पटना:आज के जमाने में रात मेंनींद नहीं आना एक आम बीमारी हो गई है. अगर आपको भरपूर नींद नहीं आती है तो घबराने की जरूरत नहीं है. अच्छी नींद का तात्पर्य है कि एक बार आदमी सो जाता है तो सीधे कम से कम 6 घंटे बाद नींद टूटे और बीच-बीच में नींद ना टूटे. पटना एम्स में इसका इलाज हो रहा है.स्लीपिंग डिसऑर्डर का (Sleeping Disorder Treatment In Patna AIIMS) पता लगाने और थेरेपी देकर ठीक करने के उद्देश्य से पटना एम्स में बीते वर्षों में स्लीपिंग लैब तैयार किया गया जिसमें दो स्लीपिंग बेड है. यानी कि एक बार में दो आदमी के स्लीप डिसऑर्डर का पता लगाया जा सकता है. और थेरेपी के माध्यम से उनके नींद को ठीक किया जा सकता है. पटना एम्स में स्लीप लैब शुरू हुए 5 वर्ष हो गए हैं लेकिन कोरोना के कारण बीते 2 वर्ष यह बंद रहा और एक बार फिर से यह लैब सुचारू हो गया है.
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स्लीपिंग डिसऑर्डर का पटना एम्स में इलाज :पटना एम्स मेंस्लीपिंग डिसऑर्डर से परेशान लोगों (People Suffering From Sleeping Disorder) की संख्या यहां बढ़ गई है. स्लिप थेरेपी लेने के लिए लोगों की लंबी वेटिंग लिस्ट है. कई माननीय भी इस स्लीप लैब में जाकर अपने स्लीप डिसऑर्डर को ठीक किए हैं और उनमें बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री रेणू देवी का भी नाम शामिल है. इसके अलावा कई पूर्व एमएलए और एमपी भी स्लीप डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए एम्स के स्लीपिंग लैब में स्लीप एपनिया थेरेपी ले चुके हैं. डॉक्टर दीपेंद्र कुमार राय ने बताया कि पटना एम्स में अब तक 18 सौ से अधिक लोगों ने स्लीप लैब में आकर स्लीप थेरेपी लिया है, महीने में 40 से 50 थेरेपी होती है.
कई नामी गरामी लोग ले चुके हैं स्लीप एपनिया थेरेपी :पटना एम्स के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के अंतर्गत स्लीप लैब आता है. पलमोनरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ दीपेंद्र कुमार राय ने जानकारी दी कि एम्स के स्लीप लैब में level-1 के दो मशीनें हैं जिसमें एक मशीन की कीमत 24 लाख रुपये आती है. उन्होंने बताया कि यह मशीन पोर्टेबल नहीं है. यह एक बड़ी मशीन है जिसमें बेड रहता है और कई तारे लगी हुई रहती हैं. स्लीपिंग डिसऑर्डर से परेशान मरीज अब इस बेड पर सोता है तो अलग-अलग तारे शरीर के अलग-अलग हिस्से पर लगाई जाती हैं.
स्लीपिंग डिसऑर्डर से परेशान मरीज :उन्होंने बताया किEEG (इलेक्ट्रो इनकैप्लोग्राम) तार ब्रेन पर लगाए जाते हैं जो उसके स्लिप के कंडीशन को चेक करते हैं. इससे यह पता चलता है कि व्यक्ति कब गहरी निंद्रा में है और कब हल्की निंद्रा में है, व्यक्ति कब कोई बुरा सपना देख रहा है. खर्राटा आ रहा है और मरीज जोर से सांस ले रहा है तो सी पैप मशीन लगाया जाता है. नाक का एयर फ्लो मेजर करने के लिए भी पाइप लगाया जाता है. इसके अलावा मरीज के ठुड्डी पर भी EMG (इलेक्ट्रो मायोग्राम) तार लगाया जाता है जो सोने के समय उसके मसल्स मूवमेंट्स का पता लगाते हैं. इसके अलावा मरीज के पेट और सीने पर दो बेल्ट लगाए जाते हैं जो यह पता करते हैं कि 1 घंटे के अंदर आदमी का सांस कितनी बार रुक रहा है और यदि 5 बार से अधिक सांस रुक रहा है तो उसे स्लीप एपनिया है. इसके लिए स्लीप एपनिया थेरेपी देनी होती है. ऑक्सीजन सैचुरेशन पता करने के लिए हाथ की एक उंगली में पल्स ऑक्सीमीटर लगाया जाता है. आंख पर EOG (इलेक्ट्रो ऑक्लोग्राम) तार लगाया जाता है.
'स्लीप डिसऑर्डर कई प्रकार के होते हैं. दिन के समय जो शारीरिक समस्याएं व्यक्ति को महसूस हो रही हैं, उसका कारण क्या है, यह स्लीप लैब में जब मरीज रात में सोता है तो उसके स्लीप कंडीशन को देखकर पता चल जाता है. मोटापे से परेशान लोगों में खर्राटा लेने और रात में नींद बार-बार टूटने की समस्या अधिक होती है. स्लीपिंग लैब में रात भर टेक्नीशियन की टीम रहती है जो मरीज के स्लिप कंडीशन को मॉनिटर करते रहती है. यहां थेरेपी देने के बाद सभी को एक्सरसाइज और योगा करने की सलाह दी जाती है. यह अच्छी नींद में मददगार साबित होता है. भारत में 100 में 7 लोग स्लीप एपनिया की बीमारी के शिकार हैं. लेकिन लोग स्लीप लैब में थेरेपी नहीं लेते, क्योंकि उनमें जागरूकता की कमी है. स्लीप लैब में थेरेपी लेने से हार्ट अटैक के चांसेज कम होते हैं.'- डॉक्टर दीपेंद्र कुमार राय, पलमोनरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष
पटना एम्स में स्लीप डिसऑर्डर का होता है इलाज :पटना एम्स में अब तक लगभग दो हजार के करीब लोगों ने स्लिप थेरेपी लिया है. महीने में 40 से 50 लोगों की स्लिप थेरेपी होती है. एम्स में बीते महीने स्लीप थेरेपी ले चुकी नूतन बताती हैं कि स्लीप एपनिया थेरेपी लेने से उन्हें काफी फायदा हुआ. गर्दन के पास फैट अधिक जमा होने की वजह से स्लीप डिसऑर्डर था. जिसके बाद स्लिप थेरेपी उन्होंने ली और गर्दन का फैट कम करने के लिए एक्सरसाइज और योगा शुरू की. खानपान को मेंटेन की और अब रात में उन्हें अच्छी नींद आती है. एम्स के स्लीप लैब में थेरेपी ले चुके विजय ने बताया कि उन्हें खर्राटे की समस्या थी, बार-बार नींद टूट जाती थी लेकिन स्लिप एपनिया थेरेपी लेने के बाद कराटे की समस्या काफी कम हो गई है. कभी-कभार ही अब रात में नींद टूटती है.
स्लीप थेरेपी लेने से लोगों को मिलता है आराम :पटना एम्स के डीन डॉ उमेश भदानी ने बताया कि स्लीप लैब में स्लीप थेरेपी लेने से व्यक्ति का ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल कंट्रोल होता है. थेरेपी के बाद लाइफ स्टाइल और खानपान को सुधारना महत्वपूर्ण है. स्लीप डिसऑर्डर का जो शिकार है उसे सामान्य आदमी की तुलना में मधुमेह होने, हाई ब्लड प्रेशर का शिकार होने और हार्ट अटैक आने के चांसेस कई गुना अधिक बढ़ जाते हैं. उन्होंने बताया कि स्लीप लैब में थेरेपी के साथ-साथ डायग्नोस्टिक भी होती है कि दिन में जो मरीज को थकान, उबासी, बार-बार झपकी आना जैसे समस्याएं आती है तो उसका कारण क्या है. रात भर टीम बैठकर स्लीप लैब में एडमिट मरीज के सोने की व्यवस्था को स्टडी करती है और फिर इसके अनुसार चिकित्सक ट्रीटमेंट भी करते हैं और एक्सरसाइज और खान-पान भी प्रिस्क्राइब करते हैं.
ओपीडी के फीस में स्लीप लैब में थेरेपी दी जाती है : डॉ उमेश भदानी ने जानकारी देते हुए कहा कि नॉर्मल ओपीडी के फीस में स्लीप लैब में थेरेपी दी जाती है. इसके अलावा कोई गंभीर पेशेंट है, किसी घटना से विचलित है और नींद पूरी नहीं कर पा रहा है, ऐसे पेशेंट को फ्री ऑफ कॉस्ट स्लीप थेरेपी ली जाती है. यहां लैब में व्यक्ति बेहतर नींद ले सके इसके लिए हर जरूरी उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. आगे कहा कि मैं लोगों से अपील करता हूं कि अगर स्लीप डिसऑर्डर के शिकार हैं तो यह एक गंभीर बीमारी है. इससे शरीर में कई प्रकार की स्थाई बीमारियां घर कर सकती हैं. ऐसे में स्लीप डिसऑर्डर के लोग पटना एम्स में आकर स्लिप थेरेपी लें और डॉक्टर की बातों का अनुसरण करें.