कोलकाता : कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने प्रत्यक्ष संदर्भ दिए बिना कहा है कि बड़े पैमाने पर समाज को विभिन्न यौन ओरिएंटेशन वाले लोगों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए. हाईकोर्ट की खंडपीठ न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी ने अलग-अलग यौन ओरिएंटेशन वाली महिला और उसके माता-पिता से संबंधित 'बंदी प्रत्यक्षीकरण' मामले में कहा, 'मौजूदा सामाजिक ढांचे में कुछ चीजें अलग दिख सकती हैं और अगर यह अंतर किसी भी व्यक्ति में स्पष्ट है, तो समाज को संवेदनशील होना चाहिए और उन परिवर्तनों के अनुकूल होना चाहिए.'
संबंधित महिला, एक कॉलेज की छात्रा थी, जो समलैंगिक संबंधों के प्रति झुकाव रखती थी. उसके रिश्तेदार उसका मजाक बनाने लगे. इसके बाद उसके माता-पिता को पड़ोसियों और रिश्तेदारों के सवालों का सामना करना पड़ा. इन सवालों और स्पष्ट सामाजिक कलंक को सहन करने में असमर्थ, माता-पिता ने उसकी शादी की व्यवस्था की.
इस भावना के साथ कि शादी उसके साथ-साथ उसके होने वाले पति के लिए एक और आपदा होगी, महिला ने घर छोड़ दिया और दक्षिण कोलकाता में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित घर में रहने लगी. माता-पिता पुलिस के साथ उस घर पहुंचे.