नई दिल्ली : केंद्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह उस स्थिति को स्वीकार नहीं करेगा, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class-OBC) या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section-EWS) की श्रेणी में आने वाले लोगों को उनके किसी वैध अधिकार से वंचित रखा जाए, फिर चाहे आठ लाख रुपये की वार्षिक आय के मानदंड पर फिर से विचार करने से पहले या बाद का मामला हो. केंद्र ने अदालत से आग्रह किया कि रुकी हुई नीट-पीजी काउंसलिंग को चलने दिया जाए (NEET-PG counseling reorganise) क्योंकि रेजिडेंट डॉक्टरों की मांग (demand of resident doctors) वाजिब है. देश को नए डॉक्टरों की जरूरत है, भले ही EWS कोटे की वैधता का मामला (EWS quota validation issue) विचाराधीन हो.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021-22 शैक्षणिक वर्ष से OBC और EWS कोटा के कार्यान्वयन (Implementation of OBC and EWS quota) के लिए 29 जुलाई, 2021 की अधिसूचना को चुनौती देने वाले नीट-पीजी उम्मीदवारों ने आठ लाख रुपये की आय मानदंड लागू करने के सरकार के औचित्य का विरोध करते हुए कहा कि इसे लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया.
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एस. बोपन्ना की पीठ ने कहा कि मामले में सुनवाई आज (गुरुवार) भी जारी रहेगी, जिसके बाद वह कोई आदेश पारित करेंगे. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम, एक सरकार के रूप में, अदालत से अनुरोध करेंगे कि हम किसी भी स्थिति को स्वीकार नहीं करेंगे, जिससे OBC या EWS वर्ग किसी ऐसी चीज से वंचित हो जो उन्हें वैध रूप से देय है, चाहे वह अभ्यास से पहले या बाद में हो. उन्होंने कहा कि कोटा के लिए अधिसूचना जनवरी, 2019 की है और EWS आरक्षण पहले ही कई नियुक्तियों और प्रवेशों पर लागू किया जा चुका है.
मेहता ने कहा कि हम एक ऐसे बिंदु पर हैं जहां काउंसलिंग अटकी हुई है. हमें इस समय में डॉक्टरों की आवश्यकता है. हम रिपोर्ट पर अदालत की सहायता के लिए तैयार हैं, लेकिन हम लंबी बहस में नहीं जा सकते. किसी भी रिपोर्ट की तरह, कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति रिपोर्ट में त्रुटियों को इंगित कर सकता है. हालांकि, सवाल यह होगा कि क्या गरीबों के लिए मानदंड अधिक समावेशी हैं या नहीं?, और मैं इस मुद्दे पर अदालत को संतुष्ट कर सकता हूं. उन्होंने कहा कि काउंसलिंग शुरू होने दें. उस चरण को समाप्त होने दें. उस समय, हमें नहीं पता था कि ऐसी स्थिति आएगी. यह रेजिडेंट डॉक्टरों की एक वाजिब मांग है. इस बीच, अदालत आपत्तियों पर विचार करे.