सूत्र बताते हैं कि पार्टी आलाकमान इस पद पर जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को बैठाना चाहते थे, लेकिन राजे और उनके समर्थक राजी नहीं थे.
हालांकि, वसुंधरा राजे ने कभी खुलकर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के दौरान राजे समर्थक नेताओं की दिल्ली में कई बार परेड हुई. करीब ढाई महीने तक गतिरोध चलता रहा और फिर बीच का रास्ता निकालते हुए मदन लाल सैनी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. मदन लाल सैनी के नाम पर वसुंधरा राजे की भी सहमति थी. तब भी इस पूरे घटनाक्रम को लेकर प्रदेश भाजपा की गुटबाजी जग जाहिर हो गई और पार्टी की फजीहत भी हुई.