मुंबई : मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) की झुग्गी पुनर्वास नीतियों का जिक्र कर रही थी, जो उन झुग्गी बस्तियों को गिराने और खाली कराने के खिलाफ वैधानिक सुरक्षा प्रदान करती हैं जो एक जनवरी 2000 से पहले बनाई गई थी और जिनकी ऊंचाई 14 फुट से अधिक नहीं है.
पीठ ने कहा कि नौ जून को उपनगरीय मालवनी में एक आवासीय इमारत का गिरना 'शुद्ध लालच' का परिणाम था और सुझाव दिया कि राज्य के अधिकारियों को गरीबों के लिए आवास के 'सिंगापुर मॉडल' ('Singapore Model') से प्रेरणा लेनी चाहिए. न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने कहा कि यह सिर्फ मुंबई में है कि कोई सरकारी जमीन पर अतिक्रमण (encroachment on land) करता है और बदले में उसे मुफ्त आवास दिया जाता है. पीठ कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनका उसने पिछले साल ठाणे जिले के भिवंडी में इमारत गिरने की घटनाओं के बाद स्वत: संज्ञान लिया था.
अदालत ने पिछले महीने मुंबई के उपनगर मालवनी में एक इमारत गिरने के बाद याचिकाओं पर फिर से सुनवाई शुरू की थी. इस घटना में आठ बच्चों सहित 12 लोगों की मौत हो गई थी. अदालत ने मालवनी घटना की न्यायिक जांच का आदेश दिया था और प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया था कि आवासीय इमारत में शुरू में सिर्फ भूतल और पहली मंजिल थी. रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें अवैध रूप से अतिरिक्त मंजिलें बनाई गई थी और ढांचे के मूल आवंटी का पता नहीं चल पाया है.
बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) की ओर से सोमवार को पेश हुए वरिष्ठ वकील ए चिनॉय ने उच्च न्यायालय को बताया कि शहर में अधिसूचित झुग्गी बस्तियों के अधिकांश घरों में अवैध रूप से अतिरिक्त मंजिलें बनाई जा चुकी हैं.