बेंगलुरु : देश में कोविड महामारी के दौरान छोटे कारोबारियों पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा. उनमें से करीब 40 प्रतिशत इकाइयों को वित्तीय संस्थानों समेत अन्य इकाइयों ने कर्ज देने से मना किया. इसका कारण उनके पास कर्ज को लेकर गिरवी के लिये पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी. साथ ही ऋण लेने-लौटाने का इतिहास अनुकूल नहीं था. छोटे कारोबारियों पर कोविड के असर को लेकर हुए एक अध्ययन में यह पाया गया है.
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यह अध्ययन गैर-सरकारी संगठन 'ग्लोबल अलायंस फॉर मास एंटरप्रेन्योरशिप (जीएएमई)' ने किया है. इसमें पाया कि 21 फीसदी छोटे कारोबारों के पास आवदेन के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं. 'पुनरुद्धार की राह: भारत में छोटे व्यवसायों पर कोविड के प्रभाव की पड़ताल' शीर्षक वाली रिपोर्ट में देशभर में यह अध्ययन किया गया है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र ने महामारी की रोकथाम के लिये लगे 'लॉकडाउन' को किस प्रकार झेला. यह अध्ययन 2020 और 2021 में 1955 छोटे-छोटे कारोबार करने वाली इकाइयों पर किया गया.
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संगठन ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि 50 फीसदी से अधिक उद्यम के पास महामारी के प्रभाव से उबरने के लिए कोई रणनीति या प्रणाली नहीं थी. इसके संस्थापक रवि वेंकटेश ने कहा कि बैंक प्रबंधकों, क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों और बैंक प्रतिनिधियों को बैंक तथा सरकारी योजनाओं के बारे में पर्याप्त ज्ञान बढ़ाने की आवश्यकता है. अध्ययन में शामिल इकाइयों में से सिर्फ 31 प्रतिशत को ही 'आत्मनिर्भर भारत' पहल के तहत शुरू की गई योजनाओं की जानकारी थी.