रायपुर : संगीत के क्षेत्र में अनुकरणीय काम करने के लिए मदन सिंह (Madan Singh Chauhan Gets Padma Shri Award) चौहान को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. चौहान ने न सिर्फ तबले की थाप से बल्कि अपने सुरों से भी इस क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है. बात चाहे फिर सुगम संगीत (Folk Music) हो या भक्ति रस के गाने या फिर सूफियाना अंदाज में उनकी खुद की प्रस्तुति की, पूरे प्रदेश में श्रोताओं ने इन्हें भरपूर सराहा है. यही वजह है कि जब पद्म पुरस्कारों की बात हुई तो इनका नाम आने के बाद कला क्षेत्र से जुड़े लोगों ने खुशी जाहिर की. ईटीवी भारत ने चौहान से खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने संगीत से जुड़े विभिन्न पहलुओं के विषय में अपनी बात बेबाकी से रखी.
सवालःसंगीत से आपका रिश्ता कैसे जुड़ा, अब तक की अपनी उपलब्धियों और पद्मश्री मिलने के बाद अपने एहसास को किन शब्दों में व्यक्त करेंगे?
जवाबःबहुत खुशी हो रही है. बात संगीत से जुड़ने की हो तो यह बचपन से ही कुदरती देन है. शुरुआत में घर में रखे डिब्बों को बजाकर संगीत के क्षेत्र में मैंने कदम रखा. इसके बाद कुछ संगीत के जानकारों के साथ संगत भी की, जिसे उन्होंने काफी सराहा और मुझे संगीत की शिक्षा लेने की सलाह दी. जिसके बाद मैंने कई गुरुओं से तबले की शिक्षा ली.
इन गुरुओं में एक काले खां उस्ताद भी शामिल हैं. उनसे मुझे काफी कुछ सीखने का अवसर मिला. इसके बाद सुगम संगीत और गजल के कई नामी गायकों के साथ में मुझे संगत करने का अवसर मिला. सौभाग्य यह भी रहा कि प्रसिद्ध कव्वाल शंकर शंभू जी के साथ आकाशवाणी में संगत करने का भी मौका मिला. कुछ गायकों के साथ तबले में संगत के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मैं भी गाना गा सकता हूं और उसके बाद मैंने खुद गायन शुरू किया. इस कार्य में निर्मला इंगले जी ने मुझे अलग पहचान दिलवाई, फिर मैंने गायन क्षेत्र में भी काम करना शुरू किया.
सवालःपद्म अवार्ड के विषय में पहले भी चर्चाएं होती रही हैं और यह बातें भी सामने आती रहीं कि आप जैसे अनुभवी लोगों को भी यह सम्मान मिलना चाहिए. क्या आपको इससे पहले कभी ऐसा लगा और दिल में किसी तरह की खलल इस बात को लेकर रही?
जवाबःहां मन में तो यह बातें आती थी, लेकिन फिर भी अब ठीक है. देर से ही सही लोगों को यह लगा कि मैं इस सम्मान के काबिल हूं. घर की वस्तुओं से गाना-बजाना शुरू किया. आर्थिक स्थिति परिवार की अच्छी नहीं थी. जीवन यापन के लिए गुरुद्वारे में तबला बजाया, फिर मोटर पार्ट्स का काम भी किया. उसके बाद छोटे-छोटे वाद्य यंत्रों से संगीत सीखना शुरू किया. हम इतने संपन्न नहीं थे कि हर वाद्य यंत्रों को खरीद सकते.
सवालःआपकी गायकी में सहजता दिखती है, एक गायक के अंदर क्या ऐसा होना चाहिए?
जवाबःगायक अगर आध्यात्मिक प्रवृत्ति का और साधक हो तो उसे सुनने में मजा आता है. परिस्थितियां भी हमें सबक देने के लिए आती हैं, यह बात अब समझ में आ रही हैं.