जलपाईगुड़ी : ओडिशा के किसान दाना मांझी 2016 में उस अमानवीय पीड़ा के लिए सुर्खियों में आए थे, जब उन्हें दाह संस्कार के लिए 10 किलोमीटर तक अपनी पत्नी के शव को कंधे पर उठाकर ले जाना पड़ा था. इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इसके तुरंत बाद प्रशासन ने घटना को गंभीरता से लिया और उनकी मदद के लिए दौड़ पड़ा. बाद में माझी को उचित मुआवजा दिया गया और उन्हें गरीबी दूर करने में मदद करने के लिए मुख्यधारा में लाया गया.
140 करोड़ की आबादी वाले देश में दाना मझी कभी न कभी सामने आ ही जाते हैं. बीच-बीच में भी इस तरह की घटनाएं होती रहीं, जिसमें प्रशासन मूक दर्शक बना रहा. 2023 में अमानवीयता की एक ऐसी ही तस्वीर ने फिर कई लोगों का ध्यान खींचा और सभी को एक बार फिर दाना मांझी की याद दिला दी. पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में एक बेटा और एक पति दाना मांझी की तरह एक महिला के शव को कंधे पर ढो रहे थे, क्योंकि वे एंबुलेंस का 3000 रुपये किराया देने में असमर्थ थे (Son carries mothers body on shoulder).
माल अनुमंडल के क्रांति प्रखंड निवासी दिहाड़ी मजदूर रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां लक्ष्मीरानी दीवान को सांस लेने में दिक्कत होने पर कल रात जलपाईगुड़ी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती कराया. रात में लक्ष्मीरानी दीवान की मौत हो गई. रामप्रसाद दीवान जब शव वाहन किराए पर लेने गए तो उनसे 3,000 रुपये मांगे गए.
इतनी रकम न होने के कारण रामप्रसाद दीवान ने मिन्नतें कीं, लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. उन्हें अपने पिता के साथ अपनी मां के पार्थिव शरीर को अपने कंधों पर ढोना पड़ा. ग्रीन जलपाईगुड़ी नामक स्वयंसेवी संस्था के सचिव अंकुर दास ने दूर से ही इस पूरे प्रकरण को देखा. तुरंत, उन्होंने संगठन के शव वाहन को बुलाया और उस वाहन में शव को ले गए. इस प्रकरण ने देश नहीं तो एक बार फिर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी.