बाराबंकी : उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में प्रशासन द्वारा एक मस्जिद ढहाए जाने के मामले को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. गुरुवार को सपा के एक प्रतिनिधिमण्डल ने जिलाधिकारी से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा, जबकि जिला प्रशासन ने घटनास्थल पर जा रहे कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल को रास्ते में ही रोक दिया.
कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने बताया कि उनकी अगुवाई में पार्टी का एक प्रतिनिधिमडल रामसनेहीघाट जाकर मौके का मुआयना करना और स्थानीय लोगों से बातचीत कर हालात की जानकारी लेना चाहता था, मगर रास्ते में ही पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें रोक दिया. बाद में सभी नेताओं को वापस लौटा दिया गया.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की मांग है कि असंवैधानिक तरीके से मस्जिद गिरा कर भावनाओं को आहत करने वाले अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कर मामले की उच्च न्यायालय के किसी सेवारत न्यायाधीश से जांच कराई जाए और मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया जाए.
प्रतिनिधिमंडल में पूर्व सांसद पीएल पुनिया, पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और पूर्व विधायक राजलक्ष्मी वर्मा भी शामिल थे.
इससे पहले, समाजवादी पार्टी (सपा) ने मस्जिद को ढहाए जाने की कड़ी निंदा करते हुए संबंधित उपजिलाधिकारी तथा अन्य सहयोगी अफसरों को तत्काल निलंबित करने, मुकदमा दर्ज करने और पूरे प्रकरण की उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से जांच कराने की मांग की.
सपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को जिलाधिकारी आदर्श सिंह से मुलाकात कर उन्हें राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा.
ज्ञापन में कहा गया है कि उप जिलाधिकारी ने वक्फ अधिनियम का उल्लंघन करते हुए खुद अपने ही यहां वाद दायर कर ध्वस्तीकरण का फैसला सुना दिया, जबकि वक्फ से संबंधित सभी मामलों, विवादों और शिकायतों की सुनवाई के लिए वक्फ अधिकरण बना हुआ है.
हाईकोर्ट ने 31 मई तक मस्जिद गिराने पर लगाई थी रोक
ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कोविड-19 महामारी और कोरोना कर्फ्यू को देखते हुए किसी भी तरह के ध्वस्तीकरण कार्य पर आगामी 31 मई तक रोक लगा दी थी, लेकिन न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हुए स्थानीय प्रशासन ने बुलडोजर चलाकर मस्जिद को शहीद कर दिया और वहां रखे पवित्र ग्रंथों का अपमान किया.
गौरतलब है कि रामसनेहीघाट तहसील के सुमेरगंज कस्बे में उप जिलाधिकारी आवास के ठीक सामने स्थित एक पुरानी मस्जिद को स्थानीय प्रशासन ने गत 17 मई की शाम को कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के बीच ध्वस्त करा दिया था.
जिलाधिकारी आदर्श सिंह ने मस्जिद को 'अवैध आवासीय परिसर' करार देते हुए कहा था कि इस मामले में संबंधित पक्षकारों को 15 मार्च को नोटिस भेजकर स्वामित्व के संबंध में सुनवाई का मौका दिया गया था, लेकिन परिसर में रह रहे लोग नोटिस मिलने के बाद फरार हो गए, जिसके बाद तहसील प्रशासन ने 18 मार्च को परिसर पर कब्जा हासिल कर लिया.
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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जिला प्रशासन द्वारा 100 साल पुरानी मस्जिद को जमींदोज करने की कड़ी निंदा की है. बोर्ड ने कहा कि इस मामले के दोषी अधिकारियों को निलंबित कर मामले की उच्च न्यायालय के किसी सेवारत न्यायाधीश से जांच कराई जाए और मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया कर उसे मुसलमानों के हवाले किया जाए.
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी इसकी कड़ी निंदा करते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की है. बोर्ड ने यह भी कहा कि वह उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद मस्जिद ढहाए जाने के असंवैधानिक कृत्य के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएगा.